Archaeological Department: मेरठ के हस्तिनापुर में मिले ऐतिहासिक महत्व के अवशेष

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मेरठ। जिले के हस्तिनापुर में महाभारत कालीन पांडव टीले पर किए गए उत्खनन में राजपूत काल के अनेक प्राचीन बर्तनों आदि के अवशेष मिलने से इस उत्खनन के ऐतिहासिक बनने की संभावना बन गई है। पुरातत्व विभाग की टीम को आशा है कि बागपत जिले के सिनौली उत्खनन में करीब 2200 ईसा पूर्व के अवशेष …

मेरठ। जिले के हस्तिनापुर में महाभारत कालीन पांडव टीले पर किए गए उत्खनन में राजपूत काल के अनेक प्राचीन बर्तनों आदि के अवशेष मिलने से इस उत्खनन के ऐतिहासिक बनने की संभावना बन गई है।

पुरातत्व विभाग की टीम को आशा है कि बागपत जिले के सिनौली उत्खनन में करीब 2200 ईसा पूर्व के अवशेष हस्तिनापुर में भी मिल सकते हैं हालांकि फिलहाल मिले अवशेषों की महत्ता ज्यादा नहीं मानी जा रही है लेकिन और गहराई तक उत्खनन में प्राचीन अवशेषों के मिलने का संभावनाओं को देखते हुए पुरातत्व विभाग ने विशेषज्ञों की टीम को लगा दिया है।

कैलाशदीप शिखर संग्रहालय के संस्थापक एवं पुरातत्ववेत्ता 74 साल के सतीश जैन ने मंगलवार को यूनीवार्ता को एक विशेष भेंट में बताया कि हाल के उत्खनन में मृदभांड, टेराकोटा के खिलौना गाड़ी का एक हिस्सा, पोटला (पीने के पानी को ले जाने वाला मिट्टी का बर्तन), सिल बट्टा, मनके और गेहूं, उड़द तथा चावल आदि के अलावा मानव अस्थियों के अवशेष मिले हैं।

उन्होंने बताया कि यह तमाम अवशेष प्रारंभिक जांच में राजपूत काल यानि सातवीं से आठवीं शताब्दी के पाए गए हैं। सतीश जैन ने बताया कि पुरातत्व विभाग का यह एक सामान्य उत्खनन है और क्षेत्र के प्राचीन महत्व को ध्यान में रखकर की जाती है। जिस तरह यहां राजपूत काल के अवशेष मिले हैं, उससे यह उम्मीद की जा सकती है कि इसके नीचे और भी प्राचीन अवशेष मिल सकते हैं।

उन्होंने यह भी बताया कि बटेश्वर में भी उत्खनन में ऐसे ही मृदभांड मिले थे। उन्होंने बताया कि पांडव टीले पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के विशेषज्ञों की एक टीम को बुलाया गया है जो यहां आकर गहनता से मिट्टी की जांच करेगी। जांच के बाद ही और गहराई तक खुदाई किये जाने पर निर्णय होगा।

सतीश जैन ने बताया कि यह सूचना मिलते ही पूरे देश से प्रशिक्षु पुरातत्ववेत्ता इस उम्मीद से उत्खनन कार्य में लग गये है कि यहां काफी प्राचीन सभ्यता के अवशेष मिल सकते हैं। उन्होंने बताया कि उत्खनन में राजपूत काल की कई दीवारें में मिली हैं, जिसकी सफाई करने के बाद जांच की जा रही है कि क्या वे किसी मंदिर या दूसरे किसी भवन का हिस्सा थीं।

मृदभांड के बारे में उन्होने बताया कि चित्रित धूसर मृदभांड उस समय की तकनीक से बनाये गये आकर्षक बर्तन होते थे। उन्होंने बताया कि रेडियो कार्बन डेटिंग विधि से तमाम मिले अवशेषों के वास्तविक काल की पुष्टि हो सकेगी।

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