चंद्रशेखर आजाद के रूप में क्या यूपी को मिल गया दलित-मुस्लिम पॉलिटिक्स का नया 'नगीना' 

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Published By Ateeq Khan
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नगीना लोकसभा सीट पर भाजपा, बसपा और इंडिया गठबंधन के एड़ी-चोटी का दम लगाने के बाद भी 1.51 लाख वोटों से जीते चंद्रशेखर

अमृत विचार : चंद्रशेखर आज़ाद रावण (Chandra Shekhar Azad) क्या उत्तर प्रदेश की दलित-मुस्लिम पॉलिटिक्स (Dalit Muslim Politics) के नए 'नग़ीना' बनकर सामने आए हैं। बिजनौर की नगीना लोकसभा (Nagina Loksabha) सीट, जहां सपा, बसपा और भाजपा, तीनों पार्टियों के एड़ी-चोटी का दम लगाने के बावजूद चंद्रखेशर आज़ाद भारी मतों से जीत गए। चंद्रशेखर ने अपनी जीत के लिए दलित, मुस्लिम और समाज के कमज़ोर वर्ग का आभार व्यक्त जताया। यूपी में चंद्रशेखर आज़ाद की जीत के मायने काफी बड़े हैं। राज्य में एंटी इंकम्बेंसी का शिकार भाजपा से असंतुष्ट लोगों ने जहां एक तरफ समाजवादी पार्टी और इंडिया गठबंधन को 43 सीटें दे दीं। वहीं,  नगीना लोकसभा के वोटरों ने इंडिया गठबंधन को खारिज कर, आज़ाद समाज पार्टी के मुखिया चंद्रशेखर आज़ाद को अपना नेता चुना है। 

यूपी में राजनीतिक विमर्श इस बात पर छिड़ा है कि आखिर नगीना के मतदाताओं ने चंद्रशेखर को क्यों चुना और भाजपा के साथ इंडिया गठबंधन को क्यों खारिज कर दिया। इसका जवाब चंद्रशेखर आज़ाद का संघर्ष, दलित-पिछड़े, अल्पसंख्यक और कमज़ोर वर्ग की लड़ाई है, जहां हर मोर्च और संकट पर वह मज़बूती के साथ खड़े नजर आते रहे हैं। 

यही एक कारण माना जा रहा है कि चंद्रशेखर ने नगीना से भाजपा नेता ओम कुमार को 1.51 लाख वोटों से हराया है। समाजवादी पार्टी-इंडिया गठबंधन ने यहां अपना प्रत्याशी उतारा था। बसपा ने भी अपना कैंडिडेट लड़ाया। बसपा के कोऑर्डिनेटर रहे आकाश आनंद ने तो नगीना में रावण पर बड़ा हमला बोला था। कहा जा रहा है कि इससे भी चंद्रशेखर को बड़ा फायदा मिला। दलित समाज, विशेषकर कमजोर वर्ग आकाश की टिप्पणी के बाद चंद्रशेखर के साथ खड़ा हो गया। 

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करीब 50 फीसदी मुस्लिम बहुल आबादी वाली नगीना सीट पर 15 लाख मतदाता हैं। मुस्लिम समुदाय के बाद यहां दलितों की भी अच्छी संख्या है। चंद्रशेखर आज़ाद के साथ मुस्लिम समाज यूं भी उनके साथ खड़ा हो गया कि वह अल्पसंख्यकों के मुद़्दों पर मुखरता से बोलते रहे हैं। दिल्ली के शाहीन बाग़ में सीएए-एनआरसी आंदोलन के दौरान, शाही जामा मस्जिद में उनका पहुंचना, बड़ा राजनीतिक मूवमेंट था। जहां से उन्होंने समाज के बीच अपनी जगह बनाई। इसके बाद भी हर मामले पर चंद्रशेखर आज़ाद मुखर रहे हैं। 

दूसरी बात, वह वंचित समाज से आकर संघर्ष कर रहे हैं। एक बड़ी आबादी, जो दो वक़्त की रोजी-रोटी के लिए दिन-रात जूझती है। उसने चंद्रशेखर में अपना नया मसीहा देखा, जो उन्हीं की तरह जीता है। रहन-सहन, खान-पान भी लगभग उनके जैसा ही है। शायद इसलिए नगीना ने बड़ी पार्टियों के धनवान नेताओं को नकारकर चंद्रशेखर आज़ाद को चुना है। चंद्रशेखर आज़ाद ने अपनी जीत के बाद कहा कि, आज की राजनीति में कौन चाहता है कि किसी गरीब का बेटा आगे बढ़े। जनता के बीच से उनकी दिल छूने वाली तस्वीरें सामने आ रही हैं। ठीक वैसे ही जैसे बिहार के पूर्णियां से निर्दलीय सांसद चुने गए पप्पू यादव की। 


बरेली कॉलेज के पॉलिटकल साइंस डिपार्टमेंट में प्रोफेसर नीलम गुप्ता कहती हैं कि वर्ष 2014 में भाजपा ने जातियों के बंधन तोड़ दिए थे। तब, जातीय राजनीति करने वाली अधिकांश पार्टियों को बड़ा नुकसान उठाना पड़ा। एक तरह से ऐसा भी माना जाने लगा था कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने भारत की कास्ट पॉलिटिक्स पर ब्रेक लगा दिया है। लेकिन इस बार 2024 के चुनाव में जातीय समीकरण के साथ स्थानीय मुद्दे हावी रहे। यूपी में भाजपा को इसका बड़ा नुकसान उठाना पड़ा। नगीना में भी काफी हद तक यही रहा। वहां, लोग भाजपा से तो नाराज़ हुए, लेकिन विपक्ष को नहीं चुना। बल्कि अपना नया विकल्प बनाया है। 

बहरहाल, देश की 18वीं लोकसभा में चंद्रशेखर आज़ाद की तरह की कई नौजवान संसद का अंग बने हैं। जिनसे उम्मीद है कि वे सदन में देश के मूल मुद्दों को मज़बूती के साथ उठाएंगे।

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