देवरिया में "देवी की शांति के लिए नरबलि!"...फूफा ने भतीजे को तंत्र-मंत्र के लिए कर दिया कुर्बान
देवरिया, अमृत विचार : इस कहानी की शुरुआत होती है देवरिया जनपद के एक शांत से गांव पटखौली से, जहां नौ साल का आरुष मां सविता देवी और परिजनों के साथ खुशहाल जीवन बिता रहा था, लेकिन किसी को क्या पता था कि उस मासूम पर खुद अपनों की ही नजर लग चुकी है और वो भी एक ऐसे विश्वास के नाम पर जो आज के आधुनिक युग में भी इंसान को हैवान बना देता है।
16 अप्रैल की शाम को लापता हो था आरुष : 16 अप्रैल की शाम आरुष अपने घर के पास खेल रहा था। कुछ देर बाद जब वह नहीं लौटा, तो परिवार घबरा गया। मां ने आसपास के लोगों से पूछा, लेकिन बेटा का कहीं भी सुराग नहीं मिला। अगली सुबह मामला थाने तक पहुंचा और 17 अप्रैल को परिजनों ने आरुष की गुमशुदगी दर्ज करवाई। हालांकि, 24 घंटे के बाद गुमशुदगी अपहरण के मामले में तरमीम हो गई। बावजूद इसके पुलिस की ढुलमुल कार्रवाई और औपचारिक पूछताछों के बीच दिन गुजरते गए, लेकिन नतीजा सिफर।
कातिल कौन? परछाइयाँ अपनों की निकलीं : जैसे-जैसे समय बीतता गया, परिजनों का धैर्य जवाब देने लगा। पिता योगेश गोंड, जो नाइजीरिया में नौकरी करते थे, बदहवासी में गांव लौट आए और हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की गई। फिर कोर्ट के आदेश पर पुलिस ने तफ्तीश तेजी कर दी। एक अगस्त (शनिवार) को केस की गुत्थी तब सुलझी जब पुलिस ने शक के आधार पर इंद्रजीत के मामा जयप्रकाश गोंड को उठाया और पूछताछ की। इस दौरान जयप्रकाश गोंड ने जो राज खोला उससे इंसानियत भी झकझोर हो गई।
"देवी के प्रकोप को शांत करना है! : जांच आगे बढ़ी तो पता चला कि शादी के बाद इंद्रजीत गोंड को उसके ससुराल वालों ने बताया कि उस पर देवी का साया है। मामा जयप्रकाश, जो खुद को झाड़-फूंक वाला बताता था, उसने सलाह दी कि "देवी को शांत करने के लिए चाहिए नरबलि!" इंद्रजीत ने बिना एक पल सोचे इसे सच मान लिया और अपने ही साले योगेश के बेटे आरुष को बलि देने का मन बना लिया।
पचास हज़ार में मौत का सौदा : इंद्रजीत ने अपने साढ़ू रमाशंकर (उर्फ शंकर) से कहा “एक बच्चा चाहिए... देवी को चढ़ाना है।” पचास हजार में सौदा हुआ। रमाशंकर ने अपने ही साले के बेटे आरुष को बहला-फुसलाकर अगवा कर लिया। एक दिन तक आरुष को अपने घर में छिपाकर रखा गया, फिर उसे भीम गोंड (इंद्रजीत की मौसी का बेटा) के जरिए इंद्रजीत तक पहुंचाया गया।
बागीचे में इंसान की बलि : अंधविश्वास में अंधे हो चुके इंद्रजीत, रमाशंकर और जयप्रकाश ने 19 अप्रैल को देवरिया के पिपरा चंद्रभान गांव के एक सुनसान बागीचे में ले जाकर मासूम आरुष का गला चाकू से रेत दिया। फिर शव को पहले जमीन में दफनाया गया। फिर अगले दिन उसे पिकअप में रखकर बरहज के गौराघाट ले जाकर सरयू नदी में बहा दिया गया।
पुलिस खुलासा और गाँव में मातम : जब पुलिस ने इस खुलासे को सार्वजनिक किया, पूरा क्षेत्र सन्न रह गया। गांव के लोग रो पड़े। मां सविता देवी बार-बार बेहोश हो रही हैं। वह चाहती हैं कि हत्यारों को फांसी की सजा मिले। सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि हत्या के बाद इंद्रजीत कुछ दिनों तक उसी घर में रहा, जहां आरुष की मां रो-रोकर बेटे को ढूंढ रही थी। एक बार तो उसने सविता देवी से कहाकि, “अगर मुझसे कोई गलती हो जाए, तो क्या तुम मुझे माफ कर पाओगी?”
एक ऐसा परिवार जो डर की मिसाल है : गांववालों ने बताया कि इंद्रजीत का परिवार पहले से ही बदनाम है। उसका चचेरा भाई गुजरात में बच्ची की हत्या में जेल में है। एक और रिश्तेदार पर गांव की लड़की को भगाने का आरोप है। गांव के लोग कहते हैं कि, “ये लोग मजदूरी करते हैं, लेकिन सोच और हरकतें समाज के लिए ज़हर हैं।”
अब भी तलाश है... आरुष के शव की : एसडीआरएफ और गोताखोरों की मदद से नदी में शव की खोज जारी है, लेकिन अब तक सफलता नहीं मिली। पुलिस का कहना है कि शव बरामद होना केस की पुष्टि और सजा के लिए अहम है। आज सविता देवी, पिता योगेश गोंड और पूरा गांव यही मांग कर रहे हैं कि "हमें कुछ नहीं चाहिए... सिर्फ इंसाफ चाहिए... और हमारे बेटे के कातिलों को फांसी दी जाए!"
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