वियतनाम–इंडोनेशिया के कम टैरिफ ने किया बड़ा असर; कानपुर के छोटे निर्यातक अमेरिका में हारते रहे बाज़ी
कानपुर, अमृत विचार : अमेरिका की ओर से लागू किए गए टैरिफ के बाद वियतनाम और इंडोनेशिया के निर्यातक कानपुर के छोटे व्यवसायियों के लिए बड़ी चुनौती बनकर उभरे हैं। कम टैरिफ का सीधा लाभ उठाकर इन देशों के कारोबारी अमेरिकी खरीदारों को छोटे उत्पादों की कोटेशन भेज रहे हैं, जिससे शहर के निर्यातकों की प्रतिस्पर्धी कोटेशन पीछे छूट रही है।
निर्यात विशेषज्ञों का कहना है कि अमेरिका ने भारत पर 50 प्रतिशत के मुकाबले वियतनाम पर लगभग 20 प्रतिशत और इंडोनेशिया पर 19 प्रतिशत टैरिफ लागू किया है। इसके चलते हैंडीक्राफ्ट, छोटे लेदर उत्पाद, खिलौने, कॉर्पोरेट ऐक्सेसरी, परिधान, फुटवियर और एग्रो-प्रोडक्ट जैसे छोटे माल पर इन देशों के निर्यातकों का दखल तेज हो गया है और इनमें कई ऐसे प्रोडक्ट हैं जिनमें कानपुर के भी बड़े हिस्सेदार हैं।
स्थानीय फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट ऑर्गनाइज़ेशन (FIEO) के सहायक निदेशक आलोक श्रीवास्तव ने बताया कि टैरिफ के बाद अमेरिकी बाजार की परिस्थितियां बदल रही हैं और इसका असर सबसे अधिक छोटे व गैर-पारंपरिक निर्यातकों पर पड़ा है। उन्होंने कहा कि इन निर्यातकों को नए बाजार खोजने व मूल्य निर्धारण, गुणवत्ता और ब्रांडिंग में तेजी से बदलाव लाने की आवश्यकता है।
माहौल और आंकड़े
- शहर से अमेरिका निर्यात का वर्तमान कारोबार लगभग 2,500 करोड़ रुपए के करीब आंका जाता है।
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इनमें से करीब 40% ऐसे छोटे निर्यातक हैं जो वियतनाम व इंडोनेशिया से प्रतिस्पर्धा झेल रहे हैं।
- बाजार संकेतों के अनुसार लगभग 20% अमेरिकी ऑर्डर फिलहाल होल्ड पर हैं।
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अफ़रा-तफरी के बीच विशेषज्ञों का अनुमान है कि 30 दिन के भीतर स्थिति में और बदलाव देखे जा सकते हैं।
निर्यात जगत के स्थानीय प्रतिनिधियों का कहना है कि हालिया कोटेशनों में कई बार कानपुर की कोटेशन्स महंगी पड़ रही हैं, जबकि वियतनाम और इंडोनेशिया की कोटेशन कम टैरिफ का लाभ उठाकर आकर्षक दिख रही हैं। ऐसे में छोटी यूनिटों वाले निर्यातकों को या तो लागत घटाने, मूल्य प्रतिस्पर्धा के नए उपाय अपनाने या वैकल्पिक विदेश बाजार तलाशने पर मजबूर होना पड़ेगा।
विशेष रणनीति की जरूरत
विशेषज्ञ सुझाव दे रहे हैं कि—
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उत्पादों की वैल्यू-एडिशन व पैकिंग-सिग्नलिंग सुधारी जाए,
- ब्रांडिंग व डिरेक्ट मार्केटिंग के जरिए अमेरिकी खरीदारों के साथ सीधा संपर्क मजबूत किया जाए,
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सरकारी व निर्यात संस्थाओं से फ़ायदे और सब्सिडी/बाज़ार सहायता हेतु समन्वय बढ़ाया जाए।
निर्यात क्षेत्र के नेता बता रहे हैं कि यदि तत्काल पहल न की गई तो छोटे निर्यातकों का बाजार हिस्सा घट सकता है और लंबे समय में यह स्थानीय अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक असर डाल सकता है। शहर के निर्यात व्यापारी अब अपनी रणनीतियों पर पुनर्विचार कर आगे की राह तय करने की चुनौती का सामना कर रहे हैं।
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