चुनाव आयोग सख्त
लोकसभा चुनाव के छठे चरण के लिए चुनाव प्रचार जोरों पर है। इस चरण में आठ राज्यों/केन्द्र-शासित प्रदेशों के 889 उम्मीदवार चुनाव लड़ेंगे। राजनीतिक दलों की ओर से प्रचार के दौरान अमर्यादित एवं भड़काऊ भाषा के प्रयोग पर भारत के चुनाव आयोग ने सख्ती दिखाई है। चुनाव आयोग ने भाजपा और कांग्रेस से जाति, समुदाय, भाषा और धार्मिक आधार पर प्रचार करने से परहेज करने को कहा है।
आयोग ने भाजपा से उन प्रचार भाषणों को रोकने के लिए भी कहा जो समाज को विभाजित कर सकते हैं। आयोग ने भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा को लिखे पत्र में टिप्पणी की है कि उनकी पार्टी के स्टार प्रचारकों की बातों में एक पैटर्न दिखता है और उससे ऐसे आख्यान सृजित होते हैं, जो आदर्श चुनाव संहिता अवधि के बाद भी घातक हो सकते हैं।
बुधवार को चुनाव आयोग ने भाजपा, कांग्रेस और अन्य पार्टियों के नेताओं को चुनाव रैली और प्रेस वार्ता के दौरान भाषा में संयम बरतने और मर्यादा रखने के लिए नोट जारी किया है। इससे पहले मंगलवार को चुनाव आयोग ने कलकत्ता उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश और पश्चिम बंगाल के तमलुक से भाजपा उम्मीदवार अभिजीत गंगोपाध्याय की तृणमूल प्रमुख ममता बनर्जी के खिलाफ टिप्पणी के लिए निंदा की और उन्हें 24 घंटे के लिए चुनाव प्रचार करने से रोक दिया।
आयोग ने भाजपा अध्यक्ष से यह भी कहा कि वह पार्टी की ओर से सभी उम्मीदवारों और प्रचारकों को एक सलाह जारी करें ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि अभियान अवधि के दौरान ऐसी चूक दोबारा न हो। चुनाव आयोग ने ठीक ही कहा कि राजनीतिक दल भारतीय मतदाता के गुणवत्ता पूर्ण चुनावी अनुभव की जो विरासत है उसे कमजोर करने की कोशिश न करें।
वास्तव में चुनाव आते जाते रहते हैं परंतु भारत के सामाजिक-सांस्कृतिक तानेबाने की रक्षा इन सबसे बढ़कर है। भारत के सामाजिक-सांस्कृतिक परिवेश को चुनावों में प्रभावित नहीं किया जा सकता। भाषा पर संयम न बरतने के चलते मतदाता के बीच गलत संदेश जाता है और राजनीतिक दलों की छवि भी खराब होती है। इसलिए चुनाव प्रचार के दौरान सभी दलों के नेताओं को राजनीतिक शुचिता व मर्यादा का पालन करना चाहिए ताकि लोकतंत्र एवं चुनाव की गरिमा कलंकित न होने पाए।
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