बड़ा फैसला

बड़ा फैसला

गुरु नानक जयंती पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र के नाम संबोधन में कहा कि सरकार तीन कृषि कानूनों को निरस्त करेगी। उन्होंने क्षमा मांगते हुए कहा कि हमारे प्रयासों में कुछ कमियां रही होंगी, जिसके कारण हम इन कानूनों के बारे में सच्चाई नहीं बता सके। बीकेयू नेता राकेश टिकैत ने कहा कि विरोध …

गुरु नानक जयंती पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र के नाम संबोधन में कहा कि सरकार तीन कृषि कानूनों को निरस्त करेगी। उन्होंने क्षमा मांगते हुए कहा कि हमारे प्रयासों में कुछ कमियां रही होंगी, जिसके कारण हम इन कानूनों के बारे में सच्चाई नहीं बता सके। बीकेयू नेता राकेश टिकैत ने कहा कि विरोध तुरंत वापस नहीं लिया जाएगा, वे उस दिन का इंतजार करेंगे जब संसद में कृषि कानून निरस्त हो जाएंगे। एमएसपी के साथ-साथ सरकार को किसानों से अन्य मुद्दों पर भी बात करनी चाहिए।

बीकेयू के उग्राहन धड़े के नेता जोगिंदर सिंह उगराहन ने कहा किसान संघ एक साथ बैठेंगे और भविष्य की कार्रवाई तय करेंगे। देखना होगा कि एमएसपी की गांरटी की किसानों की मांग पर सरकार क्या रुख अपनाती है। इस ऐतिहासिक फैसले और सूझबूझ के लिए निश्चित ही प्रधानमंत्री सराहना के हक़दार है।

हालांकि यह काफी पहले हो जाना चाहिए था, जब उन्होंने आंदोलनकारियों और सरकार के बीच केवल एक फोन कॉल की दूरी की बात कही थी। परंतु 11 दौर की बातचीत बेनतीजा रही थी। जनवरी माह के बाद तो सरकार व किसान नेताओं के बीच कोई संपर्क नहीं हुआ। परंतु अब जब किसानों के धैर्य और उनकी मांगों की पक्षधरता के प्रति सरकार अपनी हठवादिता से पीछे हटी है, तब भी किसान नेता सरकार पर भरोसा क्यों नहीं कर पा रहे हैं, उन कारणों की पड़ताल की जानी चाहिए।

आंदोलनकारियों के विरुद्ध दुष्प्रचार अभियान चलाया गया। ढाई प्रदेश का आंदोलन बताया गया। उनके साथ प्रधानमंत्री ने दूरी बनाए रखी। किसानों को आतंकवादी, देशद्रोही, आंदोलनजीवी कहा गया तभी तो विरोधी कह रहे हैं कि प्रधानमंत्री किस बात के लिए माफी मांग रहे हैं। आंदोलन के दौरान विभिन्न परिस्थितियों में सैकड़ों किसानों की जान गई। संबोधन में उन किसानों के प्रति कोई संवेदना नहीं जताई गई।

अब पांच राज्यों के चुनाव नजदीक देखकर सरकार लोगों की नब्ज समझने का दावा कर रही है। सत्ताधारी दल से जुड़े लोगों को गांवों में घुसने नहीं दिया जा रहा था। संदेश मिल रहे थे आगामी चुनाव में किसान आंदोलन एक बड़ा कारक बनकर परिणामों को प्रभावित करेगा। पिछले दिनों आए उप चुनाव परिणाम ने भी सरकार को सोचने के लिए विवश किया। हिमाचल में सेब के किसानों की जो दुर्दशा हुई उसके लिए कारपोरेट घराने को जिम्मेदार ठहराया गया।

शुक्रवार को प्रधानमंत्री ने किसानों को संदेश दिया कि आइये एक नई शुरुआत करते हैं और नए सिरे से आगे बढ़ते हैं। इससे पहले वे देश के नाम घोषणा करने के लिए रात्रि आठ बजे आते रहे हैं। सात साल में पहली बार वे सुबह नौ बजे आए और बड़े फैसले की घोषणा की। तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा अच्छी बात है। इसे जीत-हार के नजरिए नहीं देखा जाना चाहिए और न ही तोहफा समझा जाना चाहिए।