रामपुर : गुमनामी की जिंदगी जी रहे पूर्व विधायक बेगम किश्वर आरा के परिजन
सुहेल जैदी/अमृत विचार। पूर्व विधायक बेगम किश्वर आरा के वंशज गुमनामी की जिंदगी जी रहे हैं। घर में सियासी जमीन होने के बावजूद उनके परिजन राजनीति से दूर रहे। बेटे शहामत उल्लाह खां उर्फ बाबू खां का वर्ष 2011 में निधन हो गया। उनकी दो बेटियां नार्वे और दुबई में चिकित्सक हैं। कांग्रेस के टिकट …
सुहेल जैदी/अमृत विचार। पूर्व विधायक बेगम किश्वर आरा के वंशज गुमनामी की जिंदगी जी रहे हैं। घर में सियासी जमीन होने के बावजूद उनके परिजन राजनीति से दूर रहे। बेटे शहामत उल्लाह खां उर्फ बाबू खां का वर्ष 2011 में निधन हो गया। उनकी दो बेटियां नार्वे और दुबई में चिकित्सक हैं।
कांग्रेस के टिकट पर बेगम किश्वर आरा ने वर्ष 1962 में चुनाव लड़ा और वह चुनाव जीत गईं और वर्ष 1967 तक विधायक रहीं। उन्होंने अपने निकटतम प्रतिद्वंदी फजले हक खां को काफी वोटों से शिकस्त दी थी, जबकि फजले हक 1957 में चुनाव जीत गए थे। लेकिन, 1962 में हुए चुनाव में बेगम किश्वर आरा ने उन्हें हरा दिया। बेगम किश्वर आरा के पति सलामत उल्लाह खां वर्ष 1958 में नगर पालिका परिषद के चेयरमैन चुने गए। इसके अलावा सौलत पब्लिक लाइब्रेरी के भी चेयरमैन रहे। उनके तीन बच्चे हुए, जिनमें बेटा शहामत उल्लाह खां उर्फ बाबू खां, जो पोलियोग्रस्त थे और दो बेटियां हैं।
बेगम किश्वर आरा के भाई हकीम मोअज्जम अली खां बताते हैं कि बेगम किश्वर आरा ने 1967 से कचहरी में बैठना शुरू किया और फौजदारी के मुकदमे लड़े। उनके दो भाई पाकिस्तान चले गए और दो भाई नगर में हैं। लेकिन, किसी को राजनीति में दिलचस्पी नहीं है। सपा नेता आसिम खां बताते हैं कि उनके बेटे शहामत उल्लाह खां उर्फ बाबू खां समाजसेवा में हमेशा आगे रहे। लेकिन, मधुमेह होने के कारण वर्ष 2011 में उनका निधन हो गया।
पति-पत्नी ने पूरी ईमानदारी से की राजनीति
बेगम किश्वर आरा के दत्तक पुत्र मोहसिन खां बताते हैं कि उनकी मां बेगम किश्वर आरा और उनके पिता मौलवी सलामत उल्लाह खां ने ईमानदारी से राजनीति की। बताते हैं कि वह पालिकाध्यक्ष होने के बावजूद सलामत उल्लाह खां नगर पालिका के लिए साइकिल से जाते थे और बेगम किश्वर आरा रिक्शा से ही कचहरी आती-जाती थीं। बेगम किश्वर आरा ने 15 अक्टूबर 2015 को 85 वर्ष की आयु में आखिरी सांस ली। भ्रष्टाचार बढ़ने के कारण परिवार के सदस्यों ने राजनीति में दिलचस्पी नहीं ली। मोहसिन खां बताते हैं कि हम किसी का गला नहीं काट सकते। हमारे परिवार ने हमेशा से लोगों की मदद की है और आज भी मदद करते हैं।
शायरी का भी रखती थीं शौक
बेगम किश्वर आरा का मिजाज शायराना था। वह पान की बहुत शौकीन थीं। उनका का एक शेर है- उजले-उजले ख्यालात में खो जाती हूं, मैं उजालों की तरह शाम से सो जाती हूं… बेगम किश्वर आरा की बड़ी बेटी डॉ. दुर्रे शहवार दुबई में अस्पताल चलाती हैं और छोटी बेटी नार्वे में चिकित्सक हैं। यहां पर बेगम किश्वर आरा के पोते अमान उल्लाह खां और मलीहा खां उनकी विरासत को संभाले हुए हैं।
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