SC/ST Act: फर्जी एससी/एसटी एक्ट लिखवाने वालों के लिए बुरी खबर, High Court ने DGP को दिए ये निर्देश

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Published By Deepak Mishra
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एससी/एसटी एक्ट के दुरुपयोग को रोकने के लिए सुझाए कई उपाय

प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने केवल मुआवजा पाने के उद्देश्य से एससी/एसटी एक्ट के तहत झूठी प्राथमिकी दर्ज कराने वालों के प्रति गहरी चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि एससी/एसटी एक्ट एक कानूनी सुरक्षा है, जो ऐतिहासिक रूप से वंचित और हाशिए पर रहने वाले समूहों को सुरक्षा प्रदान करता है। पूर्वाग्रहों का सामना कर रहे लोगों की सुरक्षा के लिए बनाए गए प्रावधानों का हथियारीकरण और दुरुपयोग इन कानूनों की मूल भावना को कमजोर करता है। इससे जनता का न्याय प्रणाली में विश्वास खत्म होता है। सच्ची समानता को साकार करने के लिए इन कानूनी प्रावधानों को ईमानदारी से लागू किया जाना चाहिए। 

यह टिप्पणी न्यायमूर्ति मंजू रानी चौहान की एकलपीठ ने विहारी और दो अन्य की याचिका स्वीकार करते हुए की और उनके खिलाफ आईपीसी और एससी/एसटी एक्ट की विभिन्न धाराओं के तहत पुलिस स्टेशन कैला देवी, संभल में दर्ज प्राथमिकी और आपराधिक कार्यवाही को खारिज कर दिया। उपरोक्त मामले में पीड़ित ने हाईकोर्ट के समक्ष स्वीकार किया कि उसने ग्रामीणों के दबाव में झूठी प्राथमिकी दर्ज कराई और वह मामले को आगे नहीं बढ़ाना चाहता है। इस पर कोर्ट ने कथित पीड़ित को राज्य सरकार से मुआवजे के रूप में प्राप्त 75 हजार रुपये आरोपी को वापस करने का भी निर्देश दिया।

कोर्ट ने एससी/एसटी एक्ट के दुरुपयोग को रोकने के लिए कुछ उपाय बताए, जैसे मामला दर्ज करने से पहले कठोर सत्यापन प्रक्रिया लागू की जानी चाहिए, जिससे शिकायतों की विश्वसनीयता का आकलन किया जा सके। पुलिस अधिकारियों और न्यायिक अधिकारियों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए जाने चाहिए, जिससे उन्हें एक्ट के संभावित दुरुपयोग के संकेतों को पहचानने में मदद मिल सके।

अधिनियम के दुरुपयोग के पैटर्न की जांच करने के लिए समर्पित निरीक्षण निकाय स्थापित किया जाना चाहिए। समुदायों को अधिनियम के उद्देश्य और झूठे दावे दायर करने के परिणामों के बारे में शिक्षित करने के लिए जन जागरूकता अभियान शुरू किए जाने चाहिए। अंत में कोर्ट ने उक्त आदेश की प्रति सभी जिला न्यायालयों को प्रसारित करने का निर्देश दिया, जिससे वे ऐसे मामलों में उचित आदेश पारित कर सकें, साथ ही प्रदेश के पुलिस महानिदेशक को जिलों के पुलिस अधिकारियों को आवश्यक सर्कुलर जारी करने का निर्देश दिया, जिससे वे कोर्ट द्वारा सुझाए गए उपायों पर आईपीसी की धारा 182 (अब बीएनएस 2023 की धारा 217) के तहत विचार कर सकें।

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