मुरादाबाद : खूनी हो चुका खनन माफिया बेलगाम, रात में दौड़ा रहा अवैध डंपर
प्रशासनिक अमले में प्रतिबद्धता का घोर अभाव, तीन पुलिसकर्मियों को निशाना बनाकर गोली दागने के बाद भी कोताही हो रही
मुरादाबाद,अमृत विचार। आप यदि यह समझ रहे हैं कि यूपी पुलिस को नाको चने चबाने पर मजबूर करने वाला खनन माफिया खामोशी की चादर ओढ़ चुका है तो भारी गफलत में हैं। प्रशासनिक अमला व सिस्टम भले ही चादर तानकर सो रहा है, लेकिन खनन माफिया व उनके गुर्गे पूरी रात जाग रहे हैं। दो बड़ी वारदात के बाद भी मुरादाबाद में खनन का खेल खत्म नहीं हो सका है। खनन माफिया के डंपर के पहिए पनचक्की की भांति लगातार चल रहे हैं। खूनी हो चुके खनन माफिया के मंसूबे फिलहाल बेलगाम हैं।
कहते हैं, दूध का जला छाछ भी फूंक कर पीता है। चूक के कारण पहले ही किरकिरी झेल चुकी मुरादाबाद पुलिस व जिला प्रशासन फिलहाल नसीहत आत्मसात करने को तैयार नहीं है। प्रशासनिक अमले में प्रतिबद्धता का घोर अभाव है। उन खनन माफिया की नकेल कसने में कोताही हो रही है, जिन्होंने तीन पुलिस कर्मियों को निशाना बनाकर गोली दागी। दुस्साहस की पराकाष्ठा पार करने वाली 12 अक्टूबर की घटना को मुरादाबाद प्रशासन ने सपने की भांति भुला दिया।
ठाकुरद्वारा के तत्कालीन उपजिलाधिकारी रामानंद व खान निरीक्षक अशोक कुमार के ऊपर उठे माफिया के हाथ को भी सिस्टम ने विस्मृत कर दिया। यूं कहें कि अधिकारियों ने खुद का जमीर खनन माफिया के पास बंधक रख दिया। जमीर के गिरवी होने का सबसे बड़ा प्रमाण खनन माफिया के वह डंपर हैं, जिनके पहिए की रफ्तार रोकने में प्रशासनिक अमला पूरी तरह विफल हैं। सूत्र बताते हैं कि उत्तराखंड के भरतपुर गांव में यूपी पुलिस व खनन माफियाओं के बीच सीधी मुठभेड़ की दुस्साहसिक घटना का रत्तीभर भी असर खनन माफिया पर नहीं हुआ। महज तीन से चार दिनों तक ही उन्होंने सिस्टम की लाज रखी। चंद दिनों बाद ही खनन माफिया नए सिरे से बेखौफ हो गए।
सीधी मुठभेड़ के बाद भी सिस्टम की नींद क्यों नहीं टूटी
ठाकुरद्वारा के तिकोनिया व उत्तराखंड के भरतपुर गांव में खनन माफिया से सीधी मुठभेड़ के बाद भी सिस्टम की नींद क्यों नहीं टूटी? वह कौन सा कारण रहा कि खनन माफिया का तिलिस्म तोड़ने की बजाय पुलिस व प्रशासन के अफसरों ने खामोशी की चादर ओढ़ ली? अवैध डंपर के पहिए रोकने की हिम्मत कोई क्यों नहीं दिखा रहा? इन सवालों का जवाब यदि संजीदगी से तलाश करें, तो पर्दे के पीछे का मंजर चौंकाने वाला होगा। दरअसल उत्तराखंड के भरतपुर गांव में जसपुर के जेष्ठ उप ब्लाक प्रमुख गुरताज भुल्लर के घर यूपी पुलिस की खनन माफिया से सीधी मुठभेड़ व मुरादाबाद पुलिस के पांच जवानों के घायल होने की घटना ने पूरे तंत्र को झकझोर दिया। खनन के खेल पर सीएम की पैनी नजर से उच्चाधिकारी बेचैन हो उठे। पर्दे के पीछे खेल कुर्सी बचाने का शुरू हुआ। पर्दे के पीछे जारी जंग में जीत का तानाबाना बुना जाने लगा। सूत्रों के दावों पर गौर करें तो मुरादाबाद एसएसपी का अप्रत्याशित तबादला भी पर्दे के पीछे के खेल का प्रतिफल है।
2,000 डंपर में से 500 ओवरलोड
खनन माफिया के खूनी खेल का गवाह बन चुका प्रशासनिक अमला भले ही खुद को पाक साफ होने की दलील दे, लेकिन सच यही है कि मुरादाबाद में अवैध डंपर की दौड़ फिलहाल पहेली बन चुकी है। सूत्रों की मानें तो मझोला के धीमरी, करुला व पाकबड़ा से सरोकार रखने वाले माफिया का करीब 250 डंपर हर रात उत्तराखंड की सीमा से मुरादाबाद में प्रवेश करता है। रात 12 बजे से सुबह सात बजे तक उत्तराखंड की सीमा से डंपर मुरादाबाद में प्रवेश करते हैं। उनकी बेरोकटोक आवाजाही सुनिश्चित करने के लिए पुलिस की रेकी होती है। कार सवार माफिया वाहनों को लीड करते हैं।
पर्दे के पीछे चल रहा बड़ा खेल
प्रशासनिक अफसरों की कथित प्रतिबद्धता व पुलिस की सतर्कता के बाद भी खनन माफिया के डंपर का पहिया क्यों नहीं थम रहा ? खनन माफिया सिस्टम के छेद का इस्तेमाल कर अपने नापाक मंसूबे तो नहीं परवान चढ़ा रहे ? वह कौन सा व्यक्ति है कि जिसकी सरपरस्ती में खनन का खेल जारी है ? ऐसे कई सवाल हैं, जिनका सीधा जवाब देने की जहमत कोई मोल नहीं लेता। प्रति माह करोड़ों के खनिज सामान सामान का परिवहन करने वाले खनन माफिया आखिरकार किसके हाथ की कठपुतली हैं। यह सवाल फिलहाल रहस्य बना हुआ है। 12 अक्टूबर के बाद पुलिस द्वारा खुले तौर पर माफिया की नकेल कसने का ऐलान करने के बाद भी खनन का खेल क्यों नहीं थम रहा ? खनन के खेल का मास्टर माइंड कौन है? इन सवालों का सीधा जवाब देने की कूबत फिलहाल किसी में नहीं हैं।
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