कानपुर : माघ मेला के पहले गंगा नदी को मैला कर रहे नाले, बायोरेमेडिएशन के नाम पर खानापूर्ति

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Published By Deepak Mishra
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कानपुर, अमृत विचार। माघ मेले के पहले शहर में गंगा का पानी मैला हो रहा है। शहर के गंगा घाटों पर गिर रहे छह अनटैप्ड सीवेज नालों से बिना शोधन के ही दूषित पानी बहाया जा रहा है। नालों के पास जैविक शोधन के लिये स्थापित डोजिंग प्लास्टिक टैंक में सीडिंग और माइक्रोबियल कल्चर ही गायब है। जिसकी वजह से गंगा आचमन लायक नहीं है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की जांच में भी पानी के सैंपल लगातार फेल मिल रहे हैं। यदि ऐसे ही रहा तो यह शहर के साथ ही प्रयागराज तक के लिए घातक साबित होगा।

उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार कानपुर नगर में गंगा नदी में छह सीवेज नाले डब्का, सत्तीचौरा, गोलाघाट, रानीघाट, परमिया और भगवतदास गुप्तारघाट में जैविक शोधन (बायोरेमिडिएशन) का कार्य हो रहा है। यह कार्य नगर निगम द्वारा अनुबंधित संस्था मेसर्स विशान्त चौधरी कांट्रैक्टर जेवी, मेसर्स नेक्सजेन इन्फोवर्ड प्रा. लि. अलीगढ़ कर रही है। गुरुवार को जब अमृत विचार की टीम ने भगवतदास और गोलाघाट के पास गंगा में गिर रहे नालों को देखा तो यहां काला मटमैला पानी गंगा नदी में जाता मिला।

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यही नहीं यहां बायोरेमेडिएशन नाम की कोई चीज नहीं होती मिली। स्थानीय घाट के लोगों ने बताया कि नाले का पानी सीधा गंगा नदी में जा रहा है। इसके बाद गोलाघाट पर भी यही देखने को मिला। यहां भी नाले का सीवेज सीधा गंगा नदी के पानी को दूषित कर रहा था। इस बारे में जब यूपीपीसीबी के क्षेत्रीय अधिकारी अजीत सुमन के मोबाइल नंबर पर संपर्क करने की कोशिश की गई तो उन्होंने फोन नहीं उठाया, इसके साथ ही मीटिंग में होने का हवाला देते हुए फोन को काट दिया। 

5 लाख महीना जुर्माना लगाने को लिखा था पत्र

यूपीपीसीबी के अधिकारियों ने पिछले दिनों गंगा नदी में गंदगी प्रवाहित करने में प्रतिमाह पांच लाख रुपये का जुर्माना लगाने के लिये डीएम व संबंधित अधिकारियों को लिखा था। इसके साथ ही गंगा नदी की गुणवत्ता बनाये रखने के लिये नगर निगम को पत्र भी लिखा था। लेकिन, इसके बावजूद गंगा नदी की देखभार में भारी चूक की जा रही है। 

जानिए क्या है बायोरेमेडिएशन

बायोरेमेडिएशन टेक्नोलॉजी में जैविक विधि से नाले के पानी को साफ किया जाता है। इस टेक्नोलॉजी में कुछ ऐसे घास और पौधे होते हैं, जिनकी जड़ों में बैक्टीरिया पैदा होते हैं। बायोरेमेडिएशन टेक्नोलॉजी में केना घास समेत अन्य घास को नालों में लगाया जाता है। इसमें पनपने वाले बैक्टीरिया नालों में बहने वाली गंदगी को खाते हैं,  साथ ही सफाई में काफी सहायक हैं। सीवेज ट्रीटमेंट प्लांटों (एसटीपी) में भी इस विधि का इस्तमाल किया जाता है। बायोरेमिडियेशन कार्य में 73 लाख रुपये हर साल खर्च हो रहा है।

नंबर गेम: 
5 लाख महीना जुर्माना लगाने को लिखा था पत्र
73 लाख रुपये बायोरेमिडिएशन में हर साल खर्च
2 महीने के बाद माघ मेला होगा शुरू **

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