प्रयागराज : पीड़िता के बयान पर आधारित पोक्सो अधिनियम के तहत पारित समन आदेश किया रद्द

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Published By Vinay Shukla
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Allahabad High Court Decision: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पोक्सो अधिनियम के तहत दर्ज एक मामले में आरोपी को जमानत देते हुए स्पष्ट किया कि वर्तमान मामले के तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए विशेष न्यायाधीश, पोक्सो अधिनियम/अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, बरेली के संज्ञान/समन आदेश टिकने योग्य नहीं है क्योंकि इसे पुलिस रिपोर्ट या शिकायत के अनुसरण में पारित नहीं किया गया है। यह बीएनएसएस, 2023 की धारा 183 के तहत पीड़िता द्वारा बयान के आधार पर पारित किया गया है।

उक्त आदेश न्यायमूर्ति सौरभ श्रीवास्तव की एकल पीठ ने सितम उर्फ प्रिंस की जमानत याचिका स्वीकार करते हुए पारित किया। कोर्ट ने विवादित समन आदेश को रद्द करते हुए मामले को विशेष न्यायाधीश, पोक्सो अधिनियम/अपर सत्र न्यायाधीश, बरेली को यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम, 2012 की धारा 33 के तहत एक नया आदेश पारित करने के लिए मामले को वापस भेज दिया। मामले के अनुसार भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस), 2023 की धारा 123, 65(1), 351(3) और 89 तथा लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012 की धारा 4(2) के तहत सह-अभियुक्त के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया गया तथा आवेदक को दोषमुक्त कर दिया गया। हालांकि बाद में जब आरोप पत्र तथा संपूर्ण केस डायरी को विशेष न्यायाधीश, पोक्सो अधिनियम की अदालत में पेश किया गया, तो याची को भी तलब किया गया।

इसके बाद याची ने समन आदेश सहित संपूर्ण आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने की मांग लेकर हाईकोर्ट में वर्तमान याचिका दाखिल की। कोर्ट ने मामले पर विचार करते हुए स्पष्ट किया कि बीएनएसएस, 2023 के तहत उपलब्ध सामान्य प्रक्रिया और पॉक्सो अधिनियम, 2012 के तहत उपलब्ध प्रक्रिया के बीच थोड़ा अंतर है। अधिनियम, 2012 की धारा 31 के तहत उल्लेख किया गया है कि विशेष न्यायालय के समक्ष कार्यवाही के लिए दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 का आवेदन लागू होगा।  यह अपराध के संज्ञान लेने की प्रक्रिया के संबंध में मुकदमे की शुरुआत की प्रक्रिया से संबंधित है, यह विशेष रूप से पॉक्सो अधिनियम, 2012 की धारा 33 के तहत उल्लिखित है और जहां तक पॉक्सो अधिनियम, 2012 की धारा 33 में निहित शक्तियों का संबंध है, यह पॉक्सो अधिनियम, 2012 की धारा 42 (ए) से संबंधित है, जिसमें यह विशेष रूप से उल्लेख किया गया है कि इस अधिनियम का प्रावधान किसी अन्य कानून के अतिरिक्त होगा न कि उसका खंडन करेगा।

कोर्ट ने आगे बताया कि यदि अधिनियम के तहत बनाए गए कुछ अपराधों के अनुसरण में संज्ञान लिया गया हो, तो सत्र न्यायालय में पोक्सो अधिनियम की धारा 33 अपराध का संज्ञान लेने के लिए लागू होगी। इस प्रकार वर्तमान मामले में विवादित संज्ञान/समन आदेश कानून की नज़र में टिकने योग्य नहीं है, क्योंकि इसे पुलिस रिपोर्ट या शिकायत के अनुसरण में पारित नहीं किया गया था, जिसके कारण आवेदक द्वारा किया गया अपराध सामने आया था।

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