Kanpur: रोडवेज बसों पर लगाम लगाने वाले GPS सिस्टम की चालकों ने दे दी बलि, परिवहन विभाग धरातल पर जाने को मजबूर
कानपुर, जमीर सिद्दीकी। उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम प्राइवेट लक्जरी बसों से मुकाबला करना तो दूर, अपने चालकों पर ही लगाम नहीं लगा पा रहा है क्योंकि यात्रियों को सुरक्षित पहुंचाने और बसों की स्पीड पर कंट्रोल करने और बेवजह ढाबों पर रुकने की व्यवस्था पर विराम लगाने की जितनी भी कोशिशें अधिकारियों ने की हैं, लगभग सभी प्रयास विफल हो गए हैं, ऐसे में परिवहन विभाग धीरे धीरे धरातल की ओर जाने को मजबूर है। बसों में क्षेत्रीय प्रबंधक, सहायक क्षेत्रीय प्रबंधक समेत अन्य अधिकारियों से मोबाइल नंबर लिखे होते हैं लेकिन अधिक बसों में ये मोबाइल नंबर वाली सूची ही फाड़ दी है, यदि कोई यात्री शिकायत करना भी चाहे तो नहीं कर सकता।
परिवहन बसों के चालक किसी ढाबे पर घंटों रुके रहते थे जिससे तीन घंटे का सफर पांच पांच घंटे में ये बसें तय करती थीं। अधिकारी जब पूछते थे कि बस कैसे लेट हो गई तो चालक ये तर्क देते थे कि रास्ते में जाम के कारण बस लेट हो गई। बसों के लेट लतीफी को देखते हुए परिवहन विभाग ने अपनी सभी बसों में जीपीएस सिस्टम लगाकर उन्हें परिवहन मुख्यालय से जोड़ दिया था।
मुख्यालय में कंट्रोलरुम बनाकर एक एक बस पर निगाह रखी जा रही थी, अधिकारी ये मानीटरिंग कर रहे थे कि बस वाकई में जाम की भेंट चढ़ी या कि बस को चालक ने अपनी चाहत के अनुसार कहीं रोक रखा था। ऐसे में कई वर्ष पूर्व जीपीएस सिस्टम से बसों को जोड़ा गया लेकिन चालकों ने कुछ ही माह में इस सिस्टम को उखाड़ कर फेंक दिया। अधिकारियों ने जितनी बार इस सिस्टम को ठीक करने की कोशिश की, एक दो दिन बाद ही ये सिस्टम फिर खराब कर दिया गया।
जीपीएस सिस्टम ऐसे रखता था निगरानी
॰ कौन सी बस कितने बजे डिपो या वर्कशाप से निकली
॰ क्या बस अपने निर्धार्रित समय पर संचालित हो रही है
॰ क्या बस निधार्रित की गई स्पीड के अनुसार दोड़ रही है।
॰ क्या बस जाम में फंसी है, यदि नहीं तो चालक कहां रुका रहा।
अब चालक कर रहे मनमानी
॰ जहां चाहते हैं, चालक मनमानी तरीके से बस को रोके रखते हैं
॰ बसों में लगे गति रोधक उपकरण को हटा देते हैं ताकि वह अपनी मनमर्जी के अनुसार बस को दौड़ा सकें।
॰बस का डिपो या वर्कशाप से रुट पर निकलने का समय क्या था और कितने बजे रुट पर गई, कुछ पता नहीं चल रहा है। बसों को रुट पर भेजने का समय ऐसे डाला जा रहा है कि जिम्मेदारों की गर्दन बची रहे।
॰ जाम में फंसने की बात कहकर समय से कई कई घंटे देर से बसें गंतव्य स्थान पर पहुंचती हैं। अधिकारियों के पास अब ऐसा कोई पैमाना नहीं है जिससे वह ये देख सकें कि कौन सी बस कितनी लेट है और रास्ते में वह कहां कहां रुकी।
