संपादकीय: सामयिक चेतावनी
विदेश मंत्री एस जयशंकर द्वारा जैविक खतरों से निपटने के लिए आधुनिक, मजबूत और समावेशी वैश्विक फ्रेमवर्क तैयार करने की अपील एक उभरते वैश्विक संकट की सामयिक चेतावनी है। कोविड-19 महामारी ने दुनिया को यह सिखा दिया कि बीमारियां अब भूगोल नहीं पहचानतीं और संक्रमण की रफ्तार और प्रभाव किसी मिसाइल से कम विनाशकारी नहीं होती। कोई भी दुश्मन देश इस तरह के रोगजनक वायरस, बैक्टीरिया से हमला कर कभी भी तबाही मचा सकता है।
ऐसे में जैव-सुरक्षा को लेकर वैश्विक तैयारी, सहयोग और नियंत्रण तंत्र को मजबूत करना समय की अनिवार्यता है। जयशंकर का कहना कि जब तक जैव-सुरक्षा असमान रहेगी, वैश्विक सुरक्षा भी असमान और कमजोर रहेगी, इस वास्तविकता की ओर संकेत करता है कि यदि किसी क्षेत्र में महामारी का विस्फोट होता है और वहां की स्वास्थ्य प्रणाली नाकाम रहती है, तो उसका प्रभाव वैश्विक स्तर पर फैल सकता है।
समृद्ध देशों की उन्नत चिकित्सा प्रणाली भी तब तक सुरक्षित नहीं रह सकती जब तक बाकी दुनिया सुरक्षित न हो। यही कारण है कि ग्लोबल साउथ की कमजोर स्वास्थ्य सेवाएं और वैक्सीन तक असमान पहुंच आज विश्व-व्यापी जोखिम है। अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और दक्षिण एशिया के कई देशों में निगरानी, जांच प्रणाली ध्वस्त है। सक्षम लैब, आइसोलेशन और उपचार की क्षमता कम है और दवाओं-वैक्सीन की आपूर्ति राजनीतिक-आर्थिक कारणों से बाधित रहती है। इन स्थितियों में किसी जैविक हथियार का हमला किसी एक देश की सीमाओं से परे जाकर पूरी मानवता को जोखिम में डाल सकता है।
अनेक देशों में आपातकालीन प्रतिक्रिया धीमी है, प्रशिक्षण अपर्याप्त है और अनुसंधान तथा जैव-प्रौद्योगिकी में निवेश बेहद कम। साफ है कि स्वास्थ्य ढांचा जितना कमजोर होगा, जैविक हमलों या आकस्मिक जैव-दुर्घटनाओं का खतरा उतना अधिक होगा। पहले तो जैविक बीमारियों का हथियारों के रूप में इस्तेमाल रोकने के लिए वैश्विक स्तर पर पारदर्शिता, निगरानी और बायो-सेफ्टी प्रोटोकॉल को बाध्यकारी बनाया जाना चाहिए। कम लागत में अत्यधिक विनाशकारी परिणाम पैदा करने वाले जैविक हथियार भारत और दुनिया के लिए बड़ा खतरा इसलिए भी हैं, क्योंकि देश के पड़ोस में कुछ देशों पर जैविक कार्यक्रमों को आगे बढ़ाने या गुप्त अनुसंधान से जुड़े आरोप समय-समय पर लगते रहे हैं। यह स्थिति भारत के लिए सावधानी बरतने, निगरानी बढ़ाने और वैज्ञानिक क्षमता सुदृढ़ करने की मांग करती है।
भारत के पास अनेक स्तरों पर मजबूत जैव-रक्षा क्षमता मौजूद है। परंतु यह भी सच है कि भविष्य की जैव-सुरक्षा चुनौतियां कहीं अधिक जटिल होंगी, जिनसे निपटने के लिए निरंतर निवेश, तकनीकी आधुनिकीकरण और अंतर्राष्ट्रीय साझेदारी अनिवार्य है। विश्व और भारत दोनों को अब जैव-सुरक्षा निगरानी तंत्र मजबूत करना, उद्योग और अनुसंधान संस्थानों में बायो-एथिक्स लागू करना और महामारी-पूर्व तैयारी को सैन्य-स्तर की प्राथमिकता देना आवश्यक है। दुनिया को इस चेतावनी को गंभीरता से लेना होगा, ताकि जैविक हथियारों और महामारीजनित खतरों से सुरक्षा सुनिश्चित हो सके।
