लखनऊ: टीबी रोग से निजात पाने के बाद सुनीता जगा रहीं जागरूकता की अलख

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लखनऊ। टीबी के बारे में कोई जल्दी बात करने को तैयार नहीं होता है लेकिन मेरा मानना है कि यदि थोड़ा धैर्य रखें और किसी व्यक्ति से बार-बार बात करने की कोशिश करें तो एक बार वह आपकी बात को जरूर सुनेगा और यहीं से मेरा काम शुरु होता है, यह कहना है सुनीता का, …

लखनऊ। टीबी के बारे में कोई जल्दी बात करने को तैयार नहीं होता है लेकिन मेरा मानना है कि यदि थोड़ा धैर्य रखें और किसी व्यक्ति से बार-बार बात करने की कोशिश करें तो एक बार वह आपकी बात को जरूर सुनेगा और यहीं से मेरा काम शुरु होता है, यह कहना है सुनीता का, सुनीता भी टीबी रोग से ग्रसित थीं और उन्हें भी भेदभाव का सामना करना पड़ा था।

सुनीता बताती है कि वह टीबी मरीज से तो बात करती ही हैं, साथ में मरीज के परिवार के सदस्यों से भी बात होती है, उन्होंने बताया कि इससे उन्हें घर का माहौल समझने का मौका मिलता है | उनका साफ तौर पर कहना है कि टीबी मरीज के लिए जितनी जरूरी दवा और पोषण है, उतना ही जरूरी घर और आस पास का माहौल है। यदि माहौल अच्छा है तो बीमारी से उबरना ज्यादा आसान होता है ।

सुनीता अपना अनुभव साझा करते हुए कहती हैं कि वह खुद भी टीबी से ग्रसित रह चुकी हैं। इस दौरान उनके मायके और ससुराल में लोगों का व्यवहार भेदभावपूर्ण रहा। एक रिश्तेदार ने तो यहाँ तक कह दिया था कि जब तक इस बीमारी से पूरी तरह ठीक न हो जाना तब तक घर मत आना। वह बताती हैं कि ज्यादातर लोग यही कहते थे कि टीबी छुआछूत की बीमारी है और इससे अन्य लोगों को संक्रमण हो सकता है, जबकि सुनीता को एक्सट्रा पल्मोनरी टीबी हुई थी जो कि संक्रामक नहीं होती है।

बहुत से लोगों को यह जानकारी ही नहीं है कि हर टीबी संक्रामक नहीं होती है तथा टीबी बाल व नाखून को छोड़कर किसी भी अंग में हो सकती है, सुनीता को दाहिने हाथ में टीबी हुई थी, उन्हें लोगों के व्यवहार ने अंदर तक तोड़ दिया था लेकिन पति का पूरा सहयोग मिला।  वह 6 महीने तक लगातार डॉट सेंटर के संपर्क में रहीं और जो भी दवा दी गई उसका नियमित रूप से सेवन किया । इसका परिणाम यह रहा कि टीबी से बहुत जल्दी ही वह ठीक हो गयीं।

सुनीता बताती हैं कि टीबी केंद्र ने जब उन्हें टीबी चैंपियन के रूप में क्षय रोगियों और उनके परिवार वालों के साथ में काम करने का प्रस्ताव रखा तो वह सहर्ष तैयार हो गईं । सुनीता मानती हैं कि यह एक सुनहरा अवसर था कि मैं क्षय रोगियों को नियमित दवा का सेवन करने के लिए जागरूक कर सकूं। क्योंकि दवा का सेवन करने से चक्कर आना, जी मिचलाना जैसे लक्षण प्रकट होते हैं लेकिन दवा खाना छोड़ना नहीं है।

इसके साथ ही क्षेत्र के डॉट सेन्टर पर जाएं और उनके द्वारा दी गई सलाह को मानें| इसके साथ ही परिवार के सदस्यों को हम समझाते हैं कि क्षय रोगी के साथ किसी भी तरह का भेदभाव न करें , मरीज को प्यार और सहयोग दें। वह लगभग 100 टीबी रोगियों और उनके परिवार के सदस्यों को सलाह देकर जागरुक कर चुकी हैं। टीबी चैंपियन के रूप में वह लगभग डेढ़ वर्ष से काम कर रही हैं।

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