प्रभावी नीति की जरूरत
इंटरनेट तकनीक के विकास से मानव सभ्यता का चेहरा बदल गया है। इंटरनेट ने लोकाचार के तरीकों को बदल दिया है। बहुत-सी परंपराएं और बहुत सारे रीति-रिवाज अपना रास्ता बदल रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय (ओएचसीएचआर) की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि इंटरनेट सेवा पर रोक लगने, उसमें व्यवधान आने से …
इंटरनेट तकनीक के विकास से मानव सभ्यता का चेहरा बदल गया है। इंटरनेट ने लोकाचार के तरीकों को बदल दिया है। बहुत-सी परंपराएं और बहुत सारे रीति-रिवाज अपना रास्ता बदल रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय (ओएचसीएचआर) की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि इंटरनेट सेवा पर रोक लगने, उसमें व्यवधान आने से आमजन के जीवन, उनके मानवाधिकारों और अर्थव्यवस्था पर होने वाले असर को अक्सर कम करके आंका जाता है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि अब इंटरनेट पर रोक का अंत करने का समय आ गया है। गौरतलब है कि भारत में भी इस बात को लेकर एक लंबे समय से बहस जारी है कि इंटरनेट प्रतिबंध कब और क्यों लगाया जाना चाहिए। उधर भारत ने लगातार चौथे साल इंटरनेट पर रोक लगाने का इतिहास बनाया है। यानी साल 2021 में दुनिया भर में दर्ज किए गए 182 इंटरनेट प्रतिबंधों में से 106 भारत में हुए।
यूएन एजेंसी में निदेशक पैगी हिक्स ने कहा कि जब प्रशासन द्वारा व्यवधान के आदेश दिए जाते हैं तो उसकी मुख्य वजह सार्वजनिक सुरक्षा, टकराव या हिंसा को फैलने से रोकना और जानबूझकर फैलाई जा रही गलत सूचना के प्रसार पर रोक लगाना होता है। लेकिन 55 देशों में नागरिक समाज द्वारा संज्ञान में लाए गए ऐसे मामलों की संख्या 228 है, जिसमें इंटरनेट पर रोक लगाए जाने के लिए कोई स्पष्ट कारण नहीं दिया गया।
भारत में इंटरनेट सेवाएं रोकने के लिए अभी दो कानूनी प्रावधान और एक नियमावली है। इनके आधार पर ही सरकारी एजेंसियां देश के जिलों या राज्यों में इंटरनेट बंद करने का फैसला करती हैं। हाल ही में अग्निपथ योजना के बाद हिंसा की घटनाओं को देखते हुए बिहार के लगभग 20 जिलों में इंटरनेट सेवाओं पर पाबंदी लागू की गई। संयुक्त राष्ट्र विशेषज्ञों का मानना है कि जब कोई देश इंटरनेट सेवा पर रोक लगाता है तो उसका खामियाजा आमजन व अर्थव्यवस्था को भुगतना पड़ता है।
इसको बंद कर दिए जाने पर व्यक्ति मनोवैज्ञानिक रूप से प्रताड़ित होता है। विशेषज्ञों का मानना है कि इंटरनेट सेवा पर रोक के समय कनेक्टिविटी पर पूरी तरह रोक लगाने की बजाय इंटरनेट की रफ्तार कम करने के लिए बैण्डविड्थ सीमित की जा सकती हैं। इससे मोबाइल सेवाएं 2जी ट्रांसफर की रफ्तार तक ही सिमट जाती हैं। इस धीमी गति के कारण, नेट के जरिए वीडियो देखना, सामग्री साझा करना या सजीव प्रसारण बहुत कठिन हो जाता है। वैसे भी इंटरनेट बंद करना अंतिम उपाय होना चाहिए, पहला कदम नहीं और इसके लिए एक प्रभावी नीति की आवश्यकता है।
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