हल्द्वानी: शराब की असली दुकानों में नकली दारू, छोटी दीपावली पर बड़े खेल का भंडाफोड़

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Published By Bhupesh Kanaujia
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हल्द्वानी, अमृत विचार। छोटी दीपावली से ठीक पहले की रात एसओजी ने नकली शराब के बड़े खेल का भंडाफोड़ किया है। उत्तर प्रदेश के दो तस्कर लग्जरी कार से शराब की खेप लाद कर हल्द्वानी लाए थे, लेकिन यहां डिलीवरी से पहले ही दोनों हत्थे चढ़ गए। नकली शराब की खेप की सप्लाई शहर की एक असली शराब की दुकान में करने थी। पुलिस ने आरोपियों के पास से नकली 19 पेटी देसी शराब जब्त की है। आरोपियों के खिलाफ पुलिस ने मुकदमा दर्ज कर लिया है। 

एसएसपी के मुताबिक उन्हें काफी समय से नकली शराब के खेल की खबर मिल रही थी। एसओजी की आरोपियों के पीछे लगाया गया था। धनतेरस की रात करीब पौने 12 बजे चेकिंग के दौरान एसओजी प्रभारी संजीत राठौर टीम के साथ नैनीताल रोड पर जजी के पास दिल्ली नंबर की होंडा सिटी कार डीएल 4 सीएएच 5542 तो रोका।

शातिर भाग पाता, इससे पहले ही एसओजी टीम ने उन्हें दबोच लिया। कार की तलाशी ली गई थी तो 19 पेटी देसी शराब बरामद हुई। पहले तो आरोपी खुद को पाक-साफ और सरकारी बता रहे थे, लेकिन जब पुलिस ने शराब से संबंधित कागज मांगे तो आरोपियों के हाथ-पैर फूल गए। एसओजी को शराब के नकली होने का शक हुआ तो उन्होंने आबकारी की टीम को मौके पर बुलाया। आबकारी अधिकारियों ने शराब के नकली होने की पुष्टि की। जिसके बाद दोनों को गिरफ्तार कर लिया गया। 

पूछताछ में आरोपियों ने अपना नाम कल्लूवाला लालबाग रेहड़ बिजनौर उत्तर प्रदेश निवासी सतनाम सिंह पुत्र हंसा सिंह और उपरोक्त पते का दीपक सिंह रावत पुत्र स्व.आनंद सिंह बताया। दीपक मूलरूप से पोखल आगर चक्की गैरसैड़ चमोली का रहने वाला है। शातिरों ने बताया कि वह नकली शराब की डिलीवरी सरकारी शराब की दुकानों में करते थे। 19 पेटी भी वह हल्द्वानी डिलीवरी के लिए लाए थे। बरामद शराब वह अपने घर में ही बनाते थे। एसओजी टीम में प्रभारी संजीत राठौड़, हेड कांस्टेबल ललित श्रीवास्तव, कांस्टेबल संतोष बिष्ट, चंदन नेगी व मुकेश सिंह थे। 

स्प्रिट से बनाते थे बाजपुर गुलाब मार्का, कबाड़ी से खरीदते थे पव्वे
पुलिस की पूछताछ में आरोपियों ने बताया कि वह नकली शराब घर में ही तैयार करते थे, जो प्योर स्प्रिट से तैयार होती थी। शराब के खाली पव्वे आरोपी कबाड़ी से खरीदते थे। माना जा रहा है कि जिस बाजपुर गुलाब मार्का का स्टीकर आरोपी किसी प्रिंटिंग प्रेस में छपवाते और फिर उन्हें कबाड़ी से लिए पव्वों पर चस्पा करते थे। जिसके बाद पव्वे हूबहू असली दिखते थे।

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