बरेली: दो क्रांतिकारियों के विवाह का गवाह बना था केंद्रीय कारागार

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बरेली, अमृत विचार। केंद्रीय कारागार बरेली से न सिर्फ पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू बल्कि कई ऐसे क्रांतिकारियों का नाम जुड़ा है जो जंग-ए-आजादी के दौरान यहां कैद रहे। ऐसा ही एक नाम है क्रांतिकारी और लेखक यशपाल का। “यशपाल” जिन्होंने भगत सिंह, चन्द्रशेखर आजाद, राजगुरु और सुखदेव जैसे महान क्रांतिकारियों के साथ जंग-ए-आजादी …

बरेली, अमृत विचार। केंद्रीय कारागार बरेली से न सिर्फ पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू बल्कि कई ऐसे क्रांतिकारियों का नाम जुड़ा है जो जंग-ए-आजादी के दौरान यहां कैद रहे। ऐसा ही एक नाम है क्रांतिकारी और लेखक यशपाल का। “यशपाल” जिन्होंने भगत सिंह, चन्द्रशेखर आजाद, राजगुरु और सुखदेव जैसे महान क्रांतिकारियों के साथ जंग-ए-आजादी में अपना योगदान दिया। क्रांतिकारियों के जेल में रहने के दौरान कई किस्से होते हैं उन्ही में से एक किस्सा है यशपाल और प्रकाशवती के विवाह का। उस वक्त जेल में हुआ पहला और अंतिम विवाह माना गया।

सन 1936 की बात है, शायद अप्रैल का महीना था। यशपाल और प्रकाशवती के संबंध सबको पता चल चुके थे। मगर यशपाल ने पहले पार्टी में इसे छिपाया। उन्होनें बताया कि एक लड़की क्रांतिकारी दल में आना चाहती है और वह अपने साथ 40 हजार रुपए भी लाना चाहती है। लंबी चर्चा के बाद आखिरकार स्वीकृति दे दी गई।

बाद में यशपाल जब प्रकाशवती को लेकर आए तो बताया कि पूरा रुपया रास्ते में कहीं गिर गया है। उसी समय लोगों को संदेह हुआ था। जब आगे इस रिश्ते की बात खुलकर सामने आई तो दल में विवाद भी हुआ। आजाद इससे नाराज हुए पर यह अलग बात है। अप्रैल के अंत में प्रकाशवती अपने वकील बी. बनर्जी से मिलीं और उनके जरिए यशपाल से विवाह के लिए एक प्रार्थना पत्र बरेली के तत्कालीन उपायुक्त पैडले के पास भेजा गया। यशपाल तब बरेली सेंट्रल जेल में थे।

वकील बनर्जी को भी इस प्रार्थना पत्र की उम्मीद नहीं थी, पर अनुमति मिल गई। उस समय यहां जेल के मेजर सुपरिटेंडेंट डा. मेहरोत्रा थे। विवाह की तारीख तय होने पर यशपाल की मां को लाहौर में सूचना भेज दी गई। तब वे श्रीकृष्ण सूरी, पं देवी प्रसाद शर्मा, और प्रकाशवती को लेकर बरेली आ गए। सुबह दस बजे बरेली कमिश्नर कोर्ट में पहुंचे। पैडले भी कोर्ट में आ गए । पर यशपाल ने कोर्ट आने से मना कर दिया।

कहा कि बेड़ी-हथकड़ी पहनकर वे शादी के लिए तैयार नहीं हैं। जबकि कारागार के बाहर इसके बिना जा नहीं सकते थे। ऐसे में पैडले अपनी कार में प्रकाशवती और यशपाल की मां को बैठाकर जेल कार्यालय जा पहुंचे। उस रोज बरेली में तांगे वालों की हड़ताल थी। जिसकी वजह से सूरी और देवीप्रसाद शर्मा को जेल तक पहुंचने में दिक्कत हुई। बाद में यह दोनों किसी तरह कुछ मिठाई लेकर पहुंचे। वे दोनों प्रकाशवती की तरफ से रहे और यशपाल की तरफ से जेल के बंदी क्रांतिकारी रमेशचंद्र गुप्त ने भूमिका निभाई। शादी की रस्म हस्ताक्षर कराने के बाद एक दूसरे को मिठाई खिलाकर की गई। कुछ कैदियों को भी मिठाई बांटी गई। कुछ घंटे भर में ही पूरा कार्यक्रम संपन्न हो गया।

यशपाल ने अपना धर्म बताया था रैशनलिज्म
उस समय जेल की नियमावली में किसी कैदी को शादी की अनुमति देने का कोई प्रावधान नहीं था। विवाह के रजिस्ट्रेशन के समय यशपाल से पूछा गया कि उनका धर्म क्या है। उन्होने जवाब दिया रैशनलिज्म यानी बुद्धिवाद, पैडले यह सुनकर हैरान रह गए। कागजों पर यही लिखा गया और प्रकाशवती ने अपना धर्म सनातन लिखवाया। हालांकि यशपाल का परिवार आर्यसमाजी था। यह विवाह जेल में पहला और अंतिम था।

इसके बाद नहीं हुई जेल में किसी की शादी
सर महाराज सिंह बरेली जेल का निरीक्षण करने बरेली आए तो उन्होने यशपाल से पूछा कि विवाह करके तुम्हें क्या मिला। इसके बाद जेल मैनुअल में विवाह न करने की एक धारा और जोड़ दी गई। अब जेल में किसी की शादी नहीं हो सकती। इस तरह केंद्रीय कारागार बरेली तब यशपाल और प्रकाशवती के विवाह का स्थल और साक्षी बना।

उपरोक्त तथ्य लेखक सुधीर विद्यार्थी की पुस्तक बरेली एक कोलाज से लिए गए हैं।

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