सिनेमैटोग्राफी में करियर संवाद मालामाल हो सकता है यंगिस्तान
यूं तो पहाड़ के लोगों ने हर फील्ड में अपनी उपस्थिति दर्ज कराकर अच्छा नाम कमाया, लेकिन एक ऐसी भी दुनिया रही, जिसमें तकनीकी तौर पर उनकी भूमिका शून्य थी। चकाचौंध भरी इस फिल्मी दुनिया में रंगमंच और अभिनय के क्षेत्र में कई नामी चेहरे उभरे, लेकिन संभवत: पहाड़ से पहली बार सिनेमैटोग्राफी को अपना कॅरियर बनाने की ठानने वाले नैनीताल के राजेश साह का नाम आज की तारीख में माया नगरी में स्थापित हो चुका है।
राजेश साह बताते हैं कि आज अभिभावक अपने बच्चों को इंजीनियर, डॉक्टर या फिर अफसर बनाना चाहते हैं, लेकिन इस फील्ड की ओर किसी का ज्यादा ध्यान नहीं है। वे युवाओं से कहते हैं कि अगर आपके भीतर टैलेंट के साथ क्रिएटिविटी है तो इस ओर भी कदम बढ़ाना चाहिए, क्योंकि इस फील्ड में पैसा इतना है कि संभालना मुश्किल हो जाए। घंटों के हिसाब से पेमेंट होता है। बताते हैं कि सिनेमैटोग्राफी एक कला और तकनीक का संगम है, जो किसी फिल्म, धारावाहिक या वीडियो के दृश्यात्मक प्रस्तुतिकरण को दर्शाता है। यह कैमरे के माध्यम से कहानी कहने की प्रक्रिया है, जिसमें प्रकाश, फ्रेमिंग, मूवमेंट, एंगल, रंग और कैमरा सेटिंग्स का समुचित उपयोग किया जाता है। सिनेमैटोग्राफर, जिसे डायरेक्टर ऑफ फोटोग्राफी (डीओपी) भी कहा जाता है, निर्देशक के साथ मिलकर यह तय करता है कि हर दृश्य को कैसे शूट किया जाएगा ताकि दर्शकों पर गहरा प्रभाव पड़े। सिनेमैटोग्राफी का उद्देश्य केवल सुंदर चित्र बनाना नहीं, बल्कि भावनाओं और कथानक को प्रभावी रूप से व्यक्त करना भी होता है।
राजेश बताते हैं कि आधुनिक सिनेमैटोग्राफी में ड्रोन, स्टेडीकैम, क्रेन और डिजिटल कैमरों का प्रयोग बढ़ गया है, जिससे दृश्य और भी जीवंत और गतिशील हो गए हैं। उनके हिसाब से सिनेमैटोग्राफी फिल्म निर्माण की आत्मा है, जो दृश्य माध्यम को कला का रूप देती है और दर्शकों को एक अद्वितीय अनुभव प्रदान करती है। वे युवाओं के लिए कहते हैं कि अगर आपके अंदर कुछ अलग करने का जज्बा और लगन है तो इस फील्ड में भविष्य उज्जवल है।
यहां से कर सकते हैं कोर्स
सिनेमैटोग्राफर राजेश साह के अनुसार आप भारत में फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (एफटीआईआई), व्हिसलिंग वुड्स इंटरनेशनल (डब्ल्यूडब्ल्यूआई), सत्यजीत रे फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट (एसआरएफटीआई) जैसे संस्थानों से सिनेमैटोग्राफी के कोर्स कर सकते हैं। इसके अलावा आफ्ट, एनआईडी जैसे अन्य शीर्ष संस्थान भी हैं।
संघर्ष के बाद मिली सफलता
राजेश ने नैनीताल के सेंट जोजफ कॉलेज से पढ़ाई कर लखनऊ यूनिवर्सिटी से एमबीए किया। एफटीआई पुणे से तीन वर्ष का कोर्स कर फिल्म इंडस्ट्री मुंबई पहुंचे तो शुरुआत में काफी संघर्ष करना पड़ा। आखिरकार उन्हें साल 1993 में संजय दत्त की खलनायक फिल्म में अशोक मेहता के साथ काम करने का मौका मिला। यह उनकी पहली फिल्म थी। इसके बाद उन्होंने थ्री इडियट, बरसात, लगे रहो मुन्ना भाई, एक हसीना थी, जानी गद्दार, 1942 ए लव स्टोरी, छू लेंगे आकाश, कभी पास कभी फेल, राजू बन गया जेंटलमैन, इस रात की सुबह नहीं जैसी तमाम सुपरहिट फिल्मों में काम किया।
लेखक
हरीश उप्रेती करन
