Motor Accident Compensation Claim Cases: मृतक की Annual Income की गणना के लिए ITR पर विचार किया जा सकता है

Motor Accident Compensation Claim Cases: मृतक की Annual Income की गणना के लिए ITR पर विचार किया जा सकता है

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि मोटर दुर्घटना मुआवजा दावा मामलों में मृतक की वार्षिक आय की गणना के लिए उसके आयकर रिटर्न पर विचार किया जा सकता है। इस मामले में, दावेदारों ने ट्रिब्यूनल के समक्ष मृतक का आयकर रिटर्न दाखिल किया था, जिसमें मृतक की कुल आय 1,18,261 रुपए अर्थात लगभग 9855 रुपए प्रति माह दिखाया गया था।

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एमएसीटी ने इसे इस आधार पर खारिज कर दिया कि 2009-2010 से पहले न तो कोई आईटीआर और न ही मृतक की आय के संबंध में कोई अन्य दस्तावेज दाखिल किया गया था। इस प्रकार इसने मृतक की आय को 4000 रुपए प्रति माह यानी 48,000 रुपए प्रति वर्ष निर्धारित किया। अपील में, हाईकोर्ट ने भी आईटीआर पर विचार करने से इनकार कर दिया और मृतक की आय 5,000 रुपए प्रति माह होने का अनुमान लगाया।

इस दृष्टिकोण को अस्वीकार करते हुए सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस कृष्ण मुरारी और जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी की बेंच ने कहा, ट्रिब्यूनल और हाईकोर्ट दोनों ने मृतक की आय का अनुमान लगाते हुए उसके आयकर रिटर्न की अनदेखी करते हुए गंभीर त्रुटि की। अपीलकर्ताओं ने मृतक का आयकर रिटर्न (2009-2010) दाखिल किया था, जो मृतक की वार्षिक आय 1,18,261 रुपए अर्थात लगभग 9855 रुपए प्रति माह दर्शाता है। इस कोर्ट ने मलारविज़ी और अन्य (सुप्रा) मामले में एक बार फिर पुष्टि की है कि यदि उपलब्ध हो तो आयकर रिटर्न एक वैधानिक दस्तावेज है, जिस पर वार्षिक आय की गणना के लिए भरोसा किया जा सकता है।

इसलिए इसने मृतक की वार्षिक आय 1,18,261 रुपए अर्थात लगभग 9855 रुपए प्रति माह निर्धारित किया। कोर्ट ने कहा कि मोटर वाहन अधिनियम के प्रावधान 'न्यायसंगत और उचित' मुआवजे की अवधारणा को सर्वोपरि महत्व देते हैं। इसने आगे कहा, एमवी अधिनियम की धारा 168 न्यायसंगत मुआवजे की अवधारणा से संबंधित है, जिसे निष्पक्षता, तर्कशीलता और समानता के आधार पर निर्धारित किया जाना चाहिए। हालांकि इस तरह का निर्धारण कभी भी अंकगणितीय रूप से सटीक या पूर्ण नहीं हो सकता है, लेकिन फिर भी कोर्ट द्वारा यह प्रयास किया जाना चाहिए कि आवेदक द्वारा दावा की गई राशि से इतर न्यायोचित और अनुकूल मुआवजा मिल सके।

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