ट्रेड वॉर की आंधी में भारत: 50% टैरिफ से आगे का सफर

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Published By Virendra Pandey
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अमित पाण्डेय,लखनऊ,अमृत विचार । हाल ही में ट्रंप प्रशासन द्वारा भारतीय उत्पादों पर 50 प्रतिशत आयात शुल्क (टैरिफ) लगाया जाना भारतीय निर्यातकों के लिए एक तात्कालिक झटका है। लेकिन यह संकट भारत के लिए अपने आर्थिक ढांचे को मज़बूत करने, बाज़ारों में विविधता लाने और जरूरी सुधारों को तेज़ी से लागू करने का एक सुनहरा अवसर भी बन सकता है।

व्यापार में विविधता लाना जरूरी

भारत को किसी एक देश पर निर्भरता कम करनी होगी। चीन के साथ चयनात्मक व्यापारिक रास्तों को फिर से खोलना, रूस के साथ आर्थिक रिश्तों को गहरा करना और अफ्रीका, पश्चिम एशिया तथा दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में भारतीय उत्पादों की मान्यता के लिए प्रमाणन प्रक्रिया को तेज़ करना अब प्राथमिकता बन गई है। यह "स्ट्रैटेजिक हेजिंग" की रणनीति के अनुरूप है, जिसका उद्देश्य आत्मनिर्भरता नहीं बल्कि निर्णय की स्वतंत्रता बनाए रखना है।

घरेलू मांग को मजबूत करना

भारत की जीडीपी में 61.4 प्रतिशत योगदान पहले से ही घरेलू खपत का है। इसी को और मज़बूत करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस पर दो-स्तरीय जीएसटी (12 प्रतिशत और 28 प्रतिशत) की घोषणा की, जिसे तेजी से लागू किया जा रहा है। भले ही इसमें सभी राज्यों से सलाह नहीं ली गई, पर यह भारत को निवेश के लिए आकर्षक गंतव्य बनाए रखने का संकेत देता है।

इंडियन इंडस्ट्रीज़ एसोसिएशन (आईआईए) के अंतर्राष्ट्रीय मामले के चेयरमैन अमन अग्रवाल ने बताया कि डोनाल्ड ट्रंप की 50 प्रतिशत टैरिफ नीति निश्चित ही भारतीय उद्योगों के लिए चुनौतीपूर्ण है। लेकिन यदि हम सही रणनीति अपनाएं, विविध बाज़ारों की ओर ध्यान दें, उत्पादन लागत घटाएं और वैश्विक स्तर पर नवाचार करें, तो यह संकट भारतीय उद्योगों के लिए आत्मनिर्भरता और वैश्विक विस्तार का अवसर बन सकता है। अमेरिका की ओर से भारतीय उत्पादों पर 50 प्रतिशत तक आयात शुल्क लगाने का निर्णय भारत के निर्यात उद्योग पर बड़ा झटका है। अमेरिका भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है और 2023–24 में उसने करीब 77.52 अरब डॉलर के भारतीय सामान आयात किए। इस निर्णय से विशेषकर उत्तर प्रदेश जैसे राज्य, जहां लाखों लोग निर्यात आधारित उद्योगों में कार्यरत हैं, पर भारी असर पड़ रहा है।

उत्तर प्रदेश के प्रमुख निर्यात उद्योग, जैसे कालीन (भदोही, मिर्जापुर), पीतल (मुरादाबाद), चमड़ा (कानपुर, आगरा) और कृषि उत्पाद, अमेरिकी शुल्क वृद्धि से सीधे प्रभावित हुए हैं। अकेले कालीन उद्योग से अमेरिका को हर साल 6,000–7,000 करोड़ रुपये का निर्यात होता है, जिससे 8–10 लाख बुनकरों की आजीविका जुड़ी है।
इसी तरह, मुरादाबाद का पीतल उद्योग लगभग 3,500 करोड़, और यूपी से चमड़ा-फुटवियर का लगभग 4,000 करोड़ रुपये का निर्यात अमेरिका को होता है। अब इन उत्पादों की कीमतें बढ़ने से अमेरिकी बाज़ार में उनकी मांग घटेगी, और चीन, वियतनाम जैसे देश बाजार पर कब्जा जमा सकते हैं।

