Bareilly News: हाथी, घोड़ा और बैल...प्राचीन काल के मिट्टी के ये खिलौने हैं बेहद खास, जानिए इनकी खासियत

Bareilly News: हाथी, घोड़ा और बैल...प्राचीन काल के मिट्टी के ये खिलौने हैं बेहद खास, जानिए इनकी खासियत

प्रीति कोहली, बरेली। हमारे जीवन में बच्चों और नौजवानों से लेकर बुजुर्गों के लिए मनोरंजन और खेलों के लिए कुछ न कुछ साधन हमेशा उपलब्ध रहे हैं। जिनके इस्तेमाल से लोग अपना मनोरंजन करते रहे हैं। चाहे पुराना दौर रहा हो या फिर आधुनिक तकनीकी से लैस आज का दौर, हमेशा हमारे मनोरंजन के लिए कुछ न कुछ साधन उपलब्ध रहे हैं। 

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अगर हम बात करें आज के दौर की तो हमारे पास मनोरंजन के विभिन्न साधन उपलब्ध हैं। जिनमें टीवी, मोबाइल, कंप्यूटर, बैटरी चालित खिलौने समेत विभिन्न वस्तुएं उपलब्ध हैं। लेकिन लोगों के मन में अक्सर सवाल उठता है कि पुराने समय में बच्चे कैसे मनोरंजन किया करते होंगे? क्या वह बिना मोबाइल, टीवी और बैटरी वाले खिलौनों के अपना मनोरंजन करते हुए बड़े हुए होंगे? क्या पुराने दौर में भी खिलौने होते होंगे? 

इस जवाब है कि पहले के समय में भी तमाम खिलौने और अन्य वस्तुएं मनोरंजन के साधन के रूप में हुआ करती थीं। क्योंकि उस दौर में भी लोग अपने बच्चों के मनोरंजन का बेहद ख्याल रखा करते थे। जिसका सबूत बरेली स्थित महात्मा ज्योतिबा फुले रुहेलखंड विश्वविद्यालय के प्राचीन इतिहास एवं संस्कृति विभाग के पांचाल संग्रहालय की एक गैलरी में सुव्यवस्थित हैं। जिसमें खिलौनों के तौर पर टेराकोटा की बनी जानवरों की छोटी-छोटी मूर्तियां शोकेस में सजाई गईं हैं। जिन्हें देखने के लिए बच्चे, नौजवान और बुजुर्ग दूर-दूर से आते हैं। 

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इन खिलौनों के बारे में पांचाल संग्रहालय के रिसर्च एसोसिएट डॉक्टर हेमंत शुक्ला बताते हैं कि यह एक बड़ा ही मजेदार सवाल है कि बच्चों के लिए मनोरंजन का मतलब क्या है? 

बड़ों ने तो शिकार, नृत्य और गायन करके अपना मनोरंजन कर लिया। साथ ही चौसर और शतरंज जैसे भी कई अन्य खेल थे। लेकिन बच्चों के मनोरंजन के साधन क्या थे? उन्होंने बताया कि पांचाल संग्रहालय की संजय अग्रवाल से लेकर रवि शंकर रावत गैलरी तक टेराकोटा मूर्तियों के रूप में बच्चों के ढेर सारे खिलौने उपलब्ध हैं। जिनमें काठी और लगाम लगी घोड़े की छोटी-सी मूर्ति, हाथी और बैल की मूर्ति के साथ ही पिग की मूर्ति भी हमें देखने को मिलती है। जिससे जाहिर होता है कि पुराने दौर का समाज कितना मानवीय और संवेदनशील रहा होगा। 

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वहीं प्राचीन काल, पाषण काल और गुप्त काल की सभ्यता और संस्कृति में बड़ों के साथ बच्चों के खेलने के लिए जानवरों की छोटी-छोटी मूर्तियां बनाया करते थे। इसके अलावा इस गैलरी में टेराकोटा की एक बौने की मूर्ति भी शोकेस में सुरक्षित रखी हुई है। जिनका प्रयोग बच्चों के मनोरंजन के रूप में किया जाता होगा। जोकि इतिहास का बेहद महत्वपूर्ण पक्ष है।

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