UP: पोस्टमार्टम ड्यूटी से परेशान विशेषज्ञ डॉक्टर सरकारी सेवा छोड़ने को मजबूर
प्रशासनिक एवं महिला चिकित्सकों द्वारा पोस्टमार्टम ड्यूटी न करने से बढ़ी समस्या
पद्माकर पाण्डेय/लखनऊ, अमृत विचार। सरकार के निर्देश के बावजूद 19010 चिकित्सकों के स्वास्थ्य विभाग में प्रशासनिक पदों पर तैनात और महिला चिकित्सकों की पोस्टमार्टम में ड्यूटी न लगाए जाने से, आंतरिक रूप से स्थिति खराब हो रही है। अपने ही प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा किए जा रहे भेदभाव पूर्ण व्यवहार के खिलाफ डॉक्टरों में रोष व्याप्त हो रहा है।
सरकारी सेवा से मोहभंग हो रहा है, विशेषकर विशेषज्ञ चिकित्सक सरकारी सेवा छोड़ने का मन बना रहें हैं, क्योंकि पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टरों को ही सेवानिवृत्त होने तक एक-एक पोस्टमार्टम के लिए न्यायालय के चक्कर व्यक्तिगत जिम्मेदारी मानकर लगाने पड़ रहें हैं।
पोस्टमार्टम की गाइड लाइन के अनुसार, जिले में मुख्य चिकित्साधिकारी (सीएमओ) व अपर मुख्य चिकित्सा अधिकारी( एसीएमओ) को छोंड़कर सभी डॉक्टर्स (महिला को हटाया नहीं) से पोस्टमार्टम ड्यूटी कराने के निर्देश दिए गए हैं। दिशा- निर्देश के अनुसार हर जिलें औसतन पांच डॉक्टर के आधार पर 75 जिलों में 375 डॉक्टर पोस्टमार्टम नहीं करेंगे।
इसके अलावा महानिदेशालय में कार्यरत करीब 49 चिकित्सक, 18 मंडल में एडी कार्यालय समेत सभी 75 जिलों के 110 संयुक्त चिकित्सालयों के प्रशासनिक अधिकारी भी अगर 60 वर्ष की आयु से कम हैं तो उन्हें भी चक्रानुक्रम में पोस्ट मार्टम करने जाना होगा। बावजूद, अधिकारी खुद को पोस्टमार्टम ड्यूटी से पृथक करने के साथ ही अपने चहेते डाक्टरों की भी ड्यूटी न लगाकर समस्या को जटिल बना रहे हैं।
मुख्यतया ओपीडी में मरीजों की भीड़ में लगातार व्यस्त रहने वाले सर्जन, ईएनटी सर्जन, आर्थोपैडिक आदि विशेषज्ञों को अतिआवश्यक सेवा के नाम पर पोस्टमार्टम करने को भेजा जा रहा है। आक्रोशित डॉक्टरों का कहना है कि एमबीबीएस में शव विच्छेदन की पढ़ाई करके सभी आएं हैं तो सामान्य रूप से पोस्टमार्टम में विभाग में कार्यरत हजारों महिला डॉक्टरों को शामिल करना चाहिए, उन्होंने कहा सर्जरी करने वाली महिला डॉक्टर को तो पोस्टमार्टम करने जाना ही चाहिए।
अन्य प्रांतों में संविदा चिकित्सक भी करते हैं पोस्टमार्टम ड्यूटी
प्रदेश के सरकारी अस्पतालों में तैनात संविदा डॉक्टरों की एक बड़ी फौज है। नेशनल मेडिकल कमीशन(एनएचएम) और स्वास्थ्य विभाग द्वारा निर्धारित वेतन पर डॉक्टरों की नियुक्ति की जाती है। इन डॉक्टरों को पोस्टमार्टम ड्यूटी नहीं करनी होती है। विभागीय अधिकारी चिकित्सक का कहना है कि अगर इमरजेंसी ड्यूटी संविदा चिकित्सकों से ली जाती है तो पोस्टमार्टम ड्यूटी क्यों नही लगायी जाती है।
डॉक्टर हैं और पोस्टमार्टम ड्यूटी करने में सक्षम हैं तो गुजरात समेत अन्य प्रांतों की भांति उत्तर प्रदेश मे भी संविदा डॉक्टरों से पोस्टमार्टम कराना चाहिए। इतना ही नहीं, महाराष्ट्र में अनिवार्य सेवा बांड के तहत दो साल के तैनात डॉक्टर भी पोस्टमार्टम करते हैं।
उत्तर प्रदेश में सभी को पोस्टमार्टम ड्यूटी से दूर रखकर, चुनिंदा डॉक्टरों के कंधो पर जिम्मेदारी उठायी जा रही है। महिलाओं को विशेष मानकर, पोस्टमार्टम से छूट देने वाले स्वास्थ्य महानिदेशक डॉ.रतन पाल सिंह सुमन का कहना है कि प्रशासनिक अधिकारियों के अन्यंत्र कार्य बहुत हैं, अस्पतालों से सभी डॉक्टरों की ड्यूटी लगायी जाए, निर्देश जारी किए गए हैं।
वहीं, लखनऊ के सीएमओ डॉ.एनबी सिंह का कहना है कि ग्रामीण क्षेत्र की चिकित्सकीय सेवाओं के साथ, रात्रिकालीन होने वाले पोस्टमार्टम में सामन्जस्य स्थापित करने के आधार पर डॉक्टरों को पोस्टमार्टम में ड्यूटी लगायी जाती है। महिला डॉक्टर व ग्रामीण क्षेत्र में तैनात डॉक्टर को पोस्टमार्टम ड्यूटी के दौरान रात्रि विश्राम की व्यवस्था न होने से दिक्कत बनी हुई है। हालांकि महिला बॉडी मिलने पर विशेष परिस्थितियों में महिला डॉक्टरों की सेवाएं ली जाती हैं।
