तीन हजार फीट की ऊंचाई पर बसा मां पूर्णागिरी का अद्भुत सिद्धपीठ
टनकपुर। पूर्णागिरि मंदिर उत्तराखंड के चंपावत जिले के टनकपुर नगर में काली नदी, जिसे शारदा नदी भी कहते हैं, के दाएं किनारे पर स्थित है। चीन, नेपाल और तिब्बत की सीमाओं से घिरे चंपावत जिले के प्रवेशद्वार टनकपुर से 19 किलोमीटर दूर स्थित यह शक्तिपीठ मां भगवती की 108 सिद्धपीठों में से एक है। यह …
टनकपुर। पूर्णागिरि मंदिर उत्तराखंड के चंपावत जिले के टनकपुर नगर में काली नदी, जिसे शारदा नदी भी कहते हैं, के दाएं किनारे पर स्थित है। चीन, नेपाल और तिब्बत की सीमाओं से घिरे चंपावत जिले के प्रवेशद्वार टनकपुर से 19 किलोमीटर दूर स्थित यह शक्तिपीठ मां भगवती की 108 सिद्धपीठों में से एक है। यह शक्तिपीठ अन्नपूर्णा चोटी के शिखर में करीब 3000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। मां पूर्णागिरि मंदिर में यूं तो साल भर श्रद्धालुओं का आना लगा रहता है। मगर चैत्र की नवरात्रियों में यहां एक बड़े मेले का आयोजन होता है जो जून आखिरी तक चलता है।

टनकपुर से मां पूर्णागिरी के दरबार की दूरी
टनकपुर उत्तराखंड के चम्पावत जिले में स्थित बेहद खूबसूरत पहाड़ियों से घिरा एक छोटा सा शहर है। मां पूर्णागिरि के दरबार में पहुंचने के लिए टनकपुर से आगे 17 किलोमीटर की दूरी अलग-अलग तरह के निजी वाहनों या फिर रोडवेज की बस से तय की जा सकती है। जबकि अंतिम तीन किमी की यात्रा पैदल करनी पड़ती है, जिसमें खड़ी पहाड़ी पर चढ़ना पड़ता है।

मां पूर्णागिरि मंदिर का इतिहास
शिव पुराण में रुद्र-सहिंता के अनुसार, राजा दक्ष प्रजापति की कन्या सती का विवाह भगवान शिव के साथ हुआ था। कहा जाता है कि ब्रम्ह पुत्र दक्ष प्रजापति ने एक बार एक विशाल यज्ञ किया था, जिसके लिए उन्होंने सभी देवी देवताओं और ऋषियों को निमंत्रण भेजा था, परन्तु भगवान शिव को किसी पूर्वाग्रह की वजह से अपमानित करने की दृष्टि से निमंत्रण नहीं दिया। जिसे पार्वती (सती) ने भगवान शिव का घोर अपमान समझा और यज्ञ की वेदी में अपनी देह की आहुति कर दी।
भगवान शिव यह जानकर बहुत ही क्रोधित हो गए और अपनी पत्नी के जले हुए देह को लेकर आसमान में विचरण करते हुवे तांडव करने लगे। भगवान शिव का तांडव देखकर सारे देवी देवता परेशान हो गए और भगवान विष्णु से प्रार्थना करने लगे। भगवान विष्णु ने चिंतित होकर अपने चक्र से भगवान शिव द्वारा हाथ में लिए गए माता सती की देह के अलग- अलग हिस्से कर दिए। अलग-अलग हिस्से अलग-अलग जगहों में गिरे और जहां-जहां भी गिरे वहां वहां शक्तिपीठों की स्थापना हुई । इन्हीं हिस्सों में से एक हिस्सा जो कि माता सती की नाभि का था, अन्नपूर्णा पर्वत शिखर में जा कर गिर गया। कालान्तर में यह स्थान पूर्णागिरि कहलाया। माता पूर्णागिरि मंदिर में देवी के नाभि की पूजा की जाती है।

पूर्णागिरि मंदिर में स्थित झूठे का मंदिर की कहानी
कहा जाता है कि एक बार संतानहीन सेठ को देवी ने सपने में कहा कि मेरे दर्शन के बाद ही तुम्हे पुत्र होगा। सेठ ने मां पूर्णागिरि के दर्शन किए और कहा कि यदि उसका पुत्र होगा तो वह देवी के लिए सोने का मंदिर बनाएगा। मनोकामना पूरी होने पर सेठ ने लालच कर सोने के मंदिर की जगह तांबे के मंदिर में सोने की पॉलिश लगाकर देवी को अर्पित करने के लिए मंदिर की ओर जाने लगा तो टुन्यास नामक स्थान पर पहुंचकर वह तांबे के मंदिर को आगे नहीं ले जा सका तब सेठ को उस मंदिर को उसी स्थान में रखना पड़ा। इसलिए उसे झूठे का मंदिर नाम से जाना जाने लगा।
