कथा श्रवणभक्ति- साधना का मुख्य साधन

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Published By Anjali Singh
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साधना के अनेक मार्ग हैं, परंतु जो मार्ग सबसे सरल, सहज और हृदयस्पर्शी है- वह है श्रवण-भक्ति। भक्ति के दो प्रमुख स्तंभ माने गए हैं- भजन और श्रवण। भजन आत्मा का गीत है और श्रवण उस गीत की प्रतिध्वनि। भजन में हृदय बोलता है और श्रवण में हृदय सुनता है। भजन करने के भी कई विधान हैं। यदि आपने गुरु धारण किया है, तो हरेक गुरु अपने शिष्य को भजन करने का भिन्न-भिन्न तरीका बताता है। यह तो सर्वविदित है कि भजन केवल भगवान के लिए ही किया जाता है। 

भगवत प्राप्ति अथवा मोक्ष, भजन का लक्ष्य होता है। भजन करने वाला जीव यह समझ ले कि भजन केवल भगवान के लिए ही किया जाना है। भजन, केवल भक्त के हृदय में बैठे भगवान के लिए ही होना चाहिए। भजन की उच्चतम स्थिति है, भगवान का वियोग, जो भक्त प्रभु का वियोग एक पल भी न सह सके- वही सही भजन करने का उत्तराधिकारी है।- अशोक सूरी. आध्यात्मिक लेखक

भक्ति अथवा साधना का मुख्य साधन है- कथा श्रवण। कथाओं में सर्वोत्तम कथा श्रीमद्भागवत बताई गई है। श्रीमद्भागवत परम संहिता है इसे पंचम वेद की संज्ञा दी जाती है। यह परमहंसो का धन है। प्रभु की कथा सुनने से भक्त की सूक्ष्म दृष्टि प्रभु में लग जाती है। सांसारिक दृष्टि से उसकी मृत्यु हो जाती है। भागवत-कथा अमृत है, जिसे पूर्णरूपेण पीना पड़ता है। कथा श्रवण भौतिक अमृत है, इसका भी लाभ मिलता है, परंतु कथा श्रवण का पूर्ण लाभ कथा को अपने हृदय में धारण करने से प्राप्त होता है। 

भोजन की तरह कथा को भी पचाना पड़ता है। जिस प्रकार भोजन पचने के उपरांत शरीर को लाभ देता है, उसी प्रकार जब कथा श्रवण के उपरांत हृदय में पच जाती है, तभी उसका प्रतिफल प्राप्त होता है। भागवत कथा श्रवण करने से जीव के जन्म-जन्म के पाप का हरण होता है एवं मंगल को प्राप्त होता है। आजकल नगरों में और मंदिरों में भागवत कथा के आयोजन की प्रथा बहुतायत में हो रही है। इस आयोजन को हम आयोजक अथवा यजमान द्वारा किया गया कथा का दान भी कह सकते है। कथा का दान भी परम कल्याणकारी है। 

कथा का आयोजन यज्ञ के समान पुण्यदायक है। यद्यपि यह दान समर्थ और योग्य व्यक्ति ही कर सकते हैं। कथा आयोजन से हजारों भक्तों को कथा श्रवण का लाभ मिलता है, जिसका पुण्य लाभ कथा आयोजक के हिस्से में भी निश्चित रूप से आता है। निष्काम भाव से किया गया भागवत कथा आयोजन राजसूय यज्ञ के पुण्य लाभ के बराबर होता है। कथा के आयोजन से भक्त अपने साथ-साथ अपने पूर्वजों का भी उद्धार कर लेता है। कृति के द्वारा कर्ता तो रहता है, परंतु कर्म से व्यक्ति अमर हो जाता है।

रामकथा, भागवत, भक्तमाल आदि कथाओं में शास्त्रों में सब कुछ लिखा है, लेकिन हृदय में समाविष्ट नहीं होता है। अंदर बढ़ता है, श्रवण से। जब किसी महापुरुष अथवा संत द्वारा उसकी अनुभूति से युक्त शब्दों द्वारा कथा का वाचन एवं श्रोताओं द्वारा श्रवण होता है तभी कथासार अंदर बैठता है। जैसे हमें शिक्षा प्राप्ति के समय हमारे गुरुजन बोलकर पढ़ाते हैं और विद्यार्थी श्रवण करके ही विद्या प्राप्त करते हैं। बिना श्रवण किए विद्या प्राप्त नहीं हो सकती है और जैसे शृंगाली स्वयं पहले खाकर आती है और फिर चबाकर अपने बच्चों के मुख में डाल देती है, तो वह बच्चों को हजम हो जाता है। 

ठीक उसी प्रकार संत सद्गुरु पहले ग्रंथों को आत्मसात करते हैं और तदुपरांत औरों को श्रवण कराते है। परंतु केवल सुनने मात्र से ही कथा से आत्म साक्षात्कार नहीं होता अपितु कथा को मनन करने एवं हृदय में धारण करने से होता है, लेकिन प्रथम होता, तो श्रवण ही है। श्रवण भक्ति नवधाभक्ति की एक मुख्य विधा है। श्रोता को कथा प्राप्ति के लिए प्रथम अधिकारी बनना पड़ता है और यह होता है, सत्य और संत कृपा से।