मुरादाबाद : आपातकाल में ‘पंजे’ को परास्त करने के लिए अपनाया हर पैंतरा

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अविक ठाकुर/अमृत विचार। सत्ता की कुर्सी पाने की चाह में प्रत्याशी कई जतन करते हैं। कई बार गुणा-भाग कर इसे हासिल भी कर लेते हैं। लेकिन, इसकी गरिमा को बनाए रखने का हुनर हर किसी के पास नहीं होता। ऐसा ही कुछ सन 70 के दशक में देखने को मिला था। तब कांग्रेस का दबदबा …

अविक ठाकुर/अमृत विचार। सत्ता की कुर्सी पाने की चाह में प्रत्याशी कई जतन करते हैं। कई बार गुणा-भाग कर इसे हासिल भी कर लेते हैं। लेकिन, इसकी गरिमा को बनाए रखने का हुनर हर किसी के पास नहीं होता। ऐसा ही कुछ सन 70 के दशक में देखने को मिला था। तब कांग्रेस का दबदबा हुआ करता था। उस दौर मे पार्टी के कद्दावर नेताओं ने अपनी मनमानी करनी शुरू कर दी, जिसके बाद देश में आपातकाल लागू हो गया था। ऐसे में सभी पार्टियों के नेताओं ने ‘हाथ के पंजे’ को परास्त करने के लिए पैंतरे अपनाने शुरू कर दिए थे।

सन 1989 में जनसंघ से प्रत्याशी रहे डॉ. विश्व अवतार जैमिनी ने अमृत विचार से बातचीत में बताया कि सन 1977 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा देश में इमरजेंसी लागू की गई थी। उस दौर में सरकार के खिलाफ भाषण देने वाले विभिन्न दलों के नेताओं को जेल में बंद कर दिया गया था, जहां पर उनके बीच की दूरियां कम हुईं और सब ने कांग्रेस को गिराने के लिए रणनीति तैयार करनी शुरू कर दी थी। उस समय सभी संगठन जनता पार्टी में सम्मिलित हो गए थे। इसके बाद हर पार्टी के नेताओं ने जनता पार्टी का सहयोग करना शुरू किया। उसके बाद जगह-जगह कांग्रेस के खिलाफ नुक्कड़ सभाएं आयोजित होने लगीं।

इन सभाओं में सभी पार्टी के नेता एक मंच से खड़े होकर इंदिरा गांधी के खिलाफ आवाज बुलंद करने लगे। साथ ही लोगों को अपनी ओर भी आकर्षित करते थे। उन्होंने बताया कि उस दौर में आजम खान और रमाशंकर कौशिक को मंच का संचालन की जिम्मेदारी पार्टी द्वारा दी गई थी। तब एक दिन में तीन-तीन स्थानों पर एक साथ बैठक की जाती थी ताकि कांग्रेस को हराया जा सके। हालांकि यह मेहनत कुछ समय बाद रंग लाई। मुरादाबाद नगर विधानसभा से हाफिज सिद्दीक के मुकाबले दिनेश चंद्र रस्तोगी ने चुनाव लड़ा और जीत हासिल की।

सन 1977 से 79 तक मिले दिल, उसके बाद हो गए थे मतभेद
आपातकाल लागू होने के बाद सभी संगठन जनता पार्टी में सम्मिलित हुए। यह सिलसिला करीब तीन साल तक चला। पार्टी नेता जात-पात और कुर्सी भूल एक छत के नीचे केवल एक ही संगठन के लिए काम करने लगे, जिसका नाम जनता पार्टी था। लेकिन, यह बात कई बड़े नेताओं को गवारा नहीं हुई। उन्होंने पार्टी में लोगों के बीच तिफरके डालने शुरू कर दिए। इसके बाद सभी संगठन फिर एक बार अलग हो गए।

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