पीलीभीत सीट: लोकसभा चुनावों में न साइकिल दौड़ी, हाथी की रही सुस्त चाल, साथ लड़कर भी हारे...2024 में सियासी जमीं पाने का मौका, चुनौती बरकरार 

Amrit Vichar Network
Published By Vikas Babu
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वैभव शुक्ला, पीलीभीत: इस बार का लोकसभा चुनाव राजनीतिक दलों की प्रतिष्ठा से जुड़ चुका है। भाजपा नए चेहरे के साथ मैदान में है। समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के लिए तराई में अपनी सियासी जमीं पाने का मौका है। चूंकि साढ़े तीन दशक में यह पहला ऐसा चुनाव है, जब मेनका गांधी और वरुण गांधी पीलीभीत सीट पर नहीं लड़ रहे हैं। जिनसे लगातार बड़े अंतर से सपा-बसपा को हार मिलती रही है। 

भाजपा प्रत्याशी कैबिनेट मंत्री जितिन प्रसाद का पीलीभीत से जुड़ाव तो रहा हैं, लेकिन इस सीट पर चुनाव पहली बार लड़ रहे हैं।  ऐसे में इस बार भी साइकिल को रफ्तार न मिली और हाथी चाल सुस्त रही तो इसका बड़ा असर दोनों दलों की सियासत पर पड़ना तय माना जा रहा है।  

पीलीभीत लोकसभा सीट मेनका गांधी और वरुण गांधी के चलते हाई प्रोफाइल बनी रही है।  सत्ता से दूर रहते हुए भी भाजपा लोकसभा चुनावों में पीलीभीत सीट पर मेनका गांधी या वरुण गांधी को प्रत्याशी बनाकर भाजपा जीत दर्ज करती रही। समाजवादी पार्टी और बसपा पीलीभीत में लोकसभा चुनाव में कभी जीत दर्ज नहीं कर सके।  

प्रदेश में सरकार और जनपद की अधिकांश विधानसभा सीटों पर अपने विधायक, जिला पंचायत अध्यक्ष समेत कई जनप्रतिनिधियों के होने के बाद भी  बसपा हो या फिर सपा कभी अपना सांसद नहीं बना पाए।  2007 में उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी की सरकार बनी। जनपद की दो विधानसभा सीटों पर विधायक भी चुने गए।

जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी पर भी बसपा काबिज रही, लेकिन 2009 में हुए लोकसभा चुनाव में बसपा महज 13.44 प्रतिशत वोट ही हासिल कर सकी थी। इस चुनाव में वरुण गांधी ने 419539 वोट पाकर जीत दर्ज की थी। जबकि बसपा के प्रत्याशी गंगाचरन राजपूत को 112576 वोट ही मिल सके थे।  जबकि समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी हाजी रियाज अहमद भी बड़े अंतर से हारकर तीसरे नंबर आए थे। उन्हें 117903 यानि 14.08 प्रतिशत वोट मिल सका था।

समाजवादी पार्टी की बात करें तो 2012 में सपा की सूबे में सरकार आई। जिले की चार में से तीन सीटों पर समाजवादी पार्टी के विधायक चुने गए।  मगर जब 2014 में लोकसभा चुनाव हुआ तो साइकिल रफ्तार नहीं पकड़ सकी। भाजपा की मेनका गांधी ने 546934 वोट पाकर जीत दर्ज की थी। इस चुनाव में सपा के बुद्धसेन वर्मा 239882 वोट ही पा सके थे। जबकि बहुजन समाज पार्टी के अनीस अहमद खां उर्फ फूलबाबू को 196294 वोट मिले थे और तीसरे नंबर रहे थे।  

इस बार के चुनाव में भी बहुजन समाज पार्टी ने उन्हें ही प्रत्याशी बनाया है।  इससे पहले की बात करें तो 1999 के चुनाव में जब निर्दलीय प्रत्याशी के रुप में मेनका गांधी ने चुनाव लड़ा था। उस वक्त भी सपा-बसपा  हार गए। निर्दलीय लड़कर मेनका गांधी ने 433421 वोट पाकर जीत दर्ज की। जबकि बसपा के अनीस अहमद खां उर्फ फूलबाबू 193566 वोट पाकर दूसरे नंबर पर रहे थे। 

समाजवादी पार्टी के रामसरन तो महज 58792 वोट ही पा सके थे।  2004 का लोकसभा चुनाव की बात करें तो इस चुनाव में भाजपा के सिंबल पर चुनाव लड़कर मेनका गांधी ने 255615 वोट पाकर जीत दर्ज की थी। इस चुनाव में सपा के सत्यपाल गंगवार 152895 वोट पाकर दूसरे जबकि बसपा के अनीस अहमद खां उर्फ फूलबाबू  121269 वोट पाकर तीसरे नंबर पर रहे थे। इन चुनावों में भी साइकिल नहीं दौड़ी, हाथी सुस्त होता चला गया था।  

खैर, पुराने चुनावी आंकड़े कुछ भी रहे हों, लेकिन 2024 लोकसभा चुनाव में तस्वीर काफी हद तक बदली हुई है।   भाजपा की तरह ही सपा प्रत्याशी भगवत सरन गंगवार पहली बार पीलीभीत से चुनाव मैदान में हैं। सिर्फ बसपा के अनीस अहमद खां उर्फ फूलबाबू पुराने चेहरे हैं।  मगर वह इससे पहले भी तीन बार बसपा से लोकसभा चुनाव लड़ चुके हैं और जीत नहीं दर्ज करा सके। ऐसे में तीनों ही दल मतदाताओं में पैठ बनाने का प्रयास कर रहे है।

2019 में साथ लड़े..मगर जीत नहीं पाए
पीलीभीत सीट पर सपा-बसपा कभी जीत दर्ज नहीं करा सके है।  खास बात ये है कि इस सीट पर भाजपा के विजय रथ को रोकने और अपने लिए लोकसभा चुनाव में जीत का खाता खोलने का मकसद 2019 में उस वक्त भी सफल नहीं हो सका था, जब सपा-बसपा गठबंधन रहा। सपा ने इस चुनाव में पूर्व मंत्री हेमराज वर्मा को प्रत्याशी बनाया।

गठबंधन प्रत्याशी के रुप में उन्हें 448922 वोट मिले, लेकिन जीत नहीं हो सका। भाजपा के वरुण गांधी ने 704549 वोट पाकर 255627 मतों से जीत दर्ज की थी। अबकी बार चुनाव दोनों दल अलग-अलग हैं।  हालांकि बसपा का न सही लेकिन समाजवादी पार्टी को कांग्रेस समेत गठबंधन के अन्य दलों का साथ है। अब ये साथ मतदाताओं को अपनी तरफ खींचने में कामयाब होता है या नहीं..देखना बाकी है।

1952 से 2019 तक ये बने सांसद-

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