Moradabad : ...मैं चला जाता कभी का इस जहां से, बस तुम्हारे प्यार की खातिर रुका हूं! काव्य गोष्ठी में कवियों ने पेश की रचनाएं
साहित्यिक मुरादाबाद ने ओंकार सिंह ओंकार को रामलाल अनजाना स्मृति सम्मान से किया सम्मानित, काव्य गोष्ठी में कवियों व साहित्यकारों ने अपनी रचना प्रस्तुत की
ओंकार सिंह ओंकार को सम्मानित करते कवि व साहित्यकार।
मुरादाबाद। साहित्यकार स्मृति शेष रामलाल अनजाना की पुण्यतिथि पर मंगलवार को बुद्धि विहार के महिपाल नगर कालोनी में संस्था साहित्यिक मुरादाबाद की ओर से आयोजित समारोह में वरिष्ठ साहित्यकार ओंकार सिंह ओंकार को रामलाल अनजाना स्मृति सम्मान से सम्मानित किया गया। सम्मान में उन्हें मान पत्र, श्रीफल और अंग वस्त्र प्रदान किया गया। वीरेंद्र सिंह बृजवासी के संयोजन में आयोजित समारोह की अध्यक्षता डॉ. महेश दिवाकर ने और संचालन डॉ. मनोज रस्तोगी ने किया।
वरिष्ठ कवयित्री डॉ. प्रेमवती उपाध्याय ने मां सरस्वती की वंदना से कार्यक्रम की शुरुआत हुई। साहित्यकारों ने स्मृतिशेष रामलाल अनजाना तथा सम्मानित साहित्यकार ओंकार सिंह ओंकार के व्यक्तित्व व कृतित्व पर प्रकाश डाला। साहित्यिक मुरादाबाद के संस्थापक डॉ. मनोज रस्तोगी ने बताया कि 20 जून 1939 को जन्में राम लाल अनजाना प्रेम और मानवीयता के कवि थे। उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से मानवीय सरोकारों को उजागर किया। उनका प्रथम काव्य संग्रह "चकाचौंध" वर्ष 1971 में प्रकाशित हुआ। उसके पश्चात गगन ना देगा साथ, सारे चेहरे मेरे, दिल के रहो समीप, वक्त ना रिश्तेदार किसी का काव्य कृतियां प्रकाशित हुईं। उनका देहावसान 27 जनवरी 2017 को हुआ।
कार्यक्रम के सह संयोजक राजीव प्रखर ने कहा 4 जुलाई 1950 को जन्में साहित्यकार ओंकार सिंह 'ओंकार' सामाजिक सरोकारों के कवि हैं । उनका प्रथम गजल संग्रह संसार हमारा है वर्ष 2008 में प्रकाशित हुआ। इसके पश्चात उनकी प्यार के दीप, आओ ! खुशी तलाश करें' काव्य कृतियां प्रकाशित हो चुकी हैं। मान पत्र का वाचन संयोजक वीरेंद्र सिंह बृजवासी ने किया। समारोह के दूसरे चरण में काव्य गोष्ठी आयोजित की गई। इसकी अध्यक्षता कर रहे डा. महेश 'दिवाकर' ने सुनाया... कौओं की ये फौज उड़ रही, हंस छुपे जा मानसरोवर! किसमें साहस इन्हें हराये? लोकतंत्र ने हिम्मत हारी! सम्मानित साहित्यकार ओंकार सिंह 'ओंकार' ने..आज अच्छे आचरण से, लोग कतराने लगे। जो भलाई कर रहा है, कांपता थर-थर मिला सुनाया।
कार्यक्रम संयोजक वीरेंद्र सिंह बृजवासी ने कहा...मैं चला जाता कभी का इस जहां से, बस तुम्हारे प्यार की खातिर रुका हूं! अमरोहा से आईं कवयित्री शशि त्यागी ने .. कहां गए वे भ्रात,जो आपस में लड़़ते-मरते थे। मातृ प्रेम में पगे, तुरत ही मेल किया करते थे। घड़ी-दो-घड़ी रूठ के वापिस घर आया करते थे। कहा गए वो लोग,जो पश्चाताप किया करते थे सुनाकर सराहना पाई।
श्री कृष्ण शुक्ल ने...गंगा चाहे साफ नहीं हो, धन दौलत आती रहती है। साझेदारी नेता और दलालों की चलती रहती है। मिलकर खाओ इस हमाम में, हम भी नंगे तुम भी नंगे। हर हर गंगे हर हर गंगे, नमामि गंगे हर हर गंगे सुनाया। डॉ राकेश चक्र ने कहा....मां धरती की चूनर धानी मां ही सुख की छइयां रे। कल्पतरू - सी मां रे भइया मां ठंडी पुरवइया रे। डॉ पूनम बंसल ने गीत सुनाया .....जितना सुलझाओ उलझी है,मतवाली अलवेली है। चाल न इसकी कोई समझे, जिंदगी ऐसी पहेली है। बाल साहित्यकार राजीव सक्सेना की रचना ...गांव -गांव छिड़े हैं दंगल, शहर बने नागों के जंगल, अब किस पर भरोसा करें- शहर पर या गाँव पर ? जिंदगी है दांव पर...को वाहवाही मिली।
योगेंद्र वर्मा व्योम ने…विजयी सूरज का हुआ, सभी जगह सत्कार। आज सुबह जब गिर गई, कुहरे की सरकार। मयंक शर्मा ने कहा...मां हैं नदिया की गहराई तो नदिया का शोर पिता। कभी न रुकने वाले जैसे सागर का हैं शोर पिता। डॉ. मनोज रस्तोगी ने कहा... सूरज की पहली किरण, उतरी जब छज्जे पर, आंगन का सूनापन उजलाया। गोष्ठी में रघुराज सिंह निश्चल, डॉ. प्रेमवती उपाध्याय, राम सिंह निशंक, जितेंद्र कुमार जौली, काले सिंह साल्टा, रवि चतुर्वेदी, आकर्ष त्यागी, अशोक विद्रोही, हेमा तिवारी, दुष्यंत 'बाबा' राजीव प्रखर,मनोज मनु, विवेक निर्मल, अचल दीक्षित, राशिद सैफी,राजीव कुमार गुर्जर,अशोक बाबा आदि ने भी अपनी रचना प्रस्तुत की।
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