पति ने लात मारकर घर से किया था बाहर, फिर भी नहीं तोड़ा हौसला, 1400 बच्चों को गोद लेकर दिया नया जीवनदान
महाराष्ट्र की मदर टेरेसा के नाम से पहचानी जाने वाली सिंधुताई सपकाल का मंगलवार रात पुणे में निधन हो गया। सिंधुताई पिछले डेढ़ महीने से पुणे के गैलेक्सी हॉस्पिटल अस्पताल में भर्ती थीं। जानकारी के अनुसार सिंधुताई ने शाम 8.30 बजे अंतिम सांस ली है। सिंधुताई सपकाल अपने आप में ही एक मिसाल थीं। सिंधुताई …
महाराष्ट्र की मदर टेरेसा के नाम से पहचानी जाने वाली सिंधुताई सपकाल का मंगलवार रात पुणे में निधन हो गया। सिंधुताई पिछले डेढ़ महीने से पुणे के गैलेक्सी हॉस्पिटल अस्पताल में भर्ती थीं। जानकारी के अनुसार सिंधुताई ने शाम 8.30 बजे अंतिम सांस ली है। सिंधुताई सपकाल अपने आप में ही एक मिसाल थीं। सिंधुताई सपकाल एक ऐसी महिला थीं जिन्होंने अपनी जिंदगी में हमेशा मुश्किलें देखीं लेकिन कभी हार नहीं मानी। तो आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि कौन थीं सिंधुताई सपकाल? कैसे बनीं मदर टेरेसा?
कौन हैं सिंधुताई सपकाल?
सिंधुताई सपकाल एक सामाजिक कार्यकर्ती थीं। जिन्हें अनाथ बच्चों के पालन-पोषण के लिए जाना जाता रहा है। सिंधुताई सपकाल ने अपनी पूरी जिंदगी अनाथ बच्चों को समर्पित कर दी थी। सिंधुताई ने अपने जीवन में 1400 बच्चों को गोद लिया था जिसके लिए उन्हें प्रतिष्ठित पद्मश्री समेत कई अन्य पुरस्कारों से सम्मानित भी किया गया था।
सिंधुताई सपकाल का जन्म और शिक्षा
सिंधुताई सपकाल का जन्म 14 नवंबर 1947 को महाराष्ट्र के वर्धा जिले में हुआ था। लड़की होने के कारण सिंधुताई को घर में सभी लोग नापसंद करते थे इसलिए उन्हें घर में चिन्धी कहा जाने लगा। सिंधुताई ने केवल चौथी कक्षा तक पढ़ाई की थी, वह आगे भी पढ़ना चाहती थी लेकिन उनके घर वालों ने उनकी नौ साल की उम्र में ही शादी कर दी थी। जिसके बाद ससुराल वालों ने उनके इस सपने को पूरा नहीं होने दिया।
सिंधुताई सपकाल का विवाह एवं संगर्ष
सिंधुताई जब मात्र नौ साल की थीं तब ही उनकी शादी 30 वर्षीय ‘श्रीहरि सपका’ से कर दिया था। अपनी उम्र से 21 साल बड़े आदमी से शादी होने के बाद उनका जीवन चुनौतियों से भरा था। बाल विवाह का शिकार होने के बाद भी सिंधुताई के जीवन में कमजोर और दुर्व्यवहार करने वालों की मदद करने का उनका उत्साह और भी बढ़ गया था। घर बसने के बाद उन्होंने जमींदारों और महिलाओं का शोषण करने वालों के खिलाफ खड़ा होना शुरू कर दिया था।
लेकिन इस बीच उन्होंने ये सोचा भी नहीं था कि उनकी जिंदगी एक ही पल में इस तरह का मोड़ ले लेगी। जब वह बीस साल की उम्र में गर्भवती थी, तब एक जमींदार ने बेवफाई की घृणित अफवाह फैला दी, जिसके कारण उन्हें 9 महिने की गर्भवती होने के बाद भी घर से बाहर निकाल दिया गया। इतने कष्ट के बीच उसी रात सिंधुताई ने एक तबेले में बच्ची को जन्म दिया। बच्चे को जन्म देते वक्त उनके पास कोई भी नहीं था। इतनी पीड़ा में उन्होंने बीना डॉक्टर के अपनी बच्चे को जन्म दिया।
