नियमों के जाल में फंसे लाल बंदर: न वन विभाग, न नगर निगम, कोई जिम्मेदारी नहीं
घंटों तड़पते रहते घायल और बीमार बंदर, नहीं मिलती मदद
प्रशांत सक्सेना, लखनऊ, अमृत विचार : लाल मुंह वाले बंदरों का रखवाला कौन है? ये बंदर नगर और ग्रामीण क्षेत्रों के नियमों में ऐसे फंसे हैं कि इनका इलाज तक करने वाला कोई नहीं। अक्सर किसी न किसी दुर्घटना में घायल यह वन्यजीव सड़क पर ही दम तोड़ देते हैं। ऐसे में वन विभाग बंदरों को अपने अधिनियम से बाहर बताता है तो नगर निगम, नगर पालिका, नगर पंचायत और ग्राम पंचायतें भी इन्हें अपने कार्य क्षेत्र से बाहर बताती हैं। विभागों के पल्ला झाड़ लेने से इन्हें उपचार तक नहीं मिल पाता है और इनकी मौत हो जाती है। इन महकमों के पास घायल और बीमार बंदरों के उपचार और संरक्षण की कोई व्यवस्था नहीं है।
इन विभागों के पास बंदरों को शामिल करने का कोई स्पष्ट आदेश नहीं है न ही स्थानीय स्तर पर घायल बंदरों को पकड़ना, उनका इलाज करना और उन्हें सुरक्षित रखने की कोई व्यवस्था है। फिर भी ऐसी घटनाओं पर बड़े शहरों में अफसरों के निर्देश पर गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) से मदद मांगी जाती है। लेकिन, छोटे जिलों और खासकर ग्राम पंचायतों के पास किसी तरह की व्यवस्था नहीं हैं। ज्यादातर बंदर सड़क हादसे व करंट से झुलसकर घायल मिलते हैं और घंटों इनकी मदद विभागीय खींचतान की वजह से नहीं हो पाती है। वहीं, लंगूर बंदर वन विभाग के अधीन है। फिर भी इनके उपचार और संरक्षण में टीम देर सबेर पहुंचती है या फिर मदद नहीं मिलती है।
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केस-1 अयोध्या में नहीं मिली मदद, हो गई मौत
- नवंबर में अयोध्या के गणेश नगर में पैरालाइज्ड बंदर की सूचना लोगों ने वन विभाग और नगर निगम को दी। रात में मदद नहीं मिली और दिन में घंटों विभागीय खींचतान में मौत हो गई। जबकि समय रहते बचाया जा सकता था।
केस-2 वन विभाग ने घायल लंगूर को ही बता दिया बाहर
- नवंबर में अयोध्या के मिल्कीपुर के ग्राम कुचेरा में करंट से झुलसे लंगूर की सूचना वन विभाग को दी गई। वन ने दो दिन तक रेस्क्यू न करके ग्राम पंचायत पर जिम्मेदारी डाल दी। वन मुख्यालय के निर्देश रेस्क्यू करके उपचार किया गया।
केस-3 राजधानी में तड़पता रहा झुलसा बंदर
- अक्टूबर में लखनऊ के आलमबाग में करंट से झुलसे लाल मुंह के बंदर की लोगों ने नगर निगम को सूचना दी। नगर निगम ने अपने कार्य क्षेत्र से बाहर बता दिया। घंटों बंदर तड़पता रहा। हालांकि काफी देर बाद नगर निगम ने एक एनजीओ से रेस्क्यू कराया।
केस-4 बांदा में तड़पता रहा बंदर
- करीब तीन माह पहले बांदा के ग्रामीण क्षेत्र में करंट से दोनों पैर झुलसे बंदर की सूचना पर वन विभाग ने पल्ला झाड़ लिया। ग्राम पंचायत के पास मदद के इंतजाम नहीं थे। इस खींचतान में डीएम के निर्देश पर पशु चिकित्सक ने जान जोखिम में डालकर उपचार किया था।
