खतौली उपचुनावः भाजपा के जाट नेताओं पर भारी पड़ी अकेले जयंत की पारी, कई नेताओं की दांव पर लगी थी साख

खतौली उपचुनावः भाजपा के जाट नेताओं पर भारी पड़ी अकेले जयंत की पारी, कई नेताओं की दांव पर लगी थी साख

मेरठ, अमृत विचार। उत्तर प्रदेश में तीन सीटों पर हुए उपचुनाव में भले ही भाजपा ने अपनी गंवाई एक सीट रामपुर के रूप में हासिल कर ली। लेकिन, खतौली उपचुनाव ने भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को सोचने पर मजबूर कर दिया। भाजपा के बड़े-बड़े दिग्गजों की साख दांव पर लगी थी। खतौली उपचुनाव में रालोद-सपा व असपा के गठबंधन प्रत्याशी मदन भैय्या ने भारी अंतर से भाजपा की राजकुमारी सैनी को हराया है। जबकि, विक्रम सैनी दो बार लगातार इस सीट से विधायक चुने गए।

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शुरू से ही जयंत दिखे भारी
आजम खां को सजा दिए जाने के बाद उनकी सदस्यता को खत्म कर दिया गया था। जिस, पर रालोद मुखिया जयंत चौधरी ने पत्र लिखकर विक्रम सैनी को दी गई दो साल की सजा का हवाला देते हुए उनकी सदस्यता रद्द करने की मांग की थी। उनके पत्र पर खतौली विधायक विक्रम सैनी की सदस्यता को रद्द कर दिया गया। मैनपुरी, रामपुर के बाद खतौली में भी पांच दिसंबर को उपचुनाव होने की घोषणा की गई। शुरू से ही जयंत चौधरी भाजपा पर भारी दिखाई दिए।

दिग्गजों ने किया प्रचार, जयंत अकेले प्रचार में डटे
खतौली सीट को भाजपा अपनी प्रतिष्ठा से देख रही थी। जयंत के पत्र पर इस सीट पर विक्रम सैनी की सदस्यता रद्द की गई। जिसके बाद से ही भाजपा इस सीट को अपनी मान मर्यादा से जोड़े हुए थी। इस सीट को हासिल करने के लिए चुनाव प्रचार में दिग्गजों की फौज को उतार दिया गया। प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी का यह पहला चुनाव था और जाट बिरादरी को साधना भी उन पर जिम्मा था। भूपेंद्र चौधरी के साथ केंद्रीय राज्यमंत्री डॉ. संजीव बालियान, मोहित बेनीवाल भी प्रचार प्रसार में जुटे थे। 

डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक, केशव प्रसाद मौर्य व मंत्री कपिल अग्रवाल ने भी भाजपा प्रत्याशी राजकुमारी सैनी के लिए रैली व गांव गांव जाकर वोट मांगे। परंतु, खतौली में जयंत अकेले डटे रहकर लोगों से वोट मांगते दिखे। बृहस्पतिवार को हुई मतगणना में जयंत चौधरी सभी दिग्गजों पर  भारी दिखे और शुरू से ही मदन भैय्या आगे रहे। एक-दो बार राजकुमारी सैनी कुछ वोट से आगे रही। परंतु, अंत में मदन भैय्या ने 22 हजार 165 वोट से जीत हासिल की।

जाट, गुर्जर व दलित का बना समीकरण
बसपा के मैदान से बाहर रहने के कारण खतौली उपचुनाव में सभी की निगाह दलित वोटों पर टिकी हुई थी। ऐसे में सपा-रालोद गठबंधन ने अपने साथ चंद्रशेखर की पार्टी असपा को भी अपने साथ ले लिया। चुनाव की घोषणा होने के बाद से ही दलित वोटों में बिखराव की  संभावना जताई जा रही थी। परंतु, बृहस्पतिवार को हुई मतगणना में मैदन भैय्या शुरू से ही बढ़त बनाए रहे और जीत हासिल की। इस जीत के बाद अनुमान लगाया जा रहा है कि खतौली उपचुनाव में चंद्रशेखर ‌दलितों में अपनी छाप छोड़ने में कामयाब रहे और अब बसपा के बाद दलितों को असपा के रूप में दूसरा विकल्प दिखाई देने लगा है।

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