Glorious 150 years of 'Vande Mataram': 'वंदे मातरम्' 150 साल बाद भी राष्ट्रवाद की अमर ज्योति प्रज्वलित कर रहा हैः अमित शाह 

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Published By Muskan Dixit
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नई दिल्ली। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने शुक्रवार को कहा कि ‘वंदे मातरम्’ देशवासियों के हृदय में राष्ट्रवाद की अमर ज्योति को आज भी प्रज्वलित करता है और यह युवाओं में एकता, देशभक्ति तथा नवीन ऊर्जा का स्रोत बना हुआ है। भारत के राष्ट्रीय गीत ‘वंदे मातरम्’ की रचना की 150वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में सात नवंबर 2025 से सात नवंबर 2026 तक मनाए जाने वाले एक साल के स्मरणोत्सव के अवसर पर ‘एक्स’ पर पोस्ट किए गए एक संदेश में शाह ने कहा कि यह गीत केवल शब्दों का संग्रह नहीं है बल्कि यह भारत की आत्मा की आवाज है।

शाह ने कहा, ‘‘अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ ‘वंदे मातरम्’ ने पूरे देश को एकजुट किया और स्वतंत्रता की चेतना को सशक्त बनाया। साथ ही इस गीत ने क्रांतिकारियों के भीतर मातृभूमि के प्रति अटूट समर्पण, गर्व और बलिदान की भावना को भी जागृत किया।’’ उन्होंने कहा कि यह गीत आज भी देशवासियों के हृदय में राष्ट्रवाद की अमर ज्योति प्रज्वलित करता है और युवाओं में एकता, देशभक्ति तथा नवीन ऊर्जा का स्रोत बना हुआ है।

शाह ने कहा, ‘‘हमारा राष्ट्रीय गीत इस वर्ष अपने 150 वर्ष पूरे कर रहा है।’’ उन्होंने नागरिकों से आह्वान किया कि वे अपने परिवारों के साथ ‘वंदे मातरम्’ का पूरा संस्करण सामूहिक रूप से गाएं ताकि यह भावी पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का केंद्र बना रहे। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी शुक्रवार को यहां इंदिरा गांधी इनडोर स्टेडियम में राष्ट्रीय गीत के वर्षभर चलने वाले उत्सव का उद्घाटन करेंगे और एक स्मारक डाक टिकट एवं सिक्का भी जारी करेंगे। यह कार्यक्रम उस गीत के वर्षभर चलने वाले राष्ट्रव्यापी आयोजन की औपचारिक शुरुआत का प्रतीक होगा, जिसने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन को प्रेरित किया और आज भी राष्ट्रीय गौरव एवं एकता की भावना को जागृत करता है।

‘वंदे मातरम्’ की रचना बंकिम चंद्र चटर्जी ने की थी और इसे पहली बार सात नवंबर 1875 को साहित्यिक पत्रिका ‘बंगदर्शन’ में प्रकाशित किया गया था। एक सरकारी बयान के अनुसार, ‘‘बाद में बंकिम चंद्र चटर्जी ने इस स्तुति को अपने प्रसिद्ध उपन्यास ‘आनंदमठ’ में शामिल किया जो 1882 में प्रकाशित हुआ। इसे रवींद्रनाथ टैगोर ने संगीतबद्ध किया था। यह गीत राष्ट्र की सांस्कृतिक, राजनीतिक और सभ्यतागत चेतना का अभिन्न हिस्सा बन चुका है।’’

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