महिलाओं को मां बनने से रोकती बच्चेदानी की टीबी, चिंता और तनाव की वजह से फूलने लगती सांस, यहां जानें...टीबी के सभी लक्षण
कानपुर, अमृत विचार। अगर शादी के काफी समय बाद भी मां बनने का सपना पूरा नहीं हो पा रहा है। चिंता व तनाव की वजह से सांस फूल रही है। खांसी की समस्या हो गई है तो सतर्क हो जाएं और फौरन डॉक्टर को दिखाएं। दरअसल, बच्चेदानी में टीबी की वजह से यह समस्या हो सकती है। जिनको पहले टीबी की बीमारी हुई हो या परिवार में किसी को टीबी की समस्या है तो सचेत रहने और समय पर इलाज कराने की जरूरत है।
जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के स्त्री एवं प्रसूति रोग विभाग में परिवार कल्याण परामर्श की ओपीडी में फैमिली प्लानिंग की सटीक जानकारी दी जाती है। पहले हुई बीमारी और जीवनशैली के साथ ही आहार की जानकारी ली जाती है। जच्चा-बच्चा अस्पताल की सीएमएस डॉ.अनीता गौतम ने बताया कि ओपीडी में आने वाली तमाम महिलाएं ऐसी होती हैं, जिनको शादी के काफी समय बीतने के बाद भी बच्चा नहीं हो पाता। जांच कराने पर 30 से 40 फीसदी महिलाओं में बच्चेदानी की टीबी की समस्या सामने आई है, जिसकी वजह से उनका गर्भ ठहर नहीं पाता और किसी न किसी कारण गर्भपात हो जाता है।
अगर वह गर्भवती हो भी जाती हैं तो दवा की वजह से बच्चे में जन्मजात विकृति काफी अधिक होती है। वहीं, बच्चा मां का स्तनपान नहीं कर सकता, क्योंकि स्तनपान की वजह से भी बच्चे को टीबी की बीमारी होने का खतरा रहता है। ऐसे में बैक्टीरियल इंफेक्शन के लिए बच्चेदानी की झिल्ली की जांच की जाती है। लक्षण और रिपोर्ट के आधार पर मरीजों का इलाज शुरू किया जाता है। साथ ही बायोप्सी भी कराई जाती है। उन्होंने बताया कि टीबी के बाद प्रेग्नेंसी के 10 से 15 मरीज इलाज को आते है।
केस-1
शहर की एक 30 वर्षीय महिला को पहला बच्चा तो समय पर हुआ, लेकिन काफी कोशिशों के बाद भी दूसरे बच्चे में दिक्कत हो गई। साथ ही खांसी व सांस फूलने की भी समस्या होने लगी, जांच में बच्चेदानी में टीबी का संक्रमण पाया गया।
केस-2
शहर की 29 वर्षीय महिला को शादी के पांच साल बाद भी बच्चा नहीं हुआ। कई डॉक्टरों से इलाज कराने के बाद परिवार कल्याण परामर्श की ओपीडी पहुंची। यहां परामर्श लेने के बाद जांच कराई तो बच्चेदानी में संक्रमण मिला और इलाज शुरू किया गया।
ऐसे पता चलती टीबी की बीमारी
स्त्री एवं प्रसूति रोग विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ. रेनू गुप्ता ने बताया कि टीबी की जांच के लिए स्किन टेस्ट के साथ ही ब्लड टेस्ट कराया जाता है। यूट्रस की बॉयोप्सी कराई जाती है। इसके अलावा जेनेटिक टेस्ट भी होता है, जिससे टीबी के इंफेक्शन का पता चलता है। ऐसे मरीजों को छह महीने तक टीबी की दवा नियमित तौर पर खिलाई जाती है। इस दौरान महिलाओं को गर्भधारण करने के बारे में मना किया जाता है, क्योंकि टीबी की वजह से काफी समस्या होती है।
टीबी के लक्षण
-पसीना अधिक आना
-थकान रहना
-पेट के निचले हिस्से में दर्द रहना
-अनियमित मासिक धर्म,
-सफेद पानी आना, अधिक ब्लीडिंग
-उबकाई या उल्टी आना।
-वजन का कम होना, हल्का बुखार।
-हार्ट की पल्स रेट का तेज या धीमी होना।
-अल्प समय में गर्भपात हो जाना आदि।
