यूपी चुनाव 2022: मायावती को नए प्रत्याशियों पर दांव लगाना पड़ा भारी
लखनऊ। चार बार प्रदेश की कमान संभाल चुकी बसपा सुप्रीमो मायावती की सोशल इंजीनियरिंग का फार्मूला चुनाव दर चुनाव लगातार फेल होता जा रहा है। 2012 के विधानसभा चुनावों के बाद प्रदेश की सत्ता हासिल करने के लिए उनके प्रयोगों का मतदाता निष्प्रभावी बनाते आ रहे हैं। मतदाताओं के बीच उनकी घटते प्रभाव का ये …
लखनऊ। चार बार प्रदेश की कमान संभाल चुकी बसपा सुप्रीमो मायावती की सोशल इंजीनियरिंग का फार्मूला चुनाव दर चुनाव लगातार फेल होता जा रहा है। 2012 के विधानसभा चुनावों के बाद प्रदेश की सत्ता हासिल करने के लिए उनके प्रयोगों का मतदाता निष्प्रभावी बनाते आ रहे हैं।
मतदाताओं के बीच उनकी घटते प्रभाव का ये आलम है कि 2022 के चुनावों में उनका कैडर वोट भी छिटक गया। जिसकी वजह से उनके विधायकों की संख्या राजा भैया के जनसत्ता दल और तीस वर्षों से सत्ता से दूर रही कांग्रेस से भी नीचे पहुंच गई है। बसपा को हर चुनाव में सबसे ज्यादा वोट जिस सीट से मिलते रहे हैं वह अंबेडकरनगर है। जिसमें कुल पांच विधानसभा सीटें हैं।
पिछले चुनाव मे बसपा कटेहरी, जलालपुर और अकबरपुर जीतने में कामयाब रही थी। कटेहरी से चुनाव वाले लालजी वर्मा और अकबरपुर से चुनाव जीतने वाली रामअचल राजभर को मायावती ने पार्टी से निष्कासित कर दिया था। इनकी जगह नए प्रत्याशियों पर दांव लगाया था। जिसका नतीजा यह रहा कि सभी पांच सीटों पर बसपा को हार मिली।
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 में बहुजन समाज पार्टी की बुरी तरह सभी सीटों पर हारने को लेकर हर ओर चर्चा चल रही है। बलिया की रसड़ा सीट पर केवल उमाशंकर सिंह ही बसपा से जीते हैं। वर्ष 2012 के बाद से बसपा का लगातार पतन हो रहा है और अब तक जारी है। 2017 में यूपी में मोदी लहर के दौरान भी बसपा ने 19 सीटों पर जीत हासिल की थी। लेकिन 2022 में हाल यह रहा कि बसपा को अपने मजबूत गढ़ में भी हार का मुंह देखना पड़ा। वर्ष 2017 में बसपा ने अंबेडकरनगर जिले की तीन सीटों पर जीत दर्ज कराई थी। लेकिन इस बार के चुनाव में आखरी गढ़ में भी हार का सामना करना पड़ा।
गौरतलब हो की यूपी ने कभी वो समय भी देखा था, जब आगरा, मुजफ्फरनगर, बिजनौर जैसे जिलों को बसपा का गढ़ माना जाता था। यही कारण था की 2007 के चुनाव में अपने दम पर पूर्ण बहुमत से बसपा ने अपनी सरकार बनाई थी। इस बार प्रदेश की जनता ने पूरी तरह नकार दिया बसपा ने अयोध्या से प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलन शुरू किया था, किसी काम नहीं आया।आगरा के एत्मादपुर, आगरा ग्रामीण, आगरा कैंट, फतेहपुर व खेरागढ़ में बसपा पहले चुनाव जीतती रही है।
चुनाव हारने की अहम वजह
1- बसपा ने जिन स्टार प्रचारकों की लिस्ट जारी की थी उनमें से आधे से ज्यादा स्टार प्रचारक मैदान में नजर ही नहीं आये। बसपा सुप्रीमो के भाई आनन्द भी किसी रैली में दिखाई नहीं दिये यहां तक खुद मायावती भी पहले ट्वीट के जरिए वोटर्स के बीच नजर आईं। संगठन के कामों के चलते वह प्रचार में कम सक्रिय नजर आईं।
2- विधानसभा चुनाव में मायावती का किसी भी सीट से चुनाव न लड़ना भी बसपा की हार की एक वजह हो सकती है। दलित समाज में बसपा सुप्रीमो की जो छवि है वह जगह कोई भी उम्मीदवार नहीं ले सकता है यदि मायावती चुनाव लड़ती तो शायद कुछ फायदा हो सकता था।
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