देश के 13वें राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की विरासत पश्चिम बंगाल का 'जंगीपुर'
प्रणब मुखर्जी ने पांच दशकों के अपने लंबे राजनीतिक करियर के अंत में लगातार दो चुनाव जंगीपुर लोकसभा क्षेत्र से लड़े और जीते भी। जंगीपुर और मुखर्जी के एक-दूसरे से जुड़ने से पहले अपने बेहतरीन राजनीतिक करियर में कई मौकों पर मुखर्जी ने महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाई।
जंगीपुर/पश्चिम बंगाल। देश के 13वें राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की संगमरमर की आवक्ष प्रतिमा का अनावरण एक सादे कार्यक्रम में पश्चिम बंगाल के पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले में किया गया। अभिजीत ने मुखर्जी की आवक्ष प्रतिमा के अनावरण की कुछ तस्वीरें ट्विटर पर साझा करते हुए लिखा, मेरे पिता प्रणब मुखर्जी को उनकी 86वीं जयंती पर सम्मानित करने के वास्ते एक आवक्ष प्रतिमा स्थापित करने के लिए जंगीपुर नगर पालिका को धन्यवाद।
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प्रणब मुखर्जी ने पांच दशकों के अपने लंबे राजनीतिक करियर के अंत में लगातार दो चुनाव जंगीपुर लोकसभा क्षेत्र से लड़े और जीते भी। जंगीपुर और मुखर्जी के एक-दूसरे से जुड़ने से पहले अपने बेहतरीन राजनीतिक करियर में कई मौकों पर मुखर्जी ने महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाई। मुखर्जी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की अनुपस्थिति में मंत्रिमंडल की कई बैठकों की अध्यक्षता की, संसद के उच्च सदन में विभिन्न राज्यों का प्रतिनिधित्व किया।
मुखर्जी के मित्र एवं पूर्व स्कूल प्रधानाध्यापक मोहम्मद सोहराब (89) ने कहा, हम उन्हें न केवल एक बेहतरीन राजनेता के रूप में बल्कि जंगीपुर को वैश्विक मानचित्र पर पहचान दिलाने के लिए भी याद रखेंगे। सोहराब, कई स्थानीय गणमान्य लोगों और मुखर्जी के बेटे अभिजीत ने पूर्व राष्ट्रपति को श्रद्धांजलि अर्पित की। अभिजीत इस निर्वाचन क्षेत्र के पूर्व सांसद हैं। अभिजीत ने कहा, वह व्यक्ति जिसने अपने पूरे जीवन में भारत के अधिकतर महत्वपूर्ण मंत्रालयों का नेतृत्व किया और राष्ट्रीय पटल पर कई बड़े समझौते कराने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई...।
Thanks to Jangipur Municipality for erecting a bust to honour my father Pranab Mukherjee on his 86th Birth Anniversary pic.twitter.com/2mS84N7vrU
— Abhijit Mukherjee (@ABHIJIT_LS) December 12, 2022
मुखर्जी ने क्षेत्रीय पार्टी बांग्ला कांग्रेस के संस्थापक सदस्य के रूप में अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की, जिसने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) और कई अन्य दलों के साथ गठबंधन कर 1967 में पश्चिम बंगाल में पहली गैर-कांग्रेसी सरकार बनाई। दो साल बाद वह बांग्ला कांग्रेस के टिकट पर राज्यसभा के लिए चुने गए और बांग्लादेश की आजादी का समर्थन करने के लिए प्रिवी पर्स को खत्म करने के विधेयक सहित कई मुद्दों पर बहस के दौरान इंदिरा गांधी का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया।
प्रिवी पर्स किसी संवैधानिक या लोकतांत्रिक राजतंत्र में राज्य के स्वायत्त शासक एवं राजपरिवार को मिलने वाली विशेष धनराशी को कहा जाता है। संसद में बांग्ला कांग्रेस के वह एकमात्र प्रतिनिधि थे। इंदिरा गांधी के सुझाव पर मुखर्जी ने 1972 में कांग्रेस के साथ अपनी पार्टी का विलय किया। एक साल के भीतर उन्हें उप मंत्री बनाया गया और इसके बाद ही राजनीति व अंतरराष्ट्रीय कूटनीति की दुनिया में उनका उदय हुआ।
Baba , you have always been the guiding light for Me & my family ! Today You may not be with us in person but I know you are always with Us till we are here 🙏 #PranabMukherjee pic.twitter.com/S5upB8rQjl
— Abhijit Mukherjee (@ABHIJIT_LS) December 11, 2022
वह जल्द ही इंदिरा गांधी के संकटमोचक बन गए। बांग्लादेश के पूर्व राष्ट्रपति शेख मुजीबुर्रहमान की हत्या किए जाने के बाद उन्हें रहमान की बेटी शेख हसीना की देखभाल का काम सौंपा गया और इससे दोनों पड़ोसी देशों के बीच पारस्परिक हित के दीर्घकालिक संबंध स्थापित हुए। वर्ष 2004 में जंगीपुर से 37,000 मतों के अंतर से चुनाव जीतने के बाद कई लोगों को उम्मीद थी कि वह ही कांग्रेस नीत गठबंधन की ओर से प्रधानमंत्री होंगे, लेकिन सोनिया गांधी ने सभी को आश्चर्यचकित करते हुए मनमोहन सिंह को चुना।
हालंकि 2012 में कांग्रेस नीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) ने उन्हें राष्ट्रपति पद का अपना उम्मीदवार बनाया और सात लाख मतों के अंतर से उन्होंने जीत दर्ज की। मुखर्जी 25 जुलाई 2017 तक देश के राष्ट्रपति रहें। 31 अगस्त 2020 को उनका निधन हो गया।
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