Kanpur: भाजपा ने शुरू की आगामी विधानसभा चुनाव की तैयारी, जिलाध्यक्षों की सूची में दिखाया जातीय संतुलन

Amrit Vichar Network
Published By Deepak Shukla
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विशेष संवाददाता, कानपुर। भाजपा ने जिलाध्यक्षों की सूची जारी करने में जातीय संतुलन और महिलाओं को समायोजित करने पर फोकस किया है। 2027 को होने वाले विधानसभा चुनाव में सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव के पीडीए को करारा जवाब देने के लिहाज पार्टी ने फील्डिंग सजायी है। कानपुर उत्तर में ब्राह्मण, दक्षिण में रिपीट (ठाकुर), ग्रामीण में अनुसूचित जाति और कानपुर देहात में पिछड़ी जाति के नेता को संगठन ने कमान सौंपी है। पार्टी ने व्यूह रचना चुनावी लिहाज से की है। कानपुर लोकसभा क्षेत्र की पांच विधानसभा क्षेत्रों में तीन समाजवादी पार्टी और दो भाजपा के खातें में आयीं थी। सीसामऊ सीट भी भाजपा हार गयी थी। 

दूसरी तरफ ग्रामीण और देहात की सीटें जीतीं। संगठन के पेच कसने के साथ ही भाजपा अबकी सूपड़ा साफ करने के इरादे से 2027 में उतरेगी। यही नहीं पंचायत चुनाव में भी कड़ी परीक्षा होगी। सबसे पहले कानपुर दक्षिण जिलाध्यक्ष का नाम घोषित किया गया तो शिवराम सिंह मारे खुशी के रो पड़े। भाजपा ने 70 जिलाध्यक्षों की सूची में कानपुर दक्षिण समेत 22 जिलाध्यक्षों को रिपीट किया है। बताते हैं कि यह प्रदर्शन के आधार पर है। दीपू पांडे को रिपीट किए जाने की उम्मीद थी पर अनिल दीक्षित का नाम आते वह और उनके समर्थक निराश हो गए। ग्रामीण और देहात में तो पहले से ही परिवर्तन तय माना जा रहा था। 

ग्रामीण में दिनेश कुशवाहा के स्थान पर दलित को कमान देने की चर्चा के साथ ही पूर्व विधायक उपेंद्र पासवान का नाम लगभग तय माना जा रहा था। इस जिले में बिठूर, कल्यानपुर, महाराजपुर और घाटमपुर (सु) सीटें हैं। दलितों का खासी संख्या में यहां वोट है। उत्तर जिला से अनिल दीक्षित का नाम आते ही दीपू पांडे खेमा सन्न रह गया। अनिल को बुलाया जाता रहा पर वह दस मिनट बाद पहुंचे। बताते हैं कि ज्योतिष गणना के हिसाब से वह चल रहे थे। अनिल का नाम पहले भी चर्चा में था पर बाजी दीपू मार ले गए थे। अबकी अनिल को मौका दिया गया। ब्राह्मणों पर उनकी पकड़ मजबूत बतायी जाती है। कानपुर देहात में मनोज शुक्ला के स्थान पर पिछड़ा कार्ड खेला गया। रेणुका सचान को अध्यक्षी सौंपकर महिला और पिछड़ा कार्ड दोनों ही भाजपा ने खेल दिया।

सबको साधकर चलते रहे शिवराम

दक्षिण जिलाध्यक्ष शिवराम सिंह अपने स्वभाव के अनुकूल सबको साधकर चलते रहे। इससे पहले वह अनीता गुप्ता और वीना आर्या की कमेटी में महामंत्री थे। अध्यक्षी का यह उनका दूसरा टर्म है। शिवराम विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना, एमएलसी मानवेंद्र सिंह, क्षेत्रीय अध्यक्ष प्रकाश पाल, एमएलए महेश त्रिवेदी के साथ ही सांसद रमेश अवस्थी और मंत्रियों को भी साधे रहे। उनसे समर्थन पाने का शायद ही कोई कोना छूटा हो। आवास पर ही उन्होंने कार्यालय बना रखा है। लोग कहते थे कि सबसे मजबूत शिवराम को कोई नहीं हिला पाएगा।

बड़े नेताओं से ‘सेटिंग’ में कमजोर पड़ गए दीपू पांडे

दीपू पांडे ने सोचा भी नहीं होगा कि उनकी कुरसी के पाये बड़े नेता खींचने में लगे हैं। उन्हें लग रहा था कि टीम बनाने का मौका नहीं मिला। अबकी टीम बनाकर संगठन चलाएंगे। पर ऐसा नहीं हो पाया। उनके करीबी कहते हैं कि लोकसभा चुनाव में सांसद रमेश अवस्थी के लिए उन्होंने रणनीतिबद्ध तरीके से काम किया था पर सूत्र बताते हैं कि सांसद की पहली पसंद अनिल दीक्षित थे जिसकी भनक उन्होंने किसी को नहीं लगने दी। गोविंदनगर और कल्यानपुर विधायक क्रमश: सुरेंद्र मैथानी और नीलिमा कटियार अध्यक्ष पद पर दीपू को मौका देने के पक्ष में नहीं रहे। उनके तगड़े पैरोकार सांसद देवेंद्र सिंह भोले रहे जिनकी अबकी बार नहीं चल पायी। अनिल दीक्षित के तार वीएसएसडी कालेज की छात्र राजनीति से जुड़े हैं। सूत्रों के अनुसार फर्रुखाबाद में रहने वाले कालेज के पुराने छात्रों से भी अनिल दीक्षित ने अपनी मजबूती के लिए सम्पर्क किया था। फर्रुखाबादियों का सांसद से करीबी संपर्क काम आया। खबर है कि कानपुर-बुंदेलखंड क्षेत्रीय संगठन के गठन में दीपू को सम्मानजनक पद से नवाजा जा सकता है।

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