CBI जांच सुस्त... मौज में आयोग की भ्रष्ट टीम, 2012-17 तक UPPSC की 600 परीक्षाओं की जांच अटकी
अभी भी अभिलेख देने में आयोग के अफसर बने रोड़ा
लखनऊ, अमृत विचार: यूपीपीएससी की भर्तियों में भ्रष्टाचार की कालिख सिर्फ पिछली सरकार पर नहीं थी, बल्कि वर्तमान प्रशासनिक निष्क्रियता भी इसका हिस्सा बन चुकी है। सीबीआई यदि निष्पक्षता से जांच कर पाई, तो कई बड़े चेहरों की कलई खुल सकती है। लेकिन जिस तरह से आयोग मौन है और सीबीआई थकी हुई है, उससे साफ है कि भ्रष्ट टीम अभी भी मौज में है।
उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग (यूपीपीएसी) की सपा सरकार में हुई करीब 600 भर्ती परीक्षाएं आज भी संदेह के घेरे में हैं। बसपा सरकार में जारी एपीएस-2010 परीक्षा को सपा सरकार में अंतिम रूप देने से अनियमितताओं की शुरूआत हुई थी। जो निरंतर वर्ष 2016 में स्वास्थ्य विभाग में एक्स-रे टेक्नीशियन भर्ती तक निर्बाध जारी रही। अभ्यर्थियों ने भारी अनियमितताओं के गंभीर आरोप लगाए, तो वर्ष 2017 के चुनाव में यह बड़ा मुद्दा भी बना। सरकार बनते ही वर्ष 2018 में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सीबीआई जांच की सिफारिश की।
सीबीआई ने 2019 में जांच शुरू की थी। अब तक आयोग को 14 से अधिक पत्र भेजे जा चुके हैं, जिनमें एपीएस-2010, पीसीएस-2015 और अन्य प्रमुख परीक्षाओं से जुड़े दस्तावेज मांगे गए थे। लेकिन हर बार आयोग की ओर से या तो देरी से जवाब आया या फिर अधूरे कागज भेजे गए। सीबीआई के अनुसार, भर्ती प्रक्रिया में सिस्टम एनालिस्ट, अनुभाग अधिकारी और समीक्षा अधिकारी की संदिग्ध भूमिका सामने आई तो 2021 में तीन अधिकारियों के खिलाफ पीसी अधिनियम की धारा 17-ए के तहत अभियोजन की अनुमति मांगी गई थी, जो 2025 में मिली, लेकिन सेवानिवृत अधिकारियों के खिलाफ आज भी टालमटोल हो रही है।
आयोग बना सबसे बड़ी बाधा
इलाहाबाद हाईकोर्ट में कई केस लंबित हैं, जहां सीबीआई को समय-समय पर प्रगति रिपोर्ट दाखिल करनी होती है। लेकिन जांच की धीमी रफ्तार और आयोग का असहयोग सरकार की भी छवि पर असर डाल रहा है। पीड़ित अभ्यर्थियों का कहना है कि अगर सीबीआई को पूरा रिकॉर्ड समय से मिल जाता तो दर्जनों अफसर अब तक जेल में होते। आयोग की टीम खुद भ्रष्टाचार में लिप्त है, इसलिए जानबूझकर फाइलें रोकी जा रही हैं।
सपा शासनकाल की ‘यादव लॉबी’ पर आरोप
2012-2016 के बीच यूपीपीएससी अध्यक्ष रहे डॉ. अनिल यादव पर जातीय पक्षपात और भाई-भतीजावाद के गंभीर आरोप लगे थे। 2017 के चुनावों में भाजपा ने इसे प्रमुख चुनावी मुद्दा बनाया था, जिसके चलते विपक्ष पर सवाल उठे और सत्ता परिवर्तन हुआ। लेकिन आज भी न्याय की प्रक्रिया अधूरी है।
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