World Occupational Therapy Day: ऑक्यूपेशनल थेरेपी से न्यूरो और क्रानिक बीमारियां झेल रहे मरीजों को होता है लाभ

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Published By Virendra Pandey
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लखनऊ, अमृत विचार। ऑक्यूपेशनल थेरेपी बहुत ही महत्वपूर्ण थेरेपी है। यह मरीजों को उनके कार्यक्षेत्र में वापस लोटने में बहुत मदद करती है। यह जानकारी एसजीपीजीआई के अस्पताल प्रशासन विभाग के प्रमुख प्रो. डॉ. राजेश हर्षवर्धन ने शनिवार को दी। प्रो. हर्षवर्धन एसजीपीजीआई स्थित एपेक्स ट्रामा सेंटर में विश्व ऑक्यूपेशनल थेरेपी दिवस पर आयोजित कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे।

उन्होंने उदाहरण देते हुये बताया कि यदि किसी व्यक्ति के हाथ की हड्डी टूट जाती है, तो प्लास्टर लगाया जाता है, प्लास्टर हटने के बाद फिजियोथेरेपी के जरिये हाथों के मूवमेंट का कार्य कराया जाता है, लेकिन यदि वह व्यक्ति खिलाड़ी है तो ऐसे में उस व्यक्ति को खेलने लायक बनाने में ऑक्यूपेशनल थेरेपी की ही अहम भूमिका होती है। ऑक्यूपेशनल विशेषज्ञ नवीन तकनीक के जरिये मरीज के पुर्नवास के लिए काम करते हैं।

एपेक्स ट्रामा दो

दरअसल, विश्व ऑक्यूपेशनल थेरेपी दिवस की संजय गांधी पीजीआई (SGPGI) के एपेक्स ट्रॉमा सेंटर में जागरूकता कार्यशाला का आयोजन किया गया। जिसमें चिकित्सा क्षेत्र में ऑक्यूपेशनल थेरेपी के महत्वपूर्ण योगदान के विषय में विशेषज्ञों ने जानकारी साझा की।

इस अवसर पर पीएमआर विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. सिद्धार्थ राय ने बताया कि ऑक्यूपेशनल थेरेपी का न्यूरोलॉजिकल और क्रॉनिक बीमारियों से ग्रसित मरीजों के इलाज में अत्यंत महत्वपूर्ण योगदान होता है । जबकि अधिकांश लोगों को इसके योगदान के विषय में पता नहीं होता। किसी भी पीड़ित व्यक्ति के पुनर्वास के लिए बहु आयामी टीमवर्क जरूरी होता है, जिसमें फिजियाट्रिस्ट, न्यूरोलॉजिस्ट, ऑर्थोपेडिशियन, न्यूरोसर्जन, फिजियोथैरेपिस्ट, ऑक्यूपेशनल थैरेपिस्ट, प्रोस्थेटिक एंड ऑर्थोटिक्स, स्पीच थैरेपिस्ट,  साइकोलॉजिस्ट ,  पैथोलॉजिस्ट आदि शामिल होते हैं। ऑक्यूपेशनल थैरेपिस्ट का किसी भी व्यक्ति के दैनिक जीवन में आने वाले सभी आवश्यक क्रिया कलापों को जितना भी संभव हो सके स्वतंत्र रूप से करने के लिए सक्षम बनाने में बहुत महत्वपूर्ण योगदान होता है।

जेनेटिक्स विभाग के विभाग अध्यक्ष प्रोफेसर शुभा फड़के ने  फिजियो और ऑक्यूपेशनल थेरेपी से जेनेटिक्स के  मरीजों में महत्वपूर्ण योगदान को बताते हुए  कहा कि , कभी-कभी कुछ बीमारीयां ऐसी होती है जिसे पूरी तरह ठीक करना असम्भव होता है, लेकिन उचित चिकित्सा से उन मरीजों की औसत आयु दुगना करने में सफलता मिली  हैं , इसके अलावा मरीजों  के दैनिक दिनचर्या से संबंधित स्वतंत्र सक्षमता में काफी सुधार होता हैं । 

सुपरिटेंडिंग फिजियोथैरेपिस्ट डॉ. ब्रजेश त्रिपाठी ने बताया की किसी भी मरीज की क्षमताओं का अंतिम पुनर्वास  मात्र ऑक्यूपेशनल थेरेपी से ही हो सकता है। लोहिया संस्थान के ऑक्यूपेशनल थैरेपिस्ट डॉ अनंत और डॉ रोजेलिन ने बताया की ऑक्यूपेशन का मतलब व्यवसाय से जोड़ने की अवधारणा ठीक नहीं है बल्कि ऑक्यूपेशन का मतलब किसी व्यक्ति के जीवन के वह सभी कार्य जो उसको हर समय व्यस्त रखता है वह होता है । जितना भी संभव हो,  उन्ही टास्क के द्वारा उन्ही टास्क को पूर्ण करने की क्षमता को विकसित करना ऑक्यूपेशनल थेरेपी के द्वारा किया जाता है।

संजय गांधी पीजीआई के ऑक्यूपेशनल थैरेपिस्ट डॉ अंकिता और डॉ अंजलि ने केंद्रीय विद्यालय में बच्चों में मोटर स्किल्स , सेंसरी प्रोसेसिंग , सोशल इमोशनल स्किल आदि की पहचान, और बचाव का कार्यक्रम चलाकर विद्यालय के शिक्षकों को भी ट्रेनिंग दी और बच्चों का उपचार भी किया । उन्होंने ऑक्यूपेशनल  थेरेपी के लाइव सेसन से संबंधित वीडियो प्रदर्शित किया है। इस अवसर पर फिजियोथेरेपी के छात्रों के द्वारा 50 से ज्यादा पोस्टर प्रदर्शित किए गए। पोस्टर प्रेजेंटेशन में बीपीटी की छात्रा हिमांशी को प्रथम पुरस्कार हेमंत को दितीय और  शुभम शाही को तृतीय पुरस्कार मिला है, जबकि त्रिपुरेश को सांत्वना पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

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