पीलीभीत: कुर्मी कार्ड खेल रहे सपाई, भाजपा के दिग्गजों की मुश्किल बढ़ाई...कहीं न लग जाए सेंध, चुनौती बरकरार
सुनील यादव, पीलीभीत। लोकसभा चुनाव में पीलीभीत सीट पर मतदान 19 अप्रैल को होना है। मुस्लिम मतदाताओं को साधने के लिए सपा और बसपा दोनों ही दलों में होड़ मची हुई है। वहीं ओबीसी, खासकर कुर्मी वोटबैंक को अपने पक्ष में लाने के लिए भाजपा -सपा की नजर है। चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले इस वोट बैंक पर पूरा जोर लगा दिया गया है।
समाजवादी पार्टी (गठबंधन) प्रत्याशी अपनी सभाओं में खुलकर बोलते भी नजर आ रहे हैं। वहीं, भाजपा के पास इसी बिरादरी से आने वाले तीन दिग्गज तैयार हैं। जिन्हें कुर्मी वोटबैंक में सेंध रोकने के लिए इस्तेमाल किया जाएगा। ऐसे में उनकी चुनौतियां बढ़ती दिखाई दे रही हैं।
पीलीभीत सीट पर मतदान में महज पंद्रह दिन बाकी है। भारतीय जनता पार्टी इस सीट पर पहले से भी अधिक मतों के अंतर से अपने प्रत्याशी कैबिनेट मंत्री जितिन प्रसाद को जीत दिलाने के लिए पूरी ताकत झोंक दी है। दो अप्रैल को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ प्रबुद्ध सम्मेलन कर चुके हैं और नौ अप्रैल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जनसभा करने आ रहे हैं। इससे पहले गृहमंत्री अमित शाह के आने की भी उम्मीद जताई जा रही है।
इसके अलावा केंद्र व प्रदेश सरकार के तमाम मंत्री, संगठन के शीर्ष नेता डेरा डालकर कमान संभाले हुए हैं। उधर, समाजवादी पार्टी मुस्लिम के साथ ही कुर्मी वोट बैंक में सेंध लगाने की तैयारी में लगी हुई है। पूर्व मंत्री भगवत सरन गंगवार को प्रत्याशी बनाया है। गठबंधन के अन्य दल भी उन्हें ही चुनाव लड़ा रहे हैं। जबकि बसपा से पूर्व मंत्री अनीस अहमद खां उर्फफूलबाबू मैदान में हैं।
ये कहना गलत नहीं है कि तराई की सियासत में कुर्मी वोटबैंक की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। यही वजह है कि सपा का कुर्मी वोटर पर फोकस बढ़ता जा रहा है। उधर, भाजपा भी इस वोटबैंक को साधने में निगाह बनाए हुए है। माना जा रहा है कि मुस्लिम और कुर्मी वोटर्स को अगर समाजवादी ने साध लिया तो कहीं न कहीं भाजपा की चुनौती बढ़ेगी। जबकि सपा की भी मुश्किल कम नहीं है।
कुर्मी मतदाता पर नजर रखने के साथ ही उसे मुस्लिम मतदाताओं को भी साधकर रखना होगा। ये इसलिए चुनौती भरा है, चूंकि बसपा से पूर्व मंत्री अनीस अहमद खां उर्फफूलबाबू प्रत्याशी हैं। वह बाहरी प्रत्याशी के मुद्दे पर भाजपा ही नहीं, समाजवादी पार्टी को भी घेर रहे हैं। समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी कुर्मी बिरादरी से ही हैं। वह अपनी सभाओं में खुले तौर पर कुर्मी कार्ड खेलते दिखाई दे रहे हैं।
बहेड़ी समेत कई जगह हुई सभाओं में उन्होंने कुर्मी मतदाताओं का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने के लिए जोर लगाया। लगातार संपर्क करने में भी जुटे हुए हैं। ऐसे में कुर्मी वोटबैंक पर राजनीतिक दलों में लड़ाई सी छिड़ती दिखाई दे रही है। हालांकि भाजपा के पास स्थानीय स्तर पर ही कुर्मी वोट बैंक में सेंध रोकने के लिए दिग्गज हैं।
योगी सरकार में राज्यमंत्री संजय सिंह गंगवार सदर विधानसभा सीट से लगातार दूसरी बार विधायक हैं। पीसीयू के सभापति सुरेश गंगवार भी पीलीभीत से ही हैं। जोकि भाजपा के जिलाध्यक्ष भी रहे हैं। इस बार के लोकसभा चुनाव में दोनों ही टिकट के दावेदार भी थे। इसके अलावा सत्यपाल गंगवार जिला सहकारी बैंक के चेयरमैन हैं।
जातीय समीकरण को साधने और कुर्मी वोटबैंक का रुख भाजपा की तरफ मोड़ने के लिए इनकी जिम्मेदारी बढ़ गई है। चूंकि तीनों ही जिम्मेदार पदों पर हैं। जनपद की राजनीति में सक्रियता के साथ ही कुर्मी वोटबैंक पर इनकी खासा पकड़ भी मानी जाती है। ऐसे में अब कितना लाभ भाजपा प्रत्याशी को दिलाने में सफल होते हैं, ये उनके लिए चुनावी मैदान में खुद न होकर भी परीक्षा से कम नहीं है।
पहले भी कुर्मी प्रत्याशी उतार चुकी सपा
समाजवादी पार्टी की ओर से पहले भी कुर्मी प्रत्याशी लोकसभा चुनाव में उतारा जा चुका है। 2004 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के टिकट पर मेनका गांधी चुनाव मैदान में थी। उस वक्त समाजवादी पार्टी से सत्यपाल गंगवार चुनाव लड़े थे। मेनका गांधी ने 102720 वोट से जीत दर्ज की थी। भाजपा में रहते चुनाव लड़ते हुए मेनका और वरुण गांधी की ओर से जीते चुनावों में जीत का सबसे कम अंतर इसी चुनाव में रहा था। इसके अलावा 2022 के विधानसभा चुनाव में भी सपा ने सदर सीट पर कुर्मी बिरादरी से जुड़ा प्रत्याशी उतारा। जिसमें कांटे की टक्कर हुई थी। हालांकि जीत भाजपा प्रत्याशी की हुई।