उप मुख्यमंत्री को भेजे गए पत्र के आधार पर पट्टा रद्द करना अवैध : हाईकोर्ट

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Published By Virendra Pandey
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प्रयागराज, अमृत विचार। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पट्टा रद्दीकरण के मामले में अपने महत्वपूर्ण आदेश में कहा है कि केवल राज्य के उपमुख्यमंत्री को भेजे गए एक अधिवक्ता के पत्र के आधार पर भूमि पट्टा रद्द किया जाना कानूनन अवैध है। यह आदेश न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल की एकलपीठ ने राकेश व तीन अन्य की याचिका को निस्तारित करते हुए पारित किया और याचियों के पक्ष में 2013 में जारी वैध पट्टे को बहाल करते हुए वर्ष 2024 और 2025 में पारित पट्टा रद्द करने के आदेशों को रद्द कर दिया। 

याचियों के अधिवक्ता ने तर्क दिया कि उन्हें वर्ष 2013 में भूमि प्रबंधन समिति के प्रस्ताव के आधार पर पट्टा आवंटित किया गया था, लेकिन वर्ष 2018 में फर्रुखाबाद जिले के एक अधिवक्ता द्वारा उपमुख्यमंत्री को भेजे गए पत्र के आधार पर बिना किसी वैधानिक प्रक्रिया के पट्टा रद्द कर दिया गया। पट्टा रद्द करने के आदेश को चुनौती देते हुए याचियों ने कोर्ट को यह बताया कि राजस्व संहिता, 2006 की धारा 128 के अंतर्गत रद्द करने की प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया है। इस धारा के अनुसार केवल जिलाधिकारी ही उचित जांच के बाद लीज रद्द करने का अधिकार रखते हैं, वह भी तभी जब यह प्रमाणित हो जाए कि पट्टा संहिता के प्रावधानों का उल्लंघन कर जारी किया गया है।

अंत में कोर्ट ने स्पष्ट किया कि उपमुख्यमंत्री को भेजे गए पत्र के आधार पर किसी व्यक्ति का पट्टा रद्द किया जाना संवैधानिक और वैधानिक प्रक्रिया के विरुद्ध है। कोर्ट ने इसे राजस्व अधिकारियों द्वारा अपनी शक्ति का दुरुपयोग मानते हुए आक्षेपित आदेशों को निरस्त कर दिया। कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि जब तक कोई वैध जांच प्रक्रिया संहिता के तहत नहीं अपनाई जाती, तब तक पट्टे को रद्द नहीं किया जा सकता। अतः रद्दीकरण के आदेश को खारिज करते हुए याचियों के पक्ष में पट्टा बहाल कर दिया गया।

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