22 दिसंबर को है अखुरथ संकष्टी चतुर्थी, भगवान गणेश जी की पूजा के दौरान पढ़ें ये पौराणिक कथा

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22 दिसंबर बुधवार के दिन गणेश जी को समर्पित अखुरथ संकष्टी चतुर्थी है। इस दिन गणेश जी की विधिवत्त तरीके से पूजा-अर्चना की जाती है। संकष्टी चतुर्थी गणेश जी को समर्पित है और इस दिन विधि-विधान से उनका पूजन करने से भक्तों को सभी दूख दूर होते हैं। पौराणिक कथा संकष्टी चतुर्थी के दिन पूजा …

22 दिसंबर बुधवार के दिन गणेश जी को समर्पित अखुरथ संकष्टी चतुर्थी है। इस दिन गणेश जी की विधिवत्त तरीके से पूजा-अर्चना की जाती है। संकष्टी चतुर्थी गणेश जी को समर्पित है और इस दिन विधि-विधान से उनका पूजन करने से भक्तों को सभी दूख दूर होते हैं।

पौराणिक कथा
संकष्टी चतुर्थी के दिन पूजा के बाद भक्तों को इससे जुड़ी पौराणिक कथा जरूर पढ़नी चाहिए. पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान विष्णु का विवाह माता लक्ष्मी के साथ निश्चित हुआ था और विवाह की तैयारियां शुरू होने लगी. सभी देवताओं को विवाह का निमंत्रण भेजा गया, लेकिन गणेश जी को निमंत्रण नहीं दिया गया।

सभी देवता अपनी पत्नियों सहित विवाह समारोह में शामिल हुए. सबने देखा कि गणेश जी कहीं नजर नहीं आ रहे तो सभी आपस में चर्चा करने लगे कि क्या गणेश जी को निमंत्रण नहीं दिया गया या वे स्वंय ही नहीं आए। इसके बाद सभी ने विष्णु से इसका कारण पूछा

विष्णु जी ने कहा कि हमने गणेश जी के पिता भगवान शिव को न्योता भेजा है। यदि गणेश जी अपने पिता के साथ आना चाहते तो आ जाते, अलग से न्योता देने की कोई आवश्यकता नहीं समझी। दूसरी बात यह है कि गणेश जी को सवा मन मूंग, सवा मन चावल, सवा मन घी और सवा मन लड्डू का भोजन दिनभर चाहिए।

यदि गणेश जी विवाह में आते तो दूसरे के घर जाकर इतना सारा भोजन करना अच्छा नहीं लगता. इस वार्ता के दौरान किसी ने सुझाव दिया कि यदि गणेश जी आ भी गए तो उन्हें द्वारापाल बनाकर बैठा देंगे और कहेंगे कि घर का ध्यान रखना. आप चूहे पर बैठकर धीरे-धीरे चलोगे तो बारात से पीछे रह जाओगे। यह सुझाव सबको पसंद आया और विष्णु जी ने भी अपनी सहमति दे दी

इतने में ही गणेश जी वहां आ पहुंचे और उन्हें समझा—बुझाकर घर की रखवाली के लिए ​बैठाकर बारात चली गई. तभी नारद जी ने गणेश जी को दरवाजे पर बैठा देखकर इसका कारण पूछा तो गणेश जी ने कहा कि भगवान विष्णु ने मेरा अपमान किया है।

नारद जी ने कहा कि आप अपनी मूसक सेना को आगे भेज दें तो वह रास्ता खोद देगी जिससे उनके वाहन धरती में धंस जाएंगे, तब आपको सम्मानपूर्वक बुलाना पड़ेगा। गणेश जी ने ऐसा ही किया और उनकी मूसक सेना ने धरती खोद दी. उस रास्ते में रथों पहिए धरती में धंस गए और कुछ टूट भी गए।

तब नारद जी ने कहा कि आपने गणेश जी का अपमान किया है, यदि उन्हें मनाकर ले आएं तो कार्य सिद्ध हो सकता है. भगवान शंकर ने अपने दूत नंदी को भेजकर गणेश को बुलवा लिया. इसके बाद गणेश जी आदर—सत्कार किया गया और फिर रथों के पहिए बाहर निकले. लेकिन जो पहिए टूट गए वो कैसे ठीक होंगे। वहीं पास के खेत में खाती काम कर रहा था, उसे बुलाया गया।

खाती अपना कार्य करने के पहले ‘श्री गणेशाय नम:’ कहकर गणेश जी की वंदना मन ही मन करने लगा. देखते ही देखते खाती ने सभी पहियों को ठीक कर दिया. तब खाती कहने लगा कि हे देवताओं! आपने सर्वप्रथम गणेश जी को नहीं मनाया होगा और न ही उनकी पूजा की होगी इसीलिए तो आपके साथ यह संकट आया है।

हम तो मूर्ख अज्ञानी हैं, फिर भी पहले गणेशजी को पूजते हैं, उनका ध्यान करते हैं. आप लोग तो देवतागण हैं, फिर भी आप गणेश जी को कैसे भूल गए? अब आप लोग भगवान श्री गणेशजी की जय बोलकर जाएं, तो आपके सब काम बन जाएंगे और कोई संकट भी नहीं आएगा. ऐसा कहते हुए बारात वहां से चल दी और विष्णु भगवान का लक्ष्मीजी के साथ विवाह संपन्न कराके सभी सकुशल घर लौट आए।

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