अयोध्या में मुंबइया कलाकार तो महाराष्ट्र में अयोध्या के कलाकार कर रहे रामलीला

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इंदूभूषण पांडेय (अमृत विचार, अयोध्या)। राम तत्व का सार है, राम लला की लीलाएं और इन्हीं लीलाओं को लेकर तुलसीदास ने रामचरितमानस रच डाला। बनारस की विश्व प्रसिद्ध रामलीला हो या यूनेस्को से संरक्षित जसवंतनगर इटावा की मैदानी रामलीला, सब अयोध्या से ही निकली हैं। आश्चर्य की बात यह है कि राम नगरी के रामलीला …

इंदूभूषण पांडेय (अमृत विचार, अयोध्या)। राम तत्व का सार है, राम लला की लीलाएं और इन्हीं लीलाओं को लेकर तुलसीदास ने रामचरितमानस रच डाला। बनारस की विश्व प्रसिद्ध रामलीला हो या यूनेस्को से संरक्षित जसवंतनगर इटावा की मैदानी रामलीला, सब अयोध्या से ही निकली हैं।

आश्चर्य की बात यह है कि राम नगरी के रामलीला खेलने वाले कलाकारों की स्थित घर का जोगी जोगड़ा आन गांव का सिद्ध जैसी है। अयोध्या में वे लोग लीला कर रहे हैं, जिनका राम की नगरी से कोई सरोकार नहीं है और यहां के कलाकार दूसरे प्रदेशों में अपना झंडा बुलंद कर रहे हैं।

इस्कॉन समूह ने अयोध्या के 30 कलाकारों को औरंगाबाद में रामलीला खेलने के लिए बुलाया है। वहां 26 सितंबर से प्रारंभ हुई रामलीला 5 अक्टूबर तक चलेगी। अयोध्या नगर में सिर्फ दो स्थानों पर रामलीला का मंचन होता है जबकि जुड़वा शहर फैजाबाद में आधा दर्जन से ज्यादा स्थानों पर मैदानी व मंचीय रामलीला खेली जाती है।

अयोध्या के पत्थर मंदिर को रामलीला कलाकारों का गढ़ माना जाता है। आज मंदिर के साथ कलाकारों की भी स्थिति स्थानीय स्तर पर दयनीय है। शहर में कम होती रामलीला और सरकारी उपेक्षा से यह कलाकार दूसरे प्रदेशों में रामलीला करते हैं जहां इन्हें भरपूर सम्मान और उचित पारिश्रमिक भी मिलता है।

दशहरे पर 20 हजार लोग देखेंगे रामलीला

इस्कान समूह, औरंगाबाद के जालना रोड वरुण फाटा पर श्री श्री राधा निकुंज बिहारी का भव्य मंदिर निर्माण करवा रहा है। इस मंदिर के प्रांगण में प्रभु राम के जीवन चरित्र का निरूपण करने के लिए अयोध्या के 30 कलाकार आमंत्रित किए गए हैं। 26 सितंबर से रामलीला प्रारंभ हो गई है।

कलाकारों के मंचन के लिए 40 गुणे 30 स्क्वायर फिट का भव्य रंगमंच बनाया गया है। साथ ही भव्य एलईडी पर प्रसारण की चौतरफा व्यवस्था है। इस पंडाल में 3000 लोगों के बैठने की क्षमता है और दशहरे के दिन 20000 से ज्यादा लोग रामलीला देखेंगे।

अयोध्या के पत्थर मंदिर को जाता है रामलीला का श्रेय

वर्तमान समय में रामलीलाओं का मंचन जिंदा है तो उसका अधिकांश श्रेय अयोध्या में सन् 1886 में बने पत्थर मंदिर को जाता है। रामलीला और संगीत के लिए प्रसिद्ध पत्थर मंदिर का निर्माण ठाकुर प्रसाद नायक ने करवाया था और बाबा राघव दास जी को दान कर दिया था। अयोध्या की संकरी गली में स्थापित इस मंदिर में दशावतार का वर्णन है। बिना ईंट गारे के पत्थरों से बने इस मंदिर की डिजाइन में सोने के पानी का भी इस्तेमाल किया गया है।

निर्माण काल से लेकर अब तक इस मन्दिर के चित्रण को दोबारा रंगा नहीं जा सका है। कुछ वर्ष पहले कोशिश हुई थी लेकिन पेंट न मिल पाने के कारण कोशिश परवान नहीं चढ़ सकी। यहां के कलाकार दूसरे प्रदेशों में रामलीला कर अपनी जीविका चलाते हैं, जबकि अयोध्या में सरकारी तंत्र फिल्मी कलाकारों से रामलीला करा करोड़ों खर्च कर देता है। कोई उद्धारक मिले तो पत्थर मंदिर भी सोना हो जाए। पर्यटन की दृष्टि से भी मंदिर की कलाकारी बेहतरीन है।

राम जन्म से लेकर विवाह तक का है वर्णन

पत्थर मंदिर की दीवारों पर भगवान विष्णु के दशावतार का वर्णन चित्रकारी के द्वारा समझाया गया है। सबसे खास बात यह है इसमें भगवान राम के जन्म से लेकर के विवाह तक का वर्णन है। इसके अलावा वनवास से लेकर लंका विजय और फिर अयोध्या के राज्य अभिषेक का वर्णन चित्रकारी के द्वारा बताया गया है।

मंदिर का रास्ता अयोध्या की बेहद सकरी गलियों से होता हुआ आता है, जिसके कारण यहां पर श्रद्धालुओं की आवाजाही ना के बराबर होती है। इस तरह के प्राचीनतम धरोहरों का समुचित प्रचार-प्रसार होना चाहिए, जिससे बाहर से आने वाले श्रद्धालु व पर्यटक इस अनमोल धरोहर को भी देख सकें।

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