मेघालय की मनोरम जयंतिया पहाड़ी
मेघालय की राजधानी शिलांग से कोई 275 किलोमीटर दूर पश्चिम जयंतिया हिल्स जिले में बेहद ऊंची पहाड़ी पर विराजमान पर है शक्तिपीठ, जहां आम दिनों में तो सन्नाटा रहता है, लेकिन नवरात्र के दौरान यहां भक्तों का बड़ा सैलाब उमड़ता है और फिर रौनक देखते बनती है। पूजा-अर्चना, साधना, अराधना, भजन-कीर्तन और देवी मां के जयकारे के बीच बलि भी अर्पण की जाती है। चार दिन केले के पेड़ की पूजा कर उसे पास की नदी में विसर्जित कर दिया जाता है। वहां की सरकार सहयोग करती है। यहां आध्यात्मिक ऊर्जा महसूस की जा सकती है।--- शैलेश अवस्थी
छह सौ साल पहले राजा ने बनवाया था मंदिर
पुजारी अनिल देशमुख के मुताबिक कोई छह सौ साल पहले यहां राजा धन मनिक का साम्राज्य था। कहा जाता है कि उन्हें सपने में देवी ने दर्शन दिया और बताया कि जयंतिया पहाड़ी पर वह विराजमान हैं, वहां भवन बनवा दें। राजा ने वहां भव्य दुर्गा मंदिर का निर्माण करवाया और पूजा-अर्चना शुरू हो गई। 1987 में केंद्र सरकार ने इसका जीर्णोद्धार करवाया। अथिति गृह, पेयजल और वहां तक पहुंचने के लिए पक्की सड़क भी बनवाई। पहाड़ियों के बीच बने इस मंदिर के आसपास का दृश्य बेहद मनोरम है। हरियाली और झरने मनमोहक हैं।
यहां गिरी थी देवी सती की बाईं जंघा
मान्यता है कि इस स्थान पर देवी सती की बाई जंघा गिरी थी। इसी कारण यह 51 शक्तिपीठ में से एक है। भगवान शंकर जब देवी सती का शव उठाकर ब्रह्मांड में दुखी होकर विचरण कर रहे थे, तो शव के अंग 51 स्थानों पर गिरे और वे स्थान शक्तिपीठ कहलाए। उनमें से एक यह भी है। अमूमन श्रद्धालु असम के गुहावटी में स्थित मां कामाख्या के दर्शन कर लौट जाते हैं, लेकिन इस शक्तिपीठ की जानकारी न होने से यहां तक नहीं पहुंच पाते हैं।
अखंड ज्योति, पूजा-अर्चना और बलि भी
इस मंदिर में नवरात्र में उत्सव के दौरान बलि भी दी जाती है और इसके लिए खासतौर पर स्थान बनाया गया है। भजन-कीर्तन, पूजा, साधना और भंडारा होता है। देवी को अर्पण करने के लिए शृंगार का सामान मिलता है। ताजे फूल तो अमूमन नवरात्र में मिलते हैं। यहां बंगाल और असम के श्रद्धालुओं का जमावड़ा खासतौर पर होता है। यहां देवी दुर्गा के अलावा हनुमान, राम और कृष्ण जी की भी प्रतिमाएं स्थापित हैं। बेहद शांत इस स्थान को ध्यान और अराधना के लिए खास माना जाता है।
इस तरह पहुंच सकते हैं
गुहावटी तक ट्रेन या हवाई जहाज तक पहुंच सकते हैं। फिर टैक्सी से 275 किलोमीटर दूर जयंतिया जिले में स्थित इस शक्तिपीठ तक पहुंचा जा सकता है। चाहें तो शिलांग ठहर कर वहां के नजारे देख सकते हैं और फिर वहां से चेरापूंजी भी जा सकते हैं। पहाड़ी तक पक्की सड़क है और वाहन वहां तक जाते हैं।
