UDAY scheme: बिजली वितरण कंपनियों को मजबूत करने में उदय योजना की भूमिका अहम
लखनऊः भारतीय प्रबंधन संस्थान (आईआईएम) लखनऊ के संकाय सदस्यों द्वारा किए गए एक शोध अध्ययन में यह सामने आया है कि बिजली क्षेत्र की प्रमुख सुधार योजनाओं में से एक उज्ज्वला डिस्कॉम एश्योरेंस योजना (उदय) ने देश की बिजली वितरण कंपनियों (डिस्कॉम्स) के वित्तीय स्वास्थ्य को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यह अध्ययन आईआईएम लखनऊ के वरिष्ठ प्रोफेसर प्रो. डी. त्रिपाठी राव, सहायक प्रोफेसर प्रो. हिमाद्री शेखर चक्रवर्ती और शोधार्थी प्रतीक विश्वास ने संयुक्त रूप से तैयार किया है।
अध्ययन में इस बात का भी जिक्र है कि किस हद तक डिस्कॉम्स के बड़े हिस्से के कर्ज को राज्य सरकारों पर स्थानांतरित करने और राज्य समर्थित बॉन्ड जारी करने के फैसले ने कंपनियों की वित्तीय स्थिति को राहत प्रदान की गई। उदय योजना का मुख्य उद्देश्य बिजली वितरण कंपनियों के संचयी घाटे और बढ़ते कर्ज को नियंत्रित कर उन्हें परिचालन दक्षता प्राप्त करने में समर्थ बनाना था। प्रोफेसर राव ने बताया कि शोध में डिफरेंस-इन-डिफरेंस मॉडल का प्रयोग किया गया है, जिसके माध्यम से उदय योजना लागू होने से पूर्व और योजना के बाद के वित्तीय आंकड़ों का तुलनात्मक मूल्यांकन किया गया।
अध्ययन के प्रमुख निष्कर्ष में कहा गया है कि सरकारी स्वामित्व वाली डिस्कॉम्स के कुल कर्ज और सुरक्षित कर्ज में उल्लेखनीय गिरावट दर्ज की गई। इससे यह पुष्टि होती है कि राज्य सरकार द्वारा देनदारियों का वहन करने से डिस्कॉम्स के बैलेंस शीट पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा। दूसरे योजना के बाद डिस्कॉम्स के नकदी प्रवाह में स्थिरता और लाभ कमाने की क्षमता में वृद्धि देखी गई, जिससे उच्च ब्याज वाले कर्ज पर निर्भरता घटी। शोध में सामने आया कि बेहतर संसाधन, अधोसंरचना और संस्थागत मजबूती के कारण बड़े और पुराने डिस्कॉम्स को अपेक्षाकृत अधिक लाभ प्राप्त हुआ। प्रो. डी. त्रिपाठी राव का मानना है कि उदय योजना बिजली वितरण क्षेत्र में कर्ज पुनर्गठन का एक सफल उदाहरण है।
उन्होंने कहा "उदय योजना ने अस्थिर कर्ज चक्र को तोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। लेकिन इसे कोई जादुई उपाय नहीं माना जाना चाहिए। वित्तीय सुधारों को स्थायी बनाने के लिए संरचनात्मक बदलाव अनिवार्य हैं।" उन्होंने सुझाव दिया कि वितरण नेटवर्क का डिजिटलीकरण, नवीकरणीय ऊर्जा के उपयोग में बढ़ोतरी, ऊर्जा भंडारण क्षमता का विस्तार और अधिक निजी निवेश से क्षेत्र को दीर्घकालिक लाभ मिल सकता है। साथ ही उन्होंने टैरिफ सुधार, नियामक निरीक्षण और परिचालन जवाबदेही बढ़ाने पर जोर दिया।