आईसीएमए लखनऊ चैप्टर के सचिव सीएमए अभिषेक मिश्रा के मुताबिक भारत को इस चुनौती को अवसर में बदलने के लिए अपने निर्यात बाजारों का विविधीकरण करना होगा – जैसे यूरोप और अफ्रीका। साथ ही, घरेलू मांग को प्रोत्साहित करना, उत्पादों की गुणवत्ता बढ़ाना, और वैश्विक ब्रांडिंग पर ज़ोर देना जरूरी है। सरकारी योजनाएं जैसे आरओडीटीईपी, ब्याज सब्सिडी और मार्केटिंग सहायता इस संकट को थोड़ा कम कर सकती हैं, लेकिन लंबी अवधि में भारत को आत्मनिर्भर और बाज़ार-लचीला बनाना होगा।

सीए आशीष कुमार पाठक, पूर्व अध्यक्ष, लखनऊ शाखा आईसीएआई ने कहा कि यदि अमेरिका भारतीय वस्तुओं पर 50 प्रतिशत टैरिफ लगाता है तो इसका सीधा असर हमारे निर्यात पर पड़ेगा। वस्त्र, फार्मा, स्टील एवं आईटी जैसे क्षेत्रों की प्रतिस्पर्धात्मकता घटेगी और अमेरिकी बाजार में भारतीय उत्पाद महंगे हो जाएंगे। इससे भारत का व्यापार संतुलन प्रभावित होगा तथा निर्यातकों की आय घट सकती है। हालांकि, यह भारत को नए वैश्विक बाजारों की तलाश और घरेलू खपत को बढ़ावा देने की दिशा में प्रेरित करेगा। दीर्घकाल में विविधीकरण से भारतीय अर्थव्यवस्था मजबूत रह सकती है।

सीए अनुराग पाण्डेय, चेयरमैन लखनऊ शाखा ने बताया कि अमेरिका द्वारा भारत से आयात होने वाले उत्पादों पर 50 प्रतिशत तक टैरिफ लगाने का निर्णय भारतीय अर्थव्यवस्था पर बहुआयामी प्रभाव डाल सकता है। इस नीति से कपड़ा, फार्मास्यूटिकल्स, कृषि और इंजीनियरिंग जैसे प्रमुख निर्यात क्षेत्रों में भारी गिरावट की आशंका है। इसके परिणामस्वरूप निर्यात आधारित लाखों नौकरियाँ प्रभावित हो सकती हैं। भारत का व्यापार घाटा बढ़ने की संभावना है, जिससे रुपये पर दबाव पड़ेगा और आयात महंगे हो सकते हैं। खासकर उन तकनीकी उत्पादों और मशीनरी पर, जिन्हें भारत अमेरिका से आयात करता है। इससे मुद्रास्फीति में इजाफा हो सकता है, जो आम जनता के लिए महंगाई बढ़ा सकता है। इसके अलावा, विदेशी निवेशक भारत की वैश्विक व्यापारिक स्थिति को लेकर सावधानी बरत सकते हैं, जिससे एफडीआई में गिरावट आ सकती है। आपूर्ति श्रृंखलाओं में भी विघटन संभव है, जो उत्पादन लागत को और बढ़ा सकता है। हालांकि, इस संकट के बीच भारत के पास रणनीतिक विकल्प भी हैं। देश अन्य देशों के साथ व्यापारिक साझेदारी को मज़बूत कर सकता है और घरेलू उद्योगों को प्रोत्साहित करके ‘आत्मनिर्भर भारत’ की दिशा में आगे बढ़ सकता है। क्षेत्रीय व्यापार, स्थानीय उत्पादन और नई तकनीकों में निवेश इस संकट से बाहर निकलने का रास्ता बन सकते हैं। संक्षेप में, यह टैरिफ नीति भारत के लिए एक तत्काल चुनौती है, लेकिन दीर्घकालिक रूप से यह आर्थिक पुनर्गठन और अवसरों के नए द्वार भी खोल सकती है।

