मेरा शहर मेरी प्रेरणा: बरेली के पहले सांसद सतीश चंद्र ने संविधान के निर्माण में निभाई थी अहम भूमिका

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Published By Monis Khan
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देश के संविधान के निर्माण में बरेली की भी भागीदारी रही है। संविधान के निर्माण के लिए देश भर से चुने गए 389 सदस्यों में से बरेली के दो स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भी रहे। इसमें एक थे सतीश चंद्र। सतीश चंद्र ने आजादी मिलने के बाद कई मंत्रालयों में डिप्टी मिनिस्टर रहकर बरेली का प्रतिनिधित्व किया। शहर के आलमगिरीगंज निवासी सतीश चंद्र देश को आजादी दिलाने के आंदोलन में तीन बार जेल में सलाखों के पीछे गए। दो साल तक भारतीय संविधान सभा के सदस्य रहे। 

संविधान की स्वीकृति के बाद वर्ष 1950 से 1952 तक देश की अंतरिम संसद के सदस्य रहे। उसी समय इनकी योग्यता, कार्यक्षमता से प्रभावित होकर प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने वर्ष 1951 में इन्हें अपना संसदीय सचिव नियुक्त किया था। वर्ष 1952 में वह बरेली के पहले सांसद बने थे। इसके बाद अगले ही चुनाव में फिर सांसद चुने गए। तीसरी बार 1971 में सांसद चुने गए। इस दौरान वह कई मंत्रालयों में डिप्टी मिनिस्टर यानी उपमंत्री भी रहे थे। पंडित नेहरू के अलावा वह पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री और इंदिरा गांधी के करीबियों में गिने जाते थे। जानकार बताते हैं कि बरेली संसदीय क्षेत्र की शुरुआत 1952 में सिर्फ तीन लाख 41 हजार वोटरों के साथ हुई थी, जो अब 18 लाख का आंकड़ा पार कर चुकी है। 

आजादी के बाद 1952 में देश के पहले आम चुनाव में बरेली संसदीय क्षेत्र की पहचान बरेली साउथ सीट के नाम से थी। आंवला और बहेड़ी भी इसी संसदीय क्षेत्र में शामिल होने के बावजूद मतदाताओं की संख्या तीन लाख 41 हजार 976 थी। चुनाव में 1,29,142 लोगों ने ही मतदान किया था। 66,740 वोट पाकर सतीश चंद्र पहले सांसद चुने गए थे। 1957 में चार लाख तीन हजार 446 मतदाता हो गए। इस चुनाव में एक लाख 86 हजार 971 वोट पड़े। 

सतीश चंद्र 94727 वोट पाकर दूसरी बार संसद पहुंचे। परिसीमन के बाद 1967 में भारी  वृद्धि के साथ मतदाता संख्या पांच लाख 13 हजार 149 पर पहुंच गई। चुनाव में दो लाख 82 हजार 35 वोट पड़े, जिनमें से एक लाख 12 हजार 698 वोट पाकर बीबी लाल सांसद बने थे। पांचवीं लोकसभा के लिए 1971 में हुए चुनाव में पांच लाख 49 हजार 804 वोटर थे। इसमें से दो लाख 33 हजार 418 वोट पड़े और एक लाख 15 हजार 495 वोट पाकर सतीश चंद्र तीसरी बार संसद पहुंचे थे। अब उनके बेटे सिविल लाइंस में आवास विकास कालोनी में परिवार के साथ रहते हैं।

शिक्षामंत्री बन नवल किशोर ने शिक्षा तो दरबारी लाल ने चिकित्सा क्षेत्र में प्रदेश को आगे बढ़ाया
बारादरी थाना क्षेत्र के जगतपुर निवासी दरबारी लाल शर्मा ने बरेली का डंका पूरे भारत में चिकित्सा क्षेत्र में लहराया।1930 के आंदोलन में एक वर्ष कैद काटने वाले दरबारी लाल शर्मा इंडियन मेडिकल बोर्ड के सदस्य रहे। उत्तर प्रदेश विधान परिषद के सदस्य रहने के साथ जिला परिषद के अध्यक्ष भी बने। वहीं उनकी कुसुम कुमारी जिला परिषद बरेली की सदस्या रहीं। वहीं, आंवला निवासी नवल किशोर पुत्र रघुवर दयाल ने 1941-42 के व्यक्तिगत सत्याग्रह और भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया। 

जिला बोर्ड बरेली के सदस्य और बोर्ड की जिला समिति के चेयरमैन रहे। 1948-1949 में रामपुर से विधानसभा के सदस्य रहे थे। 1955 से लेकर 1960 तक विधानसभा की प्रक्कलन समिति के सभापति रहे। उत्तर प्रदेश विधानसभा में कांग्रेस लेजिसलेचर पार्टी के सचिव और यूनिवर्सिटी एजुकेशन कमेटी के वाइस चेयरमैन रहे। 1959 में भारत के प्रतिनिधि के रूप में कामनवेल्थ एसोसिएशन कान्फ्रेंस कैनवेरा (आस्ट्रेलिया) गए। 1961 में गृह तथा कृषि विभाग के उप मंत्री नियुक्त हुए थे। उत्तर प्रदेश सरकार में शिक्षामंत्री भी रहे।

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