सिंधुताई बताती हैं कि बच्ची को जन्म देने के बाद उन्होंने अपने बच्ची की नाल खुद पत्थर से तोड़ी। इसके बाद सिंधुताई अपने बच्चे की साथ रेलवे स्टेशन पर भीख मांगने लगीं और बेटी के साथ खुद का पेट भरने के लिए रात में श्मशान में रहकर चिता की रोटी खाना शुरू किया। इन सब के बीच दिन तो बदलते रहे लेकिन सिंधुताई की जिंदगी वहीं ठहरी रही। इन सब के बीच एक दिन सिंधुताई को रेलवे स्टेशन पर एक अनाथ बच्चा मिलता है। यह देखकर मां के दिल में फिर से ममत्व की चिंगारी उठ गई। इसके बाद धीरे-धीरे ये चिंगारी शोले में भड़कती रही और यहीं से शुरू हुआ अनाथों का नाथ बनने का सफर। अपने इस सफर में ही उन्होंने देखा कि दुनिया में कितने अनाथ बच्चे हैं जिन्हें मां की जरूरत है, तभी से सिंधुताई ने ये तय कर लिया था कि जो भी अनाथ बच्चा उनके पास आएगी वो उसकी मां बन जाएंगी।
सिंधुताई सपकाल की सफलता
सिंधुताई ने अपना पूरा जीवन अनाथों को समर्पित कर दिया है। इसलिए उन्हें “माई” (माँ) कहा जाे लगा। उन्होंने 1500 अनाथों को गोद लिया है। भले ही आज सिंधुताई नहीं रहीं, लेकिन महाराष्ट्र में उनकी 6 बड़ी समाजसेवी संस्थाएं चल रही हैं। इनमें बेसहारा बच्चों के साथ-साथ विधवा महिलाओं को भी आसरा मिलता है। दिलचस्प है कि कभी परिवार से निकाली गईं सिंधुताई के परिवार में आज 382 दामाद और 49 बहुएं भी हैं।1000 से अधिक पोते-पोतियां हैं। उनकी अपनी बेटी एक वकील है और गोद लिए गए कई बच्चे डॉक्टर, इंजीनियर, वकील हैं और उनमें से कई अपना अनाथालय भी चलाते हैं। सिंधुताई को महिलाओं और बच्चों के लिए काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं के लिए महाराष्ट्र राज्य द्वारा “अहिल्याबाई होक्कर पुरस्कार” सहित कुल 273 राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार मिले हैं।
सिंधुताई सपकाल की बायोपिक फिल्म
2010 में सिंधुताई पर आधारित एक मराठी फिल्म भी आई थी, ‘मी सिंधुताई सपना’ जो एक सच्ची कहानी पर आधारित थी। इसी फिल्म को 54 लंदन फिल्म फेस्टिवल के लिए भी चुना गया था ।
सिंधुताई को मिला सम्मान
उनके इस नेक काम के लिए सिंधु ताई को अब तक 700 से ज्यादा सम्मान मिला है। उन्हें अब तक मिले सम्मान से प्राप्त हुई रकम को सिंधु ताई ने अपने बच्चों के लालन पोषण में खर्च कर दिया। उन्हें डी वाई इंस्टिटूट ऑफ टेक्नोलॉजी एंड रिसर्च पुणे की तरफ से डाॅक्टरेट की उपाधि भी मिल चुकी है। उनके जीवन पर मराठी फिल्म मी सिंधुताई सपकल बनी है जो साल 2010 में रिलीज हुई थी। इस फिल्म को 54वें लंदन फिल्म फेस्टिवल में भी दिखाया जा चुका है।
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