सीतापुर: सेप्टीसीमिया से दो बच्चों की मौत, चिल्ड्रेन वार्ड में 22 बच्चों का चल रहा है इलाज
सीतापुर। जिला अस्पताल में चौबीस घण्टे के भीतर दो बच्चों की मौत हो गई। बीमारी का कारण सेप्टीसीमिया बताया जा रहा है। सीएमएस का कहना है कि बच्चों के कई दिनों से बुखार आ रहा था, ऐसे में फेफड़ो में संक्रमण बढ़ गया था। बदलते मौसम के बीच ग्रामीण क्षेत्रों में बुखार से बच्चे अधिक …
सीतापुर। जिला अस्पताल में चौबीस घण्टे के भीतर दो बच्चों की मौत हो गई। बीमारी का कारण सेप्टीसीमिया बताया जा रहा है। सीएमएस का कहना है कि बच्चों के कई दिनों से बुखार आ रहा था, ऐसे में फेफड़ो में संक्रमण बढ़ गया था। बदलते मौसम के बीच ग्रामीण क्षेत्रों में बुखार से बच्चे अधिक बीमार होने लगे हैं। इनकी संख्या पांच दिनों के भीतर तेजी से बढ़ी है।
बुधवार को बिसवां इलाके से 11 वर्ष के आयुष और मछरेहटा से सात वर्षीय सुनिधि को तेज बुखार के बीच जिला अस्पताल लाया गया। बताते हैं कि बच्चों के कई दिनों से बुखार आ रहा था। परिजनों की मानें तो स्थानीय स्वास्थ्य केन्द्र में हालात नहीं सुधरे तो बच्चे को अस्पताल लाकर भर्ती कराया गया। चिल्ड्रेन वार्ड में भर्ती आयुष और सुनिधि की आधी रात के करीब मौत हो गई। वार्ड में 22 और बच्चे भर्ती हैं। इनमें अधिकतर को तेज बुखार की शिकायत है।
फेफड़ों में संक्रमण होने से हुई दो बच्चों की मौतः सीएमएस
जिला अस्पताल के सीएमएस डॉ. आरके सिंह का कहना है कि बदलते मौसम में देखरेख न होने से बच्चों को बुखार आ रहा है। जिन दो बच्चों की मौत हुई है उनके फेफड़ों में संक्रमण हो गया था, कई दिनों तक बुखार रहने के कारण शरीर में सूजन भी हो गई थी।
वार्डों में पानी आने से बढ़ी परेशानी
पहली बारिश में जिला अस्पताल की व्यवस्था की कलई खुल गई। दरअसल बारिश शुरू होते ही मेडिकल बी वार्ड, महिला वार्ड, आईसोलेशन वार्ड में छतों और दीवारों के सहारे पानी रिसता हुआ अंदर पहुंच गया। ऐसे में तीमारदार ही नहीं मरीज भी परेशान होते दिखे।
एक्सरे रूम में लाइट गुल, भीड़ बढ़ी
जिला अस्पताल के एक्सरे रूम और सिटी स्कैन रूम में गुरुवार सुबह से ही बिजली गुल हो गई। लाइट न होने से समस्याएं बढ़ गईं। दूर-दराज से आने वाले लोगों की भीड़ बढ़ती देख सीएमएस को विभागीय सूचनाओं से अवगत कराया गया। तीन घण्टे बाद समस्या का हल निकल सका।
बारिश के बीच रैन बसेरा में लटका ताला
बारिश में तीमारदार भटकते हुए मिले। जिला अस्पताल के भीतर बना रैन बसेरा राहत नहीं दे सका, क्योंकि जिम्मेदारों ने इसके बाहर ताला लटका रखा था। मछरेहटा से आए रामनिवास, सोबरन और मिश्रिख के त्रिलोकी का कहना था कि कम से कम रैनबसेरा खुल जाता तो रात भटकते हुए न बीतती।
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