Exclusive: 30 वर्ष के बाद गर्भवती होने पर बच्चे में बढ़ जाता ये खतरा; जानें लक्षण और इलाज का तरीका

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Published By Deepak Shukla
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कानपुर, (विकास कुमार)। 30 वर्ष के बाद गर्भवती होने पर बच्चे में डाउन सिंड्रोम का खतरा बढ़ता जाता है। यदि महिला की उम्र 35 साल से ज्यादा हो तो गर्भ में पल रहे बच्चे की जांच जरूर करानी चाहिए कि बच्चे में डाउन सिंड्रोम तो नहीं है।

जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के बाल रोग विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ.अरुण कुमार आर्या ने बताया कि डाउन सिंड्रोम एक जेनेटिक स्थिति होती है जिसमें व्यक्ति के अंदर एक अतिरिक्त क्रोमोसोम पाया जाता है। आमतौर पर एक बच्चा 46 क्रोमोसोम (गुणसूत्र) के साथ जन्म लेता है, इनमें से  23 मां के और 23 पिता के जीन से मिलते हैं, जो जोड़े में रहते हैं। जब 21वें क्रोमोसोम पर एक अतिरिक्त क्रोमोसोम मौजूद हो तो इसे डाउन सिंड्रोम कहते हैं। 

बच्चे में 47 क्रोमोसोम आ जाते हैं तो यह एक अतिरिक्त जोड़ा शरीर और मस्तिष्क के विकास को प्रभावित करता है। इसे ट्राइसोमी 21 भी कहते हैं। एक हजार में से एक बच्चे में डाउन सिंड्रोम होने की आशंका होती है। डाउन सिंड्रोम के 30 प्रतिशत मामलों में मानसिक रोग होने की आशंका भी होती है। 30 वर्ष के बाद गर्भधारण करने पर बच्चे में यह खतरा अधिक बढ़ता जाता है। 

बाल रोग विशेषज्ञ डॉ.राहुल कपूर ने बताया कि डाउन सिंड्रोम का पता जन्म से पहले मां के ब्लड टेस्ट और एम्नियोसेंटेसिस नाम के टेस्ट से लगाया जा सकता है। साथ ही अल्ट्रासाउंड भी कराया जाता है। अगर जन्म के बाद इसकी पहचान करनी है तो डाउन सिंड्रोम के बच्चों के चेहरे की एक अलग आकृति से इनकी पहचान की जा सकती है। एक अतिरिक्त क्रोमोसोम होने के कारण बच्चे का मानसिक और शारीरिक विकास सामान्य से अलग हो सकता है, जिससे ये पहचान में आते हैं। वहीं, इनके हाथ में एक ही लकीर होती है, जिसे डॉक्टर व स्टाफ देखकर आसानी से पता लगा लेते हैं। 

फिजियोथेरेपी से हो सकते ठीक 

फिजियोथेरेपिस्ट सुमित गुप्ता ने बताया कि डाउन सिड्रोम के बच्चे देखने में साधारण बच्चों से भले ही अलग लगें, लेकिन उनमें भी वही बचपना होता है। बस उनको कुछ चीजें समझने में थोड़ा वक्त लगता है। उन्हें कमजोर समझना गलत है। उनका दिल नाजुक होता है। 

ऐसे में फिजियोथेरेपी, प्यार और अच्छी देखभाल से ऐसे बच्चों को सामान्य जीवन दिया जा सकता है। फिजियोथेरेपी की मदद से उनका फिजिकल लेवल ठीक हो जाता है और उनको रूटीन के कार्य व चलने-फिरने में दिक्कत पहले के मुकाबले नहीं होती है। उनको मनोरंजन और गाने सुनना भी पसंद होता है। 

ये होते हैं मुख्य लक्षण 

- नाक और चेहरा चिपटा होना।
- ऊपर की तरफ चढ़ी हुई बादाम जैसी चिपटी आंखें।
- छोटा मुंह जिसके कारण जीभ लंबी दिखना।  
- छोटा चेहरा, छोटी गर्दन, छोटे हाथ व पैर। 
- छोटी उंगलियां व लंबाई कम होना। 
- बच्चे में कम दिमाग या मंदबुद्धि होना। 

बच्चे में हो सकतीं ये भी दिक्कतें

-हृदय संबंधी समस्याएं
-आंत में तकलीफ
-देखने व सुनने में परेशानी
-थायरॉयड संबंधी दिक्कत
-रक्त संबंधी समस्याएं 
- संक्रमण के प्रति संवेदनशील
-याद करने में दिक्कत
-कमजोर जोड़ और हड्डियां

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