प्रयागराज: तय तारीखों पर गैरहाजिर रहने वाले अधिवक्ताओं पर हाईकोर्ट हुआ सख्त, की यह सख्त टिप्पणी... 

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Published By Sachin Sharma
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प्रयागराज। इलाबाद हाईकोर्ट ने विभिन्न आपराधिक मामलों में तय तारीखों पर अधिवक्ताओं के उपस्थित न होने पर कड़ा रुख अपनाते हुए कहा कि अपने क्लाइंट के लिए अधिवक्ता की गैर- उपस्थिति पेशेवर कदाचार की श्रेणी में आता है। इसे बेंच हंटिंग या फोरम शॉपिंग के समान माना जा सकता है।

उक्त टिप्पणी न्यायमूर्ति कृष्ण पहल की एकलपीठ ने वर्ष 2019 में एक आरोपी द्वारा दाखिल अग्रिम जमानत याचिका को खारिज करते हुए की। कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि आवेदक को बिना किसी उचित स्पष्टीकरण के बार-बार न्यायिक कार्यवाही से अनुपस्थित रहकर न्याय की धारा को कमजोर करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। अधिवक्ता की गैर-उपस्थिति के लिए किसी ठोस कारण का अभाव कानून की प्रक्रिया का खुला दुरुपयोग है।

अंत में कोर्ट ने बताया कि सीआरपीसी की धारा 438 के अनुसार विधायिका ने अग्रिम जमानत आवेदन के निपटारे के लिए 30 दिनों की एक सीमा अवधि तय की है। उक्त नियम केवल अग्रिम जमानत आवेदन के लंबितता से बचने के लिए है। मौजूदा मामले में आवेदक द्वारा जांच में भाग न लेकर तत्काल आवेदन के लंबित रहने का अनुचित लाभ उठाने की संभावना को देखते हुए न्यायालय ने याचिका को खारिज कर दिया।

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