29 साल पहले साहूकारा से शुरू हुई परंपरा, आज शहर के गली मोहल्लों में गणेशोत्सव की धूम
शब्या सिंह तोमर, बरेली। महाराष्ट्र के सांगली से सर्राफा का कारोबार सीखने पहुंचे अनिल पाटिल का दावा है कि अपने मामा के घर रहते हुए 29 साल पहले बरेली में सार्वजनिक रूप से गणेशोत्सव मनाने की परंपरा की शुरुआत की। इससे पहले यहां बसने वाले मराठी परिवारों के घरों तक ही गणेशोत्सव बनाने की परंपरा रही। धीरे-धीरे गणेश चतुर्थी उत्सव की परंपरा विस्तार पाती गई और अब जिलेभर में 200 स्थानों पर गणेश महोत्सव मनाया जा रहा है।
मराठा बुलियन एसोसिएशन की श्री गणेश महोत्सव समिति के अध्यक्ष और सर्राफा कारोबारी अनिल पाटिल का कहना है कि वह 1996 में पहली बार महाराष्ट्र के सांगली जिले से बरेली में अपने मामा के साथ आए थे। कुछ दिनों बाद गणेश चतुर्थी पर्व था। इससे पहले बरेली में बसने वाले मराठी परिवार अपने घरों में ही गणेशोत्सव मनाते थे। उन्होंने साहूकारा में ही छोटी सी दुकान में गणेश जी की प्रतिमा स्थापित की। सात दिन का गणेशोत्सव मनाकर विसर्जन किया।
अगले साल आलमगिरीगंज में (जहां मराठी परिवार बसे थे) गणेशोत्सव भव्य रूप से मनाया गया। उस कार्यक्रम में स्थानीय सर्राफा व्यापारियों का भी सहयोग मिला। इसके बाद सार्वजनिक रूप से गणेशोत्सव मनाने की परंपरा शुरू हो गई। मूर्तियां महाराष्ट्र के सांगली से ही मंगाई जाती थीं। अनिल बताते हैं कि मूर्ति मंगाने में बहुत खर्च आता था। इसके बाद देखा-देखी साल-दर-साल आसपास के मोहल्लों में भी गणेशोत्सव के पंडाल लगने लगे।
पाटिल बताते हैं कि इनमें से कई लोगों ने मूर्ति मंगाने का आग्रह किया और उन लोगों ने किराये में सहयोग किया। वर्तमान में जिलेभर में 200 के करीब गणपति के पंडाल लगे हुए हैं। इनमें से कई आयोजक आज भी उनसे मूर्तियां मंगाने का आग्रह करते हैं। अब तक 15 राज्यों के करीब 600 से अधिक जिलों में गणेशोत्सव मनाने के लिए मूर्तियां पहुंचाई जा चुकी हैं। उन्होंने कहा कि गणेश चतुर्थी के माध्यम से युवाओं में भक्ति और उत्साह भरना है। वहीं, वर्ष 1988 में बरेली शहर में आकर बसे अनिल के मामा अविनाश पाटिल ने बताया, जब वह आए थे तो जिले में 60-62 मराठी परिवार पहले से रह रहे थे, लेकिन गणेश चतुर्थी मनाने की परंपरा केवल मराठी घरों तक ही परंपरा सीमित थी।
सोना-चांदी व्यापारियों को जोड़ा
अनिल पाटिल शुरू से ही सोना चांदी के काम से जुड़े रहे हैं, इसलिए उन्होंने मराठी मूल के सोना-चांदी व्यापारियों को एकजुट किया। वह बताते हैं केवल यूपी में ही एक लाख से अधिक व्यापारी उनसे जुड़े हैं। उत्तराखंड, गुजरात, मध्यप्रदेश, बिहार, पंजाब, जम्मू कश्मीर, कर्नाटक, तेलंगाना, आंध्रप्रदेश आदि राज्यों के सर्राफा कारोबारियों को जोड़ें तो यह संख्या 6 लाख के आसपास पहुंचती है।
