Prayagraj News : अनावश्यक रूप से अभियुक्त को परेशान ना करते हुए 32 वर्षों से लंबित मुकदमे को किया रद्द

Amrit Vichar Network
Published By Vinay Shukla
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अमृत विचार, प्रयागराज : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पिछले 32 वर्षों से लंबित एक शिकायत मामले को खारिज करते हुए कहा कि आरोपी के खिलाफ इतने लंबे समय के बाद निष्पक्ष सुनवाई करना संभव है, अगर मामले की कार्यवाही आगे बढ़ाई जाती है तो यह आरोपी को परेशान करने के अलावा समय और धन की बर्बादी होगी। उक्त आदेश न्यायमूर्ति राजवीर सिंह की एकल पीठ ने चंद्रकांत त्रिपाठी की याचिका को स्वीकार करते हुए पारित किया।

याची के खिलाफ आईपीसी की धारा 194 और 211 के तहत हत्या के मामले में झूठी गवाही देने का आरोप था। याची के खिलाफ कार्यवाही 21 जुलाई 1992 में शुरू की गई। याची ने इस आधार पर हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया कि वह वर्ष 1992 से मुकदमे का सामना कर रहा है और अब तक एक भी गवाह से पूछताछ नहीं की गई है। याची के अधिवक्ता का तर्क है कि शीघ्र सुनवाई का अधिकार अभियुक्त का मौलिक अधिकार है, जिसका इस मामले में खुले तौर पर उल्लंघन किया जा रहा है।

अंत में कोर्ट ने पाया कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 में निहित जीवन और स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का एक अभिन्न और आवश्यक हिस्सा त्वरित सुनवाई है। कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि याची पिछले 32 वर्षों से इस मुकदमे में फंसा हुआ है और ऐसा कोई भी साक्ष्य नहीं है जिससे पता चले कि वह मुकदमे में देरी के लिए जिम्मेदार है। अतः कोर्ट ने कार्यवाही को निराधार मानते हुए रद्द कर दिया।

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