व्यवसाय को आसान बनाना

इंडियन इंडस्ट्रीज एसोसिएशन (आईआईए) के सीईसी सदस्य अनुज गर्ग ने बताया कि कैबिनेट सचिव टी.वी. सोमनाथन और नीति आयोग के राजीव गौबा के नेतृत्व में दो उच्चस्तरीय समितियां बनाई गई हैं, जो अगली पीढ़ी के सुधारों पर सुझाव देगी। इनसे उम्मीद है कि लालफीताशाही घटेगी, प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी और वैश्विक निवेश आकर्षित होगा। संरचनात्मक सुधारों की शुरुआतयह टैरिफ संकट एक चेतावनी भी है कि अब ढांचागत सुधारों को और टालना मुमकिन नहीं। बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर, तर्कसंगत टैक्स व्यवस्था और उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (पीएलआई) स्कीम जैसे उपायों से भारत को निर्यातक देश के रूप में मजबूती मिलेगी। यह टैरिफ संकट भारत की विकास यात्रा का अंत नहीं बल्कि एक नया मोड़ है। यह भारत को एक मजबूत, आत्मनिर्भर और वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी अर्थव्यवस्था में बदलने का अवसर है।

डोनाल्ड ट्रंप की 50 प्रतिशत टैरिफ नीति भारतीय उद्योगों के लिए चुनौती और समाधान

अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा 50 प्रतिशत तक आयात शुल्क (टैरिफ) बढ़ाने की घोषणा भारतीय उद्योगों के लिए गंभीर चिंता का विषय है। यह कदम न केवल भारत के निर्यातकों की प्रतिस्पर्धा को प्रभावित करेगा, बल्कि भारतीय उद्योगों के लिए अमेरिकी बाज़ार में अपनी हिस्सेदारी बनाए रखना भी कठिन हो सकता है।
अमेरिका भारत के लिए एक प्रमुख निर्यात बाज़ार रहा है, खासकर इंजीनियरिंग, वस्त्र, फ़ार्मा, आईटी सेवाओं और कृषि उत्पादों के क्षेत्र में। यदि आयात शुल्क 50 प्रतिशत तक बढ़ा दिया जाता है, तो भारतीय वस्तुएं अमेरिकी बाज़ार में महंगी हो जाएंगी और चीन, वियतनाम, मेक्सिको जैसे देशों को तुलनात्मक लाभ मिल सकता है।
लेकिन चुनौतियां ही नए अवसरों का मार्ग प्रशस्त करती हैं। हमें इस संकट को अवसर में बदलना होगा।

भारतीय उद्योगों के लिए सुझावः

1. विविध बाजारों पर ध्यान
हमें केवल अमेरिका पर निर्भर नहीं रहना चाहिए। एशिया, अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और यूरोप के उभरते बाज़ारों में भारतीय उत्पादों की बड़ी मांग है। निर्यातकों को अपनी रणनीति में इन बाजारों को प्राथमिकता देनी चाहिए।

2. उत्पाद नवाचार और वैल्यू एडिशन
हमें केवल कम लागत पर प्रतिस्पर्धा नहीं करनी चाहिए, बल्कि उत्पाद की गुणवत्ता, नवाचार और ब्रांड वैल्यू पर पर ध्यान देना चाहिए। उच्च गुणवत्ता वाले और विशेषीकृत उत्पाद ही ऊंचे शुल्क के बावजूद प्रतिस्पर्धी रह सकते हैं।

3. द्विपक्षीय वार्ता और व्यापार समझौते

भारत सरकार को अमेरिका के साथ बातचीत कर भारतीय उद्योगों के लिए छूट या विशेष व्यापार समझौतों की संभावनाओं पर काम करना चाहिए। इसके अलावा अन्य देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौतों (एफटीए) को भी तेजी से आगे बढ़ाना चाहिए।

4. घरेलू लागत प्रतिस्पर्धा में सुधार

यदि भारत में उत्पादन लागत कम होगी, तो हम ऊंचे शुल्क के बावजूद वैश्विक बाजार में टिक सकते हैं। इसके लिए लॉजिस्टिक्स, ऊर्जा और वित्तीय लागत में सुधार की आवश्यकता है।

5. डिजिटल और ई-कॉमर्स अवसर

अमेरिकी उपभोक्ताओं तक सीधे पहुंचने के लिए भारतीय उद्योगों को ई-कॉमर्स और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स का उपयोग करना चाहिए। इससे बिचौलियों की लागत घटेगी और उत्पाद अमेरिकी उपभोक्ताओं तक बेहतर दाम पर पहुँच सकेंगे। 

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