Exclusive: …तो क्या ‘लोन नदी’ को ‘ड्रेन’ साबित करने की चल रही साजिश? अपने लाभ के लिए उद्यमी इसे गंगा की सहायक नदी होने से कर रहे वंचित

Amrit Vichar Network
Published By Nitesh Mishra
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सदर तहसील क्षेत्र के पवई गांव का पवई ताल है लोन नदी का उद्गम स्थल

उन्नाव, (धर्मशील शुक्ला)। अफसरों व चर्म उद्यमियों के गठजोड़ के चलते शहर सीमा से गुजरने वाली लोन नदी को ड्रेन साबित करने की लंबे अर्से से जद्दोजहद चल रही है। इसके विपरीत अंग्रेजी हुकूमत के दौरान तैयार गजेटियर में विभिन्न जलस्त्रोतों से अस्तित्व में आई गंगा की इस सहायक नदी का लोनी नाम ही उल्लिखित है।

इसका उद्गम स्थल पवई गांव स्थित पवईताल माना जाता है। यही नहीं पवई सहित अधिकांश गावों में लोनी को देवी के तौर पर मांगलिक आयोजनों के दौरान होने वाले लोकगायनों में आज भी याद किया जाता है। 

गंगा प्रदूषण को लेकर पड़ोसी जिला कानपुर महानगर में टेनरियां संचालन में आने वाली दिक्कत के चलते वहां के उद्यमियों ने अपनी इकाइयां जिले में स्थानांतरित करना शुरू किया था। तत्कालीन केंद्रीय पर्यावरण मंत्री जेडआर अंसारी सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी में बड़े मुस्लिम चेहरे के रूप में स्थापित हो चुके थे।

Lon River Unnao 1

शुरू में तो शहर के सिंगरोसी व अकरमपुर के आसपास इकाइयों की स्थापना हुई। और फिर बाद में दही चौकी क्षेत्र में औद्योगिक क्षेत्र विकसित करते हुए बड़ी संख्या में यहां भी इकाइयों का संचालन शुरू कराया गया। शहर व दही चौकी क्षेत्र की सीमा से निकलने वाली लोन नदी औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाले जहरीले पानी को बहाने का जरिया बन गई।

इसी के साथ लोन नदी को ड्रेन साबित करने की जद्दोजहद भी शुरू हो गई। छोटी व सीजनल नदियां आमतौर पर किसी न किसी बड़ी नदी की सहायक होती हैं। इसीलिए उद्यमियों द्वारा इस नदी को ड्रेन कहा जाने लगा क्योंकि ड्रेन प्रायः मानव निर्मित होती है। इसलिए उसका आसपास गुजरने वाली किसी बड़ी नदी से मिलाया जाना तय नहीं होता है।

अधिकारी जाने-अनजाने उद्यमियों की साजिश का हिस्सा बनते रहे। इसीलिए कुछ दशकों के अंदर इसकी सफाई कराते समय अभिलेखों में नदी के बजाए ड्रेन का ही उल्लेख होता रहा। अब स्थिति यह है कि शहर सहित आसपास की वर्तमान आबादी नदी के बजाए इसे लोनी ड्रेन के तौर पर ही जानती है।

लोना दाई के कदम पड़ने से अस्तित्व में आई नदी

किवदंती है कि अनुसूचित जाति के एक परिवार में जन्मी लोनी अपने भाइयों का खेती में हाथ बंटाती थी। पवई व आसपास के तमाम गांव निचली जमीन पर आबाद होने से वहां धान की उपज काफी मात्रा में होती थी। धान की रोपाई के समय बेढ़ लगाने में लोनी अपने पांच भाइयों पर भारी पड़ती थी।

भाई नर्सरी में तैयार पौधे बड़े डलवा (टोकरे) में रखकर खेत तक लाते और लोनी हर भाई को हर बार इत्मिनान से खाली खड़ी मिलती। जबकि पूर्व में पहुंचाए गए सभी धान के पौधे खेत में खड़े दिखते। इससे आश्चर्य में रहने वाला एक भाई पौध रोपने का ढंग देखने के लिए वहां छिप कर बैठ गया। लोनी निर्वस्त्र होकर डलवा में रखे सभी पौधों को एक बार में उछालती और वे खुद ही खेत में रोप जाते।

भाई द्वारा छिपकर रोपाई देखने की जानकारी पर आत्मग्लानि महसूस करते हुए लोनी दौड़ लगाती रही। जहां भी उसके कदम पड़ते वहां की जमीन धंसकर नदी का रूप लेती रही और आखिर में वह खुद गंगा नदी में समाहित हो गई। तभी से उन्हें लोना दाई के नाम से भी जाना जाने लगा। पवई सहित आसपास के गांव के लोग आज भी उनकी पूजा करते हैं। 

जिले के चार ब्लाक क्षेत्रों में होता है लोनी का प्रवाह

सदर तहसील क्षेत्र का पवई गांव बिछिया ब्लाक क्षेत्र में शामिल है। यह नदी इसके अलावा सिकंदरपुर कर्ण, पुरवा, बीघापुर व सुमेरपुर ब्लाक क्षेत्रों के दर्जनों गावों से होकर रायबरेली जिले के सरेनी ब्लाक क्षेत्र में प्रवेश करती है। जहां डलमऊ क्षेत्र में यह नदी गंगा नदी में मिल जाती है।  

उन्नाव के साथ रायबरेली में लोग लोन नदी ही कहते हैं 

इसके प्रवाह वाले क्षेत्र में इसे लोन नदी ही कहा जाता है। बिछिया ब्लाक क्षेत्र में तिवारीखेड़ा-जरगांव मार्ग पर तत्कालीन भाजपा सांसद देबी बक्श सिंह ने अपनी विकास निधि से इस सड़क पर लोन नदी के पुल का निर्माण कराया था। निर्माण स्थल पर लगवाए गए लोकर्पण शिलापट में आज भी लोन नदी ही दर्ज है। इसी तरह कानपुर-रायबरेली राष्ट्रीय राजमार्ग पर लगे शिलापट में भी लोन नदी लिखा है। जिले के साथ रायबरेली में भी इसे लोन नदी ही कहा जाता है।